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________________ उपमान उपधि के प्रत्याख्यान से जीव होने वाली क्षति से बच जाता है । अभिलाषा से मुक्त होकर उपधि के अभाव संक्लेश को प्राप्त नहीं होता । उपभोग - परिभोग-परिमाण - भोजन, १. उपमान के प्रकार • साधम्योपनीत • वैधम्र्योपनीत के आधार पर उपमान-सादृश्य और वैसादृश्य किया जाने वाला ज्ञान साधर्म्य अथवा वैधर्म्य के आधार पर । प्रसिद्ध वस्तु के अप्रसिद्ध वस्तु का ज्ञान । २. साधर्म्यापनीत • किंचित साधर्म्यं • प्रायः साधर्म्य • सर्वसाधर्म्य ३. वैधयोंपनीत किचित् वैधर्म्यं o ० प्रायः वैधर्म्य स्वाध्याय, ध्यान में उपधि रहित मुनि में मानसिक व्यवसाय आदि का परिसीमन । श्रावक का छठा व्रत । ( द्र. श्रावक ) • सर्व बंधयं * उपमान : ज्ञानगुणप्रमाण का भेद Jain Education International ( ब्र. ज्ञान ) १. उपमान के प्रकार ओवम् दुविहे पण्णत्ते, तं जहा साहम्मोवणीए य मोवीए य । ( अनु ५३८ ) उपमान के दो प्रकार हैं— साधर्म्यापनीत और वैधर्म्यापनीत | २. साधर्म्यापनीत साहम्मोवणी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - किंचि - साम्मे पास हम्मे सव्वसाहम्मे । ( अनु ५३९ ) साधर्म्यापनीत के तीन प्रकार हैं- किंचित् साधर्म्य, प्रायः साधर्म्य और सर्व साधर्म्यं । किचित् साधर्म्य किचिसाहम्मे – जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा वैधम्र्योपनीत सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्यं तहा समुद्दो | ( अनु ५४० ) किंचित् साधर्म्य - जैसा मेरु है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षप है वैसा मेरु है । जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । प्रायः साधयं १५४ पायसाहम्मे - जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ तहा गो । ( अनु ५४१) प्रायः साधर्म्य -- जैसी गाय है वैसा गवय है, जैसा गवय है वैसी गाय है । सर्वसाधर्म्य सव्वसाहम्मे ओवम्मं नत्थि, तहा वि तस्स तेणेव ओवम्मं कीरइ, जहा अरहंतेहिं अरहंतसरिसं कयं । ( अनु ५४२ ) सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती फिर भी उसको उसी से उपमित किया गया है, जैसे अर्हत् ने अर्हत् जैसा कार्य किया । ३. वैधम्र्योपनीत हम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- किंचि - वेहम्मे पायवेहम्मे सव्ववेहम्मे | ( अनु ५४३ ) वैधर्म्यापनीत के तीन प्रकार हैं- किंचित् वैधर्म्य, प्रायः वैधर्म्य और सर्व वैधर्म्यं । किंचित् वैधर्म्य किंचिवेहम्मे – जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, जहा बाहुलेरो न तहा सामलेरो । किचित् वैधर्म्य -- जैसा शाबलेय वैसा बाहुले (काला) नहीं है, जैसा शाबलेय नहीं है । ( अनु ५४४ ) (चितकबरा) है बाहुलेय है वैसा प्रायः वैधम्यं पायवेहम्मे – जहा वायसो न तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो । ( अनु ५४५) प्रायः वैधर्म्य - जैसा वायस (कौआ) है वैसा पायस (खीर) नहीं है, जैसा पायस है वैसा वायस नहीं है । सर्ववैधयं सव्ववेहम्मे ओवम्मं नत्थि, तहा वि तस्स तेणेव ओवम्मं कीरइ, जहा - नीचेण नीचसरिसं कयं, काकेण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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