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________________ कर्म १७९ कर्म नोसुयकरणं दुविहं गुणकरणं तह य मुंजणाकरणं । गुण तवसंजमजोगा जंजण मणवायकाए य ।। (उनि २०४) करण (क्रिया) नोश्रुतकरण के दो प्रकार हैं१. गुणकरण - तपोयोग, संयमयोग । २. योजनाकरण-मनोयोग, वचनयोग, काययोग । नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल भाव -- |- संज्ञा नोसंज्ञा अजीव -| वित्रसा विस्रसा प्रयोग प्रयोग श्रुत नोश्रुत --- - - चाक्षुष अचाक्षुष जीव अजीव बद्ध अबद्ध गुण योग करणसत्तरी-प्रयोजन होने पर किया जाने वाला ५. दर्शनावरण कर्म अनुष्ठान । इसके सत्तर अंग हैं- ६. वेदनीय कर्म पिंडविसोही समिई भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । ७. मोहनीय कर्म पडिलेहणगुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु ।। ० दर्शन मोहनीय के प्रकार (ओभा ३) ० चारित्र मोहनीय के प्रकार चार प्रकार की पिंडविशोधि, पांच समिति, बारह * कषाय मोहनीय (द्र. कषाय) भावना, बारह प्रतिमा, पांच प्रकार का इंद्रियनिग्रह, नोकषाय मोहनीय पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना, तीन गुप्ति और चार * मोहकर्म के क्षय आदि से सम्यक्त्व प्राप्ति प्रकार का अभिग्रह (पिंड, शय्या, वस्त्र, पात्र)---इन्हें (द्र. सम्यक्त्व) करणसत्तरी कहा जाता है। ८. आयुष्य कर्म कर्म-जीव की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति से आकृष्ट • आयुष्य का बंध कब? सुख-दुःख एवं आवरण के हेतुभूत पुद्गल- ० आयुष्यबंध और आकर्ष स्कन्ध । ० सोपक्रम-निरुपक्रम आयुष्य १. कर्म का निर्वचन • आयुष्य के उपक्रम २. कर्म बंध का हेतु और प्रकार * शीर्षप्रहेलिका : आयुष्य का मापन (द्र. काल) ३. कर्म के प्रकार ९. नाम कर्म ४. ज्ञानावरण कर्म • शुभ नामकर्म की प्रकृतियां *ज्ञानावरण का क्षयोपशम सब जीवों में (द्र . ज्ञान) ० अशुभ नामकर्म की प्रकृतियां * स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय १०. गोत्र कर्म (द्र. स्वाध्याय) ___* वन्दना से नीच गोत्र कर्म का क्षय (5. वन्दना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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