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________________ कामभोग के परिणाम २०१ कामभोग को। कर उसे छोड़ देते हैं, जैसे क्षीण फल वाले वृक्ष को परिव्वयंते अणियत्तकामे अहो य राओ परितप्पमाणे । पक्षी । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे पप्पोति मच्चु पुरिसे जरं च ।। भोगामिसदोसविसण्णे, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । (उ १४।१४) बाले य मंदिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलंमि ।। जिसे कामनाओं से मुक्ति नहीं मिली, वह पुरुष दुपरिच्चया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं। अतृप्ति की अग्नि से संतप्त होकर दिन-रात परिभ्रमण अह संति सुव्वया साहू, जे तरंति अतरं वणिया व ॥ करता है । दूसरों के लिए प्रमत्त होकर धन की खोज (उ ८५६) में लगा हुआ वह जरा और मृत्यु को प्राप्त होता है । आत्मा को दूषित करने वाले भोगामिष में निमग्न, जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई। हित और श्रेयस् में विपरीत बुद्धि वाला अज्ञानी, मन्द न मे दिट्टे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई ।। और मूढ़ जीव उसी तरह बंध जाता है जैसे श्लेष्म में हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। मक्खी। ये कामभोग दुस्त्यज हैं, अधीर पुरुषों द्वारा को जाणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो ॥ ये सुत्यज नहीं हैं । जो सुव्रती साधु हैं, वे दुस्तर काम- जणेण सद्धि होक्खामि, इह बाले पगब्भई । भोगों को उसी प्रकार तर जाते हैं, जैसे वणिक् समुद्र कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ॥ (उ ५॥५-७) नागो जहा पंकजलावसन्नो, जो कोई कामभोगों में आसक्त होता है, उसकी गति दळु थलं नाभिसमेइ तीरं। मिथ्याभाषण की ओर जाती है। वह कहता है-परलोक एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, तो मैंने देखा नहीं, यह रति (आनन्द) तो चक्षु-दृष्ट हैन भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो॥ आंखों के सामने है । ये कामभोग हाथ में आए हुए हैं, (उ १३।३०) भविष्य में होने वाले संदिग्ध हैं। कौन जानता है---परलोक जैसे दलदल में फंसा हुआ हाथी स्थल को देखता है या नहीं? मैं लोकसमुदाय के साथ रहूंगा। ऐसा हआ भी किनारे पर नहीं पहुंच पाता, वैसे ही काम- मानकर बाल अज्ञानी मनुष्य धृष्ट बनता है। कामभोग गुणों में आसक्त बने हुए हम श्रमणधर्म को जानते हए के अनुराग से क्लेश (संक्लिष्ट परिणाम) को प्राप्त करता भी उसका अनुसरण नहीं कर पाते। ५. कामभोग के परिणाम तओ से दंडं समारभई, तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयग्गामं विहिंसई ॥ सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा। हिंसे बाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे । कामे पत्थेमाणा अकामा जंति दोग्गई ।। भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई ॥ (उ ९।५३) (उ ५२८,९) कामभोग शल्य हैं, विष हैं और आशीविष सर्प फिर वह त्रस तथा स्थावर जीवों के प्रति दण्ड का के तुल्य हैं। कामभोग की इच्छा करने वाले, उनका प्रयोग करता है और प्रयोजनवश अथवा बिना प्रयोजन सेवन न करते हुए भी दुर्गति को प्राप्त होते हैं। ही प्राणी समूह की हिंसा करता है। हिंसा करने वाला, इह कामाणियट्टस्स, अत्तढे अवरज्झई। झूठ बोलने वाला, छल-कपट करने वाला, चुगली खाने सोच्चा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ॥ वाला, वेश परिवर्तन कर अपने आपको दूसरे रूप में प्रकट (उ ७२५) करने वाला अज्ञानी मनुष्य मद्य और मांस का भोग करता इस मनुष्य भव में कामभोगों से निवृत्त न होने वाले है और यह श्रेय है' - ऐसा मानता है। पुरुष का आत्म-प्रयोजन नष्ट हो जाता है। वह पार सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं न विडंबियं । ले जाने वाले मार्ग को सुनकर भी बार-बार भ्रष्ट होता सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥ (उ १३।१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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