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________________ स्त्यानद्धि के पांच उदाहरण ज्ञानावरण पांच प्रकार का है (१) मतिज्ञानावरण (२) श्रुतज्ञानावरण (३) अवधिज्ञानावरण मनोज्ञानावरण (५) केवलज्ञानावरण । 'ज्ञानस्य ज्ञानिनां चैव निन्दाप्रद्वेषमत्सरः । उपघातश्च विघ्नेश्च, ज्ञानघ्नं कर्म बध्यते ॥ ' ( उशावृ प १२६ ) ज्ञानावरणीय कर्मबंध के हेतुज्ञान तथा ज्ञानी की निन्दा करना । ज्ञान तथा ज्ञानी के प्रति द्वेष रखना । ज्ञान तथा ज्ञानी के प्रति मत्सर भाव रखना । ज्ञान तथा ज्ञानी का उपघात करना । ज्ञान तथा ज्ञानी के मार्ग में विघ्न डालना । ५. दर्शनावरण कर्म दृश्यतेऽनेनेति दर्शनं - सामान्यावबोधस्तदा व्रियते वस्तुनि प्रतीहारेणेव नृपतिदर्शनमनेनेति दर्शनावरणम् । ( उशावृ प ६४१ ) जिसके द्वारा देखा जाता है, वह दर्शन है । यह सामान्य अवबोध है । जैसे द्वारपाल राजा के दर्शन में CTET डालता है, वैसे ही जो पुद्गल स्कंध दर्शन को आवृत करता है, वह दर्शनावरणीय कर्म है । निद्दा तव पयला, निद्दानिद्दा य पयलपयला य । तत्तो य थी गिद्धी उ, पंचमा होइ नायव्वा ॥ चमचक्खुओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं नायव्वं दंसणावरणं ॥ ( उ ३३।५, ६) दर्शनावरण कर्म के नौ प्रकार हैं१. निद्रा १८१ २. प्रचला ३. निद्रा-निद्रा ६ चक्षुदर्शनावरण ७. अचक्षुदर्शनावरण ८. अवधिदर्शनावरण ९. केवलदर्शनावरण । Jain Education International ४. प्रचलाप्रचला ५. स्त्यानद्ध निद्रा आदि पांच प्रकार निद्रा - सुखप्रतिबोधोच्यते । प्रचला — निद्रावत् किञ्चिच्छुभरूपतात्मकेन प्रकारेण प्रचलत्यस्यामासीनोऽपीति चला । निद्रानिद्रा - अतिशयनिद्रा दुःखप्रतिधात्मिका । प्रचलाप्रचलाप्रचलाऽतिशायिनी, साहि कर्म चंक्रम्यमाणस्यापि भवति । स्त्यानद्धि:- प्रकृष्टतराशुभानुभावतया ताभ्य उपरिवर्तिनी स्त्याना संहतोपचितेत्यर्थः ऋद्धिद्धिर्वा यस्यां सा स्त्यानद्धिः स्त्यानगृद्धिर्वा । एतदुदये च वासुदेवबलार्द्धबलः प्रबलरागद्वेषोदयवांश्च जन्तुर्जायते, अतएव परिचिन्तितार्थसाधन्यसावुच्यते । ( उशावृप ६४२ ) १. निद्रा - जो सहजता से टूट जाये, वह निद्रा है । २. प्रचला - जो बैठे-बैठे नींद आती है, वह प्रचला है । ३. निद्रानिद्रा - जो कठिनाई से टूटे, वह निद्रानिद्रा है । ४. प्रचलाप्रचला जो चलते-चलते नींद आती है, वह गहरी नींद प्रचलाप्रचला है । ५. स्त्यानद्धि - यह निद्रा प्रकृष्टतर अशुभ अनुभाव वाली है। इसमें चेतना प्रगाढ मूर्च्छा से जम जाती है। इस प्रकृति का उदय होने पर व्यक्ति के रागद्वेष का प्रबल उदय होता है और उस समय उसमें वासुदेव के बल से आधा बल जाग जाता है । व्यक्ति जो सोचता, उसे वह इस नींद में सिद्ध कर लेता है। इसलिए उसे चिन्तित अर्थ को सिद्ध करने वाली निद्रा कहा जाता है। स्त्यान के पांच उदाहरण पोग्गल - मोयग दंते फरसगवडसालभंजणे चेव । थीद्धिस्स एए आहरणा होंति नायव्वा ॥ तदुदये च वज्रऋषभनाराचसंहननवतः केशवार्ध बलसंपन्नता समये निगद्यते । ( विभा २३५, मवृ पृ ११७,११८) १. पुद्गल (मांस) - एक मुनि के मन में मांसभक्षण की अभिलाषा जगी । वह रात को सोया हुआ था । उसके स्त्यानद्धि निद्रा का उदय हुआ। वह उठा और गांव के बाहर जाकर एक भैंसे को मारकर उसका मांस खाकर लौट आया, उपाश्रय में आकर पुनः सो गया । उसने सुबह गुरु के पास दुःस्वप्न की आलोचना की । उपाश्रयद्वार पर गिरे मांस को देख ज्ञात हुआ कि इसके स्त्यानद्धि नींद का उदय हुआ है । अत: उसे मुनिसंघ से बहिष्कृत कर दिया गया । ४२. मोदक - एक मुनि के मन में मोदक खाने की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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