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________________ अस्वाध्याय के उत्पन्न दोष ग्रहण होता है तब वह पूरा छुप जाता है । उस संदूषित रात्री के चार प्रहर तथा अहोरात्र के आठ प्रहर - इस प्रकार बारह प्रहर का अस्वाध्याय- काल रहता है । अथवा चन्द्रग्रहण की जानकारी नहीं थी। चांद बादलों से आच्छन्न था। कुछ आशंका हुई। उस रात्रि में चार प्रहर तक अस्वाध्याविक माना प्रभात में देखा कि पूरा चांद ग्रहण के कारण डूब गया है। उस स्थिति में अहोरात्र के आठ प्रहर की अस्वाध्यायी रहेगी । इस प्रकार बारह प्रहर का अस्वाध्याय-काल रहा । यदि सूर्य ग्रहण काल में ही अस्त होता है तो उस रात्रि के चार प्रहर तथा दूसरे दिन रात के चार-चार प्रहर - इस प्रकार जघन्यतः बारह प्रहर अस्वाध्याय के होते हैं। यदि सूर्यग्रहण प्रातःकाल ही प्रारम्भ हो जाता है तो उस दिन रात के पार चार प्रहर तथा दूसरे दिन रात के चार-चार प्रहर - इस प्रकार उत्कृष्टतः सोलह प्रहर अस्वाध्याय के होते हैं । ७. अस्वाध्याय की तिथियां आसाढी इंदमहो कत्तिय सुगिम्हए य बोद्धव्वे । एए महामहा खलु एएसि चेव पाडिवया ॥ ( आवनि १३३८ ) चैत्र की पूर्णिमा, आषाढ की पूर्णिमा, आसोज की पूर्णिमा, कार्तिक की पूर्णिमा तथा उनके साथ आने वाली प्रतिपदा को भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । ८. अस्वाध्याय काल का निर्धारण चंदिमसूरुवरागे निग्धाए गूंजिए अहोरतं । संझा च पाडिएया जं जहि सुगिम्हए नियमा ॥ (आवनि १३३७ ) चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण तथा निर्घात (सान या निरन आकाश में व्यन्तरकृत महान् गर्जन की ध्वनि) में एक दिन-रात तक अस्वाध्यायिक रहता है । चार सन्ध्याओं सूर्यास्त होने पर एक मुहूर्त तक, आधी रात में सूर्योदय से एक मुहूर्त्त पूर्व और मध्याह्न में स्वाध्याय वर्जित है । 1 Jain Education International ७५ ६. अस्वाध्याय के हेत रागेण व दोसेण वऽसज्झाए जो करेइ सज्झायं । आसायणा व का से ? को वा भणिओ अणायारो ? | ( आवनि १४१२ ) जो राग और द्वेष से अस्वाध्याय में स्वाध्याय करता है, वह सोचता है अमूर्त ज्ञान की क्या आशातना ? ज्ञान से कौनसा अनाचार होता है ? १०. अस्वाध्याय से उत्पन्न दोष एए सामन्नरेऽज्झाए जो करेइ सज्झायं । सो आणाअणवत्थं मिच्छत्त विराहणं पावे ॥ सुअनामि अभत्ती लोअविरुद्धं पमत्तछलणा य । विज्जासाहृणवइगुण्णधम्मया एव मा कुणसु ॥ ( आवनि १४०२, १४०८ ) अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने से होने वाले दोष• आज्ञा का अतिक्रमण | • अनवस्था ( दोष - शृंखला का प्रारम्भ ) । • मिध्यात्व की प्राप्ति । • ज्ञान की विराधना । • श्रुतज्ञान की अभक्ति । • लोकविरुद्ध व्यवहार । अस्वाध्याय • प्रमत्त छलना । • विद्या साधन का वैगुण्य । के आचार की विराधना । For Private & Personal Use Only - • श्रुतज्ञान उम्मायं च लभेज्जा रोगायंकं व पाउणे दीहं । तित्यवरभासियाओ भस्सइ सो संजमाओ या ॥ इहलोए फलमेयं परलोए फलं न दिति विज्जाओ । आसायना सुवस्स उ कुब्बद्द दीहं च संसारं ॥ ( आवनि १४१४, १४१५ ) उन्माद, दीर्घकालिक रोग और सद्योचाति आतंक, तीर्थंकर प्रज्ञप्त धर्म से च्युति और चारित्र धर्म से व्युति ये इहलोक सम्बन्धी दोष हैं। परलोक (भविष्य) में ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण वह व्यक्ति किसी विद्या को नहीं साध सकता। श्रुत की आज्ञातना से वह दीर्घकाल तक संसार में भ्रमण करता है। www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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