SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्रव १३२ आश्रव भोजन करते हए सरस आहार खाने की उतावल में परिभ्रमण करता है। करना । ४. एक को आशातना-सबको आशातना १९. बड़े साधु द्वारा आमंत्रित होने पर सुना-अनसुना भरहेरवयविदेहे पन्नरसवि कम्मभूमिगा साहू । करना। २०. बड़े साधु द्वारा आमंत्रित होने पर अपने स्थान पर एक्कमि हीलियमी सव्वे ते हीलिया हुंति ॥ बैठे हुए उत्तर देना। भरहेरवयविदेहे पन्नरसवि कम्मभूमिगा साहू । २१. बड़े साधु को अनादर-भाव से 'क्या कह रहे हो'---- एक्कमि पूइयंमी सव्वे ते पूइया हुंति ।। इस प्रकार कहना। नाणं व दंसणं वा तवो य तह संजमो य साहुगुणा । २२. बड़े साधु को तू कहना। एक्के सव्वेसुवि हीलिएसु ते हीलिया हुंति ।। २३. बड़े साधु के समक्ष उद्धततापूर्वक बोलना। एमेव पूइयंमिवि एक्कमिवि पूइया जइगुणा उ ।... २४. बड़े साधु की, उसी का कोई शब्द पकड़ अवज्ञा (ओनि ५२६, ५२७, ५२९, ५३०) करना। ज्ञान, दर्शन, तप और संयम-ये साधु के गुण हैं। २५. आर्य ! ग्लान की सेवा क्यों नहीं करते हो? ये गुण जैसे एक साधु में होते हैं, वैसे ही सब साधुओं में रात्निक मुनि द्वारा ऐसा कहे जाने पर प्रत्युत्तर में होते हैं। कहना-- तुम क्यों नहीं करते ? एक गुण की अवमानना सभी गुणों की अवमानना २६. बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय 'यह है। एक गुण की पूजा सभी गुणों की पूजा है। एक साधु ऐसे नहीं किन्तु ऐसे है'--इस प्रकार कहना । की अवमानना भरत, ऐरवत और विदेह क्षेत्रवर्ती सभी . बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय अन्य- साधुओं की अवमानना है। एक साधु की पूजा सभी मनस्क होना। साधुओं की पूजा है। २८. बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय बीच आश्रव-कर्म-ग्रहण में हेतभत आत्मपरिणाम । में ही परिषद् को भंग करना। २९. बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय । १. आश्रव की परिभाषा बीच में ही कथा का विच्छेद करना--विघ्न २. आश्रय के प्रकार उपस्थित करना। * आश्रव से कर्मबंध (द्र. कर्म) ३०. बड़ा साधु व्याख्यान कर रहा हो, उस समय उसी * प्रत्याख्यान से आश्रव-निरोध (5. प्रत्याख्यान) विषय में अपनी व्याख्या देने का बार-बार प्रयत्न ३. आश्रव-निरोध : संवर करना। ४. आश्रव-संवर-हेतु ३१. बड़े साधु के उपकरणों के पैर लग जाने पर ५. संवर के प्रकार विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना न करना। ६. संवर के परिणाम ३२. बड़े साधु के बिछौने पर खड़े रहना, बैठना या ७. अनाधव कौन ? सोना। ८. आश्रव : भवभ्रमण का हेतु ३३. बड़े साधु से ऊंचे या बराबर के आसन पर खड़े * गुप्ति का परिणाम : संवर (द्र. गप्ति ) रहना, बैठना या सोना। * इन्द्रियसंवर (इन्द्रियनिग्रह) के परिणाम ३. आशातना की फलश्रुति (द्र. इन्द्रिय) तित्थयर पवयण सुयं आयरियं गणहर महिड्ढीयं । । * आश्रव-संवर-भावना (द्र. अनुप्रेक्षा) आसायंतो बहुसो अणंतसंसारिओ होइ॥ (विभामवृ २ पृ १७२) १. आश्रव की परिभाषा तीर्थकर, गणधर, आचार्य, प्रवचन और जिनशासन आश्रवति-आगच्छत्यनेन कर्मत्याश्रव:-कर्मोकी आशातना करने वाला जीव अनंत काल तक संसार पादानहेतुहिंसादिः । (उशावु प ५६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy