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________________ स्पर्शना १०३ गम और व्यवहार नयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं ? वे नियमतः हैं । २. द्रव्यप्रमाण गम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कि संखेज्जाई ? असंखेज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई नो असंखेज्जाई, अणताई । एवं दोणि वि । ( अनु १२३ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य संख्येय हैं ? असंख्येय हैं ? या अनन्त हैं ? वे संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं । इस प्रकार अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य भी अनन्त हैं। असंख्येयप्रदेशात्मके च लोकेऽनन्तानामानुपूर्व्यादिद्रव्याणां सूक्ष्मपरिणामयुक्तत्वादवस्थानं भावनीयमिति । ( अनुहावृ पृ ३४ ) सूक्ष्म परिणति के कारण अनन्त आनुपूर्वी द्रव्य भी असंख्य - प्रदेशात्मक लोक में समा जाते हैं । ३. क्षेत्र नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई लोगस्स कति भागे होज्जा ? ... एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । गम-ववहाराणं अापुव्विदव्वाई एगदव्वं पडुच्च लोगस्स नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । ( अनु १२४ ) नगम और व्यवहार नय- सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? आनुपूर्वी द्रव्य एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातव भाग में हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में हैं, असंख्येय भागों में हैं अथवा समूचे लोक में हैं | अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक में 1 नैगम और व्यवहार नय-सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य - एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में नहीं हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में नहीं हैं, असंख्येय Jain Education International आनुपूर्वी भागों में नहीं हैं और समूचे लोक में नहीं हैं । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक में हैं । इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्यों का प्रतिपादन करना चाहिए । सव्वलोए वा होज्ज त्ति यदुक्तं तत्राचित्तमहासमयावस्थायी स्कन्धः सर्वलोकव्यापक: सकललोकप्रमाणोऽवसेयः । (अनुहावृ पृ ३४) स्वाभाविक परिणमन से होने वाला अचित्त महास्कंध संपूर्ण लोक में व्याप्त हो जाता है । उसका अवस्थान एक समय तक रहता है। उसकी अपेक्षा एक द्रव्य को सर्वलोकव्यापी कहा गया है। - यस्मादेकस्मिन्ना काशप्रदेशे सूक्ष्मपरिणामपरिणतान्यनन्तान्यानुपूर्वीद्रव्याणि विद्यन्त इति भावना । अनानुपूर्वी - अवक्तव्यकद्रव्ये तु एकं द्रव्यं प्रतीत्या संख्येयभाग एव वर्त्तन्ते, न शेषभागेषु । यस्मात्परमाणु रेक प्रदेशावगाढ एव भवति, अवक्तव्यकं त्वेकप्रदेशावगाढं द्विप्रदेशावगाढं ( अनुहावृ पृ ३५) च । एक-एक आकाशप्रदेश में अनंत आनुपूर्वी द्रव्य विद्यमान हैं । इसका हेतु है - पुद्गल द्रव्य की सूक्ष्म परिणति । अनानुपूर्वी द्रव्य अथवा अवक्तव्य द्रव्य लोक के असंख्यातवें भाग में ही अवस्थित होते हैं, क्योंकि परमाणु एक प्रदेश का ही अवगाहन करता है । अवक्तव्य द्रव्य ( द्विदेशी स्कंध ) एक प्रदेश का भी अवगाहन कर सकता है और दो प्रदेशों का भी अवगाहन कर सकता है । ४. स्पर्शना नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति ? ... एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वासंति, असंखेज्जइभाग वा कुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, सव्वलोगं वा संति । नादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसति । I नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाणं पुच्छा । एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति, असंखेज्जइभागं फुसंति, नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नो सव्वलोगं फुसंति । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं संति । एवं अवत्सव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि । ( अनु १२५ ) नैगम और व्यवहार नय-सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग का स्पर्श करते हैं ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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