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________________ संक्लिष्ट परिणाम और स्थितिबंध कर्म नाम संज्वलन क्रोध दो मास दो हजार वर्ष संज्वलन मान एक मास गोत्र दो हजार वर्ष संज्वलन माया पन्द्रह दिन आयुष्य कर्म का अबाधाकाल नहीं होता। संज्वलन लोभ अन्तर्मुहूर्त २४. संक्लिष्ट परिणाम और स्थितिबंध पुरुष वेद आठ वर्ष मोहस्सुक्कोसाए ठिईए सेसाण छण्हमुक्कोसा। पुरुषवेदजित नोकषाय) पल्योपम का असंख्येय भाग आउस्सुक्कोसा वा मज्झिमिया वा न उ जहण्णा ।। से नीच गोत्र पर्यंत ६६ । कम 3 सागरोपम (विभा ११८९ मत पृ ४५४) प्रकृतियां मोह कर्म का स्थिति बंध उत्कृष्ट हो तो शेष छह वैक्रिय षटक पल्योपम का असंख्येय भाग (आयुष्य वजित) कर्मों का स्थिति बंध भी उत्कृष्ट ही कम दो सागरोपम होता है। संक्लिष्ट परिणामों की उत्कृष्टता इस दीर्घ आहारक शरीर स्थितिबंध में निमित्त बनती है। आहारक अंगोपांग अन्तःकोटिकोटि सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति वाले मोह कर्म के साथ उत्कृष्ट तीर्थकर नाम आयुष्य बंध होने पर जीव नरकगति का आयुष्य बांधआहारक'"उत्कृष्ट-जघन्य स्थिति कर सातवीं पृथ्वी में उत्पन्न होता है। उसकी उत्कृष्ट ननत्कृष्टाऽपि एतावत्येवासां तिसृणां स्थिति- स्थिति तेतीस सागरोपम होती है। जब जीव छठी आदि रभिहिता, सत्यं, तथाऽपि तत: संख्येयगुणहीनत्वेनास्या पृथ्वियों में उत्पन्न होता है, तब मध्यम स्थितिबंध होता जघन्यत्वमिति सम्प्रदायः । (उशाव प ६४८) है. जघन्य नहीं। अत्यधिक संक्लिष्ट परिणामों वाला जीव आहारकशरीर, आहारकशरीरअंगोपांग और नरक में ही उत्पन्न होता है। वह जघन्य आयु-स्थिति जीत होता है। तीर्थकर नाम- इन तीन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति वाले क्षल्लक भव में उत्प वाले क्षुल्लक भव में उत्पन्न नहीं होता। जब नरयिक भी जघन्य स्थिति की तरह अन्तःकोटाकोटि सागरोपम और देव संक्लिष्ट परिणामों से उत्कृष्ट मोहस्थिति का ही है। किन्तु वह जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति से बंध कर तिर्यंचगति में उत्पन्न होते हैं, तब भी उनका संख्येयगुण हीन होती है यह तथ्य परम्परा से प्राप्त है। जघन्य स्थिति वाला आयुष्य नहीं होता। देव और २३. अबाधाकाल नरयिक क्षुल्लक भव में उत्पन्न नहीं होते। णाणावरणीयस्य त्रीणि च वर्षसहस्राणि आबाधा मोहविवज्जुक्कोसयठिईए मोहस्स सेसियाणं च। अंतरं भवति ।...'न बाधा अबाधा, तत्र उदयो न भवती उक्कोस मज्झिमा वा कासइ व जहणिया होज्जा ॥ त्यर्थः, तैश्च सत्स्थितिरूना भवति, एवं दर्शनावरणीया (विभा ११९० मवृ पृ ४५५) न्तराययोः । वेदनीयस्थितिः तदेव...''दर्शनमोहनीयं" जब जीव मोहवजित उत्कृष्ट स्थिति वाला ज्ञानाचत्वारि वर्षसहस्राण्याबाधा अन्तरं भवति "चारित्र- वरण आदि कर्म बांधता है, तब मोह तथा शेष कर्मों की मोहनीयस्य""सप्तवर्षसहस्राणि आबाधा अन्तरं भवति। उत्कृष्ट अथवा मध्यम स्थिति का बंध करता है। नामगोत्रयोः... वर्षसहस्रद्वयं आबाधा अंतरं भवति । मोहनीय, दर्शनावरण आदि कर्मों की जघन्य स्थिति (उचू पृ २७८) का बंध अनिवृत्ति बादर और सूक्ष्मसम्पराय-इन दो कर्म अबाधाकाल गुणस्थानों में ही होता है। इन दोनों गुणस्थानों में ज्ञानावरण तीन हजार वर्ष ज्ञानावरण आदि कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का बंध कभी दर्शनावरण तीन हजार वर्ष नहीं होता। उत्कृष्ट स्थिति का बंध मिथ्यादृष्टि के ही वेदनीय तीन हजार वर्ष होता है। ज्ञानावरण आदि की उत्कृष्ट स्थिति में मोहनीय अंतराय तीन हजार वर्ष आदि की जघन्य स्थिति संभव नहीं है। किन्तु किसीदर्शनमोहनीय चार हजार वर्ष किसी के आयु कर्म की जघन्य स्थिति संभव है । जैसेचारित्रमोहनीय सात हजार वर्ष ज्ञानावरण आदि की उत्कृष्ट स्थिति का बंध करता हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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