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________________ इन्द्रिय के प्रकार इन्द्रभूति - गौतम गणधर का मूल नाम । १. इन्द्रिय का निर्वाचन २. इन्द्रिय की परिभाषा ३. इन्द्रिय के प्रकार • द्रव्येन्द्रिय ० भावेन्द्रिय इन्द्रिय-चेतना के विकास का प्राथमिक स्तर । प्रतिनियत और वर्तमान अर्थ को ग्रहण करने वाली चेतना । ४. द्रव्येन्द्रिय के प्रकार निवृत्ति ० ० उपकरण निर्वृत्ति और उपकरण में अन्तर o ५. भावेन्द्रिय के प्रकार ० लब्धि • उपयोग लब्धि आदि का प्राप्ति क्रम ६. इन्द्रियविषय : ग्राह्य ग्राहक भाव ७. विषय ग्रहण की क्षेत्र मर्यादा ० ८. विषय ग्रहण की क्षमता ९. श्रोत्रेन्द्रिय की पटुता १०. दूरस्थ गंध-रस स्पर्श का ग्रहण ११. विषय परिमाण आत्मांगल से १५. इन्द्रिय- आसक्ति के परिणाम १६. इन्द्रिय - निग्रह के परिणाम ( द्र. गणधर ) १२. चक्षु और मन अप्राप्यकारी * इन्द्रियों के आधार पर जीव के भेद ( द्र. जीव ) १३. सभी जीव एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय १४. एकेन्द्रिय में पांचों इन्द्रियों का अस्तित्व * पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीव ( . जीवनिकाय) * शेष इन्द्रिय वाले जीव (द्र. त्रस ) * इन्द्रिय-संयम : ब्रह्मचर्य * इन्द्रिय विकास का क्रम * इन्द्रियज्ञान परोक्ष इन्द्रियज्ञान सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष * इन्द्रियज्ञान : आभिनिबोधिकज्ञान Jain Education International १८३ (द्र ब्रह्मचर्य ) (द्र. ज्ञान) ( द्र. ज्ञान ) ( द्र. ज्ञान ) (द्र आभिनिबोधिक ज्ञान ) इन्द्रिय १. इन्द्रिय का निर्वचन इंदो जीवो सव्वोवलद्धि भोगपरमेस रत्तणओ । सोत्ताइभेयमिदियमिह तल्लिंगाइभावाओ ॥ (विभा २९९३) जीव सब वस्तुओं की उपलब्धि और परिभोग रूप ऐश्वर्य से सम्पन्न होता है, इसलिए वह इन्द्र है । श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शन जीव के चिन्ह हैं और ये ही इन्द्रियां कहलाती हैं । इन्दनादिन्द्रः:- आत्मा सर्वद्रव्योपलब्धिरूपपरमैश्वर्ययोगात् । तस्य लिंगं - चिह्नमविनाभावि इन्द्रियम् । ( नन्दीमवृप ७५ ) आत्मा सभी द्रव्यों की उपलब्धि रूप परम ऐश्वर्य से सम्पन्न है, इसलिए वह इन्द्र है । उसका जो अविनाभावी चिह्न है, वह इन्द्रिय है । २. इन्द्रियों की परिभाषा सोयरस सद्दं गहणं वयंति । ( उ ३२।३५) जो शब्द का ग्रहण करती है, वह श्रोत्रेन्द्रिय है । चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । ( उ ३२।२२) जो रूप का ग्रहण करती है, वह चक्षुइन्द्रिय है । गंध घाणं गहणं वयंति । ( उ ३२ ।४९) जो गन्ध का ग्रहण करती है, वह घ्राणेन्द्रिय है । जिहाए रसं गहणं वयंति । ( उ ३२।६१) जो रस का ग्रहण करती है, वह रसनेन्द्रिय है । कायस्स फासं गहणं वयंति । ( उ ३२|७४) जो स्पर्श का ग्रहण करती है, वह स्पर्शनेन्द्रिय है । ३. इन्द्रिय के प्रकार 'व्विदिय- भाविदियसामण्णाओ कओ भिण्णो ॥ ( विभा ३००३) पुग्गलेहि संठाणणिव्वत्तिरूवं दव्विदियं सोइंदियमादिइंदियाणं सव्वातप्पदेसेहिं स्वावरणक्खतोवसमातो जा लद्धी तं भाविदियं । ( नन्दीचू पृ १४ ) इन्द्रिय के दो प्रकार हैं - १. द्रव्य - इन्द्रिय -- इन्द्रिय की पौद्गलिक आकार- रचना (संस्थान-रचना) । २. भाव - इन्द्रिय-इन्द्रिय-आवारक कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त शक्ति और उसका उपयोग । ४. द्रव्य-इन्द्रिय के प्रकार .....दव्वं निव्वित्ति उवगरणं च । ... ( विभा २९९४ ) द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार हैं -निर्वृत्ति और उपकरण । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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