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________________ कामभोग २०२ कायक्लेश सब गीत विलाप हैं, सब नाट्य विडम्बना हैं, सब है । विषयों के प्रति अनुत्सुक जीव अनुकम्पा करने वाला, आभरण भार हैं और सब कामभोग दुःखकर हैं। प्रशान्त और शोकमुक्त होकर चारित्र को विकृत करने खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा वाले मोहकर्म का क्षय करता है। पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । कामस्कन्ध-मनोज्ञ पुद्गलसमूह । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया काम्यत्वात् कामाः- मनोज्ञशब्दादयः । तद्धेतवः खाणी अणत्थाण उ कामभोगा। स्कन्धाः-पुद्गलसमूहाः ततः कामस्कन्धाः । (उ १४।१३) (उशावृ प १८८) ये कामभोग क्षण भर सुख और चिरकाल दुःख देने कामस्कन्ध का अर्थ है-मनोज्ञ शब्द आदि के हेतुवाले हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देने वाले हैं, संसार भूत पुद्गलसमूह । मुक्ति के विरोधी हैं और अनर्थों की खान है। खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पसवो दासपोरुसं । ६. कामभोग-परित्याग के परिणाम चत्तारि कामखंधाणि..॥ (उ ३३१७) इह कामणियदृस्स, अत्तठे नावरज्झई । क्षेत्र-वास्तु, स्वर्ण, पशु और दासपौरुषेय-ये चारों पूइदेहनिरोहेणं, भवे देव त्ति मे सुयं ॥ कामस्कन्ध कहलाते हैं। इड्ढी जुई जसो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । कायक्लेश-आसन, आतापना, केशलोच आदि भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववज्ज ई ।। निरवद्य प्रवृत्तियों द्वारा शरीर को (उ ७।२६,२७) साधना । बाह्यतप का एक भेद । इस मनुष्य भव में कामभोगों से निवृत्त होने वाले (द्र. तप) पुरुष का आत्म-प्रयोजन नष्ट नहीं होता। वह पूतिदेह ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा । का निरोध कर देव होता है-ऐसा मैंने सुना है। उग्गा जहा धरिज्जंति, कायकिलेसं तमाहियं । (देवलोक से च्युत होकर) वह जीव विपुल ऋद्धि, (उ ३०।२७) द्युति, यश, वर्ण, आयु और अनुत्तर सुख वाले मनुष्य आत्मा के लिए सुखकर वीरासन आदि उत्कट कुलों में उत्पन्न होता है। आसनों का जो अभ्यास किया जाता है, उसे कायक्लेश ७. पदार्थ : आध्यात्मिक दृष्टिकोण कहा जाता है। न कामभोगा समयं उति न यावि भोगा विगई उति । कायकिलेसो लोयाऽऽतावणाती। (दअच ११४) जे तप्पओसी य परिग्गही य सो तेसु मोहा विगई उवेइ॥ केशों का लुंचन करना, आतापना लेना आदि काय (उ ३२।१०१) क्लेश तप है। कामभोग समता के हेतु भी नहीं होते और विकार कायकिलेसो नाम वीरासणउक्कुडुगासणभूमीके हेतु भी नहीं होते। जो पुरुष उनके प्रति द्वेष या राग सेज्जाकटुसेज्जालोयमादियाउ भाणियव्वाउ । करता है, वह तद्विषयक मोह के कारण विकार को (दजिचू पृ २४) प्राप्त होता है। वीरासन, उत्कटुकासन, भूमिशयन, काष्ठपट्टशयन, .. केशलोच आदि कायक्लेश के मुख्य प्रकार हैं। ८. कामभोग-विरति का उपाय केशलोच के गुण ""सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ। अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकंपए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं केसलोओ य दारुणो"।। कम्म खवेइ। (उ २९।३०) (उ १९।३३) सुख की स्पृहा का निवारण करने से जीव विषयों णिस्संगया य पच्छापुरकम्मविवज्जणं च लोअगुणा । (कामभोगों) के प्रति अनुत्सुक भाव को प्राप्त करता दुक्खसहत्तं नरगादिभावणाए य निव्वेओ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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