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________________ उपसर्ग १५५ ऊनोदरी काकसरिसं कयं । (अनु ५४६) द्वेष के कारण ३. विमर्श-प्रतिज्ञा से चलित करने सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती फिर भी उस के लिए। ४. विमिश्र-हास्य, प्रद्वेष, विमर्श आदि उपमेय को उसी उपमान के द्वारा उपमित किया जाता विविध प्रकारों से। है। जैसे -- नीच ने नीच जैसा कार्य किया। कौए ने मनुष्य संबंधी उपसर्ग के चार कारण हैंकौए जैसा कार्य किया। १. हास्य से २. प्रद्वेष से ३. विमर्श से और ४. कूशील प्रतिसेवन के लिए। उपशांतमोह -ग्यारहवां गुणस्थान जहां मोह तियं च सम्बन्धी उपसर्ग के चार कारण हैंउपशांत हो जाता है। १. भय से २. द्वेष से ३. आहार के लिए ४. संतान (द्र. गुणस्थान) और अपने स्थान की सुरक्षा के लिए। उपसम्पदा-ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशेष आत्मसंवेदनीय उपसर्ग के चार कारण हैं प्राप्ति के लिए कुछ समय तक दूसरे १. आंखों में तिनका गिरना २. अंगों का जड़ीभूत होना आचार्य का शिष्यत्व स्वीकार ३. गड्ढे में गिरना ४. विगुणित बाहु आदि का परस्पर करना । समाचारी का एक भेद। श्लेष । (द्र. सामाचारी) दिव्वे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । उपसग उपद्रव। जे भिक्खू सहई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।। (उ ३१/५) उवसज्जणमुवसग्गो तेण तओ व उवसज्जए जम्हा ।" जो भिक्ष देव, तिर्यंच और मनुष्य संबंधी उपसर्गों (विभा ३००५) को सदा सहता है, वह भव-भ्रमण नहीं करता। उप ----सामीप्येन सृज्यन्ते-तिर्यग्मनुष्यामरैः कर्म भगवान् महावीर के उपसर्ग। वशगेनात्मना क्रियन्त इत्युपसर्गाः। (उशावृ प १०९) उपाध्याय -- सूत्रदाता, अध्ययन-अध्यापन में कर्म के वशीभूत हो तिर्यंच, मनुष्य और देव द्वारा कुशल । (द. आचार्य) साक्षात् कृत उपद्रव उपसर्ग कहलाते हैं। पंचपरमेष्ठी में चतुर्थ पद पर प्रति.."सो दिव्व-मणुय-तेरिच्छियायसंवेयणाभेओ ॥ ष्ठित । (द्र. नमस्कार) (विभा ३००५) उपासक प्रतिमा-श्रमणोपासक की साधना का उपसर्ग के चार प्रकार हैं -- एक विशिष्ट प्रयोग । १. दिव्य --देवकृत। २. मानुष-- मनुष्यकृत। ३. तैर्यग्यं निज-तिर्यंचकृत। ऊनोदरी-आहार, उपधि, कषाय आदि की ४. आत्मसंवेदनीय- स्वयं के शरीर से होने वाले। अल्पता । बाह्य तप का प्रकार। (द्र. तप) उपसर्ग चतुष्टयी के हेतु - हास-प्पओस-वीमंसओ विमायाए वा भवो दिव्यो। १. ऊनोदरी के पांच प्रकार एवं चिय माणस्सो कूसीलपडिसेवणचउत्थो॥ • द्रव्य तिरिओ भयप्पओसाहारावच्चाइरक्खणत्थं वा। ० क्षेत्र घद्र-त्थंभण-पवडण-लेसणओ चायसंवेओ ॥ * क्षेत्र ऊनोदरी के प्रकार (द्र. भिक्षाचर्या) _ (विभा ३००६, ३००७) ० काल देव चार कारणों से उपसर्ग कर सकते हैं ० भाव ० पर्यव .. १. हास्य-क्रीडा के लिए २. प्रद्वेष-पूर्व भव सम्बन्धी । __(द्र. प्रतिमा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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