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________________ आनुपूर्वी १३. संग्रह नय - सम्मत अनौपनि धिकी संग अणोहिया दव्वाणुपुब्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - अट्ठपयपरूवणया भंगसमुक्कित्तणया भंगोवदंसणया समोयारे अणुगमे । ( अनु १३१) संग्रह नय - सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्य - आनुपूर्वी के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं - अर्थपद प्ररूपण, भंगसमुत्कीर्तन, भंगोपदर्शन, समवतार और अनुगम । संगहस्स अट्ठपयपरूवणया - तिपएसिया आणुपुव्वी चउपएसिया आणुपुव्वी जाव दसपएसिया आणुपुब्वी संखेज्जपएसिया आणुपुब्वी असंखेज्जपएसिया आणुपुव्वी अनंतपएसिया आणुपुथ्वी । परमाणुपोग्गला अणrgyaat | दुपएसिया अवत्तव्वए । ( अनु १३२ ) संग्रह नय का अर्थ पदप्ररूपण - त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, चार प्रदेशिक आनुपूर्वी, यावत् दस प्रदेशिक आनुपूर्वी, संख्येय प्रदेशिक आनुपूर्वी, असंख्येय प्रदेशिक आनुपूर्वी, अनन्त प्रदेशिक आनुपूर्वी, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी, द्विदेशिक अवक्तव्य है । विशेष नैगम और व्यवहार नय द्रव्य को अनेक भेदयुक्त मानता है । संग्रह नय सामान्य को स्वीकार करता है । इसीलिए संग्रह नय की अनौपनिधिकी द्रव्य में केवल एक वचन का प्रयोग होता है। जितने त्रिदेशी स्कन्ध हैं वे त्रिप्रदेशिकत्व सामान्य का अतिक्रमण नहीं करते, इसलिए त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी एक ही होगी । विशुद्धतर संग्रहनय की अपेक्षा आनुपूर्वीत्व का सामान्य होने के कारण आनुपूर्वी एक ही होगी । पूर्वी और अवक्तव्य के लिए भी यही नियम है । बहुत्व का अभाव होने के कारण बहुवचन का प्रयोग नहीं हो सकता । १४. क्षेत्रानुपूर्वी दव्वावगाधोवलक्खितं खेत्तं खेत्ताणुपुव्वी | अहवा अवगाहावगाही अण्णोष्ण सिद्धिहेतुत्तणेवि आगासस्सावगाहलक्खणत्तणतो खेत्ताणुपुव्वी भण्णति । अहवा दव्वाण चेव खेत्तावगाहमग्गणा खेत्ताणुपुव्वी । ( अनुचू पृ ३२ ) द्रव्यों के अवगाह से उपलक्षित क्षेत्र क्षेत्रानुपूर्वी है । अथवा अवगाह और अवगाही परस्पर संबद्ध होने पर भी अवगाह लक्षण के कारण आकाश को क्षेत्रानुपूर्वी कहा गया है । अथवा द्रव्यों के क्षेत्रावगाह की मार्गणा ही क्षेत्रानुपूर्वी है । Jain Education International १०६ क्षेत्रानुपूर्वी क्षेत्रानुपूर्वी के प्रकार -ओवणहिया खेत्ताणुपुवी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - योगहिया । ( अनु १५५) क्षेत्रानुपूर्वी के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं औपनिधिकी और नौनिधिकी । ओवणहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -पुव्वाण पुवी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुव्वी । ( अनु १७६) निधिक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं १. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी । offer हा पण्णत्ता, तं जहा नेगमववहाराणं संगहस्स य । ( अनु १५७ ) अनौपनिधिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं- नैगमव्यवहार नय सम्मत और संग्रह नय-सम्मत । गम-ववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुथ्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - १. अट्टपयपरूवणया २. भंगसमुक्कितणया २. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे । ( अनु १५८ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. अर्थपदप्ररूपण, २. भंग - समुत्कीर्तन, ३. भंगोपदर्शन ४. समवतार ५. अनुगम । ..... नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया-तिपएसोगाढे आणुपुवी चउप सोगाढे आणुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आणपुब्वी संखेज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी असंखेज्जपएसोगाढे आणुपुब्बी । एगपएसोगाढे अणाणुपुब्वी । दुपएसोगाढे अवत्तव्वए ।'''''''' ( अनु १५९ ) नैगम और व्यवहार नय सम्मत अर्थपदप्ररूपण - त्रिप्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, चार प्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, यावत् दस प्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, संख्येय प्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, असंख्येय प्रदेशावगाढ आनुपूर्वी, एक प्रदेशावगाढ अनानुपूर्वी, द्विप्रदेशावगाढ अवक्तव्य है । आनुपूर्वी द्रव्यों का अवगाह क्षेत्र गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागे सु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा । नाणाव्वाई नियमा सव्वलोए होज्जा । ( अनु १६८ ) नगम और व्यवहार के आनुपूर्वी द्रव्य एक द्रव्य की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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