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________________ आहार १७. मुनि का आहार तित्तगं व कडुयं व कसायं अंबिलं व महुरं लवणं वा । एय लद्धमन्नट्ठपउत्तं, महुघयं व भुंजेज्ज संजए ॥ अरसं विरसं वा वि सूइयं वा असूइयं । उल्लं वा जइ वा सुक्कं मन्धु कुम्मास - भोयणं ॥ उप्पण्णं नाइहीलेज्जा अप्पं पि बहु फासूयं । मुहाल मुहाजीवी भुंजेज्जा दोसवज्जियं ॥ (द ५।१।९७ ९९ ) गृहस्थ के लिए बना हुआ तिक्त या कडुवा, कसैला या खट्टा मीठा या नमकीन जो भी आहार उपलब्ध हो, उसे संयमी मुनि मधुघृत की भांति खाए । धजीवी (निष्काम भाव से भिक्षा लेने वाला) मुनि अरस या विरस, व्यंजन सहित या व्यंजन रहित, आर्द्र या शुष्क, मन्थु और कुल्माष का जो भोजन विधिपूर्वक प्राप्त हो उसकी निन्दा न करे । निर्दोष आहार अल्प या अरस होते हुए बहुत या सरस होता है, इसलिए उस मुधालब्ध और दोष-वर्जित आहार को समभाव से खाये । पंताणि चेव सेवेज्जा, सीर्यापिडं पुराणकुम्मासं । अदु बुक्कसं पुलागं वा, जवणट्ठाए निसेवए मंथुं ॥ ( उ ८।१२) भिक्षु प्रान्त (नीरस) अन्न-पान, शीत-पिण्ड, पुराने उड़द, बुक्कस ( सारहीन), पुलाक ( रूखा ) या मंथु (बंर या सत्तू का चूर्ण) का संयम-जीवन-यापन के लिए सेवन करे । लूहवित्ती सुसंतुट्ठे, अप्पिच्छे सुहरे सिया । " (द ८।२५) मुनि रूक्षवृत्ति, सुसन्तुष्ट, अल्प इच्छा वाला और अल्पाहार से तृप्त होने वाला हो । अतिति अचवले, अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दंते, थोवं लधुं न खिसए | (द ८।२९) १४२ आहार न मिलने पर या अरस आहार मिलने पर प्रलाप न करे, चपल न बने। मुनि अल्पभाषी, मितभोजी और उदर का दमन करने वाला हो । थोड़ा आहार पाकर दाता की निन्दा न करे । Jain Education International १८. आहार लुब्ध व्यक्ति को वृत्ति सिया एगइओ लधुं, लोभेण विणिगृहई | मा मेयं दाइयं संतं, दट्ठूणं सयमायए ।। अत्तट्ठगुरुओ लुद्धो, बहुं पावं पकुव्वई । दुत्तोसओ य से होइ, निव्वाणं च न गच्छई ॥ (द ५।२।३१,३२) आहार पाकर उसे, स्वयं ग्रहण न कर अपने स्वार्थ को कदाचित् कोई एक मुनि सरस आचार्य आदि को दिखाने पर वे लें इस लोभ से छिपा लेता है, वह प्रमुखता देने वाला और रसलोलुप मुनि बहुत पाप करता है । वह जिस किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता और निर्वाण को नहीं पाता । इच्छाकार सिया एगइओ लधुं विविहं पाणभोयणं । भगं भद्दंग भोच्चा, विवण्णं विरसमाहरे ॥ जाणता इमे समणा, आययट्ठी अयं मुणी । संतुट्ठो सेवई पंतं, लूहवित्ती सुतोसओ ॥ (द ५।२।३३,३४) कदाचित् कोई एक मुनि विविध प्रकार के पान और भोजन पाकर कहीं एकान्त में बैठ मनोज्ञ- मनोज्ञ आहार खा लेता है, विवर्ण और विरस आहार को जानें कि यह मुनि बड़ा मोक्षार्थी है, सन्तुष्ट है, स्थान पर लाता है । वह सोचता है ये श्रमण मुझे यों (असार) आहार का सेवन करता है, रूक्षवृत्ति और जिस किसी भी वस्तु से सन्तुष्ट होने वाला 1 आहारक शरीर - आहारक लब्धि से शरीर । आहारपर्याप्ति- आहार के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, परिणमन और उत्सर्ग करने वाली पौद्गलिक शक्ति । (द्र पर्याप्ति ) इंगिनो अनशन अनशन का एक भेद । इच्छाकार कार्य करने या कराने निष्पन्न (द्र. शरोर) For Private & Personal Use Only ( द्र. अनशन ) में इच्छाकार का प्रयोग | दसविध सामाचारी का एक भेद । (द्र. सामाचारी) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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