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________________ अष्टांगनिमित्त और धन का लाभ कराता है। स्वप्न में रक्तपट भिक्षु के दर्शन से मृत्यु होती है । करह तुरंगे रिच्छम्मि वायसे देवहसियकंपे य । मरणं महाभयं वा, सुविणे दिट्ठे वियाणाहि ॥ गायंतं नच्चतं, हसमाणं चोप्पडं च अप्पाणं । कुंकुमलित्तं दट्ठ, चितेसु उवट्टियं असुहं ॥ दाहिण रम्मि सेयाऽहिभक्खणे होइ रज्जधणलाभो । नइ - सरतरणं सुरखीरपाणयं हवइ सुहहेऊ ॥ सिरे सयसहस्सं तु, सहस्सं बाहुभक्खणे । पाए पंचसओ लाभो, माणुस्सा मिसभक्खणे ॥ दारग्गल - सेज्जा - सालभंजणे भारिया विणस्सेज्जा । पिइ माइ- पुत्तमरणं, अंगच्छेए वियाणेज्जा ॥ सिंगी दाढी, उद्दवो कुणइ नूणं राजभयं । पुत्तो व पट्ठा वा नियलभुयापासबंधेसु । आसणे सयणे जाणे, सरीरे वाहणे गिहे । जलमाणे वि बुज्भेज्जा, सिरी तस्स समंतओ ॥ आरोग्गं धणलाभो वा, चंदसूराण दंसणे । रज्जं समुद्दपियणे, सूरस्स गहणे तहा ॥ ( उसुवृ प १३० ) करभ (अल्पवय हाथी या ऊंट ), घोड़ा, भालू, कौआ, देवताओं का अट्टहास और भूकंप - स्वप्न में यदि ये दिखाई दें तो उस स्वप्न का फल होता है महान् भय अथवा मृत्यु । स्वप्न में यदि अपने आपको गाते हुए, नाचते हुए, हंसते हुए, तैलमर्दन करते हुए या कुंकुम का लेप किए हुए देखे तो समझना चाहिए कि कोई अशुभ होने वाला है । स्वप्न में यदि सफेद सर्प अपने दायें हाथ को डसे तो राज्य और वैभव प्राप्त होता है । स्वप्न में नदी और सरोवर में संतरण तथा देव दर्शन तथा क्षीर-पान सुख होता है । स्वप्न में मनुष्य के सिर का मांसभक्षण करते हुए देखे तो लाख गुना लाभ होता है। इसी प्रकार मनुष्य के बाहु का मांसभक्षण हजार गुना और पैरों का मांसभक्षण पांच सौ गुना लाभदायक होता है । स्वप्न में द्वार को, अर्गला को, मकान को तथा प्राकार को भरत देखे तो भार्या का विनाश होता है । स्वप्न में अपना अंगच्छेद दिखे तो माता-पिता और पुत्र की मृत्यु होती है । Jain Education International भौम निमित्त स्वप्न में सींग वाले पशुओं और सुअर, वराह आदि दाढा वाले हिंस्र पशुओंके उपद्रव को देखने का फल हैराजभय । सांकल से अपनी भुजाओं को बंधा हुआ देखे तो पुत्र की या प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है । ६५ स्वप्न में आसन, शयन, यान, शरीर, वाहन और घर - इन्हें प्रज्वलित होते देख जाग जाए तो उसको सब ओर से लक्ष्मी प्राप्त होती है । स्वप्न में सूर्य और चन्द्र के दर्शन से आरोग्य तथा धन की प्राप्ति होती है । स्वप्न में समुद्र का पान और सूर्य का ग्रहण देखने पर राज्य की प्राप्ति होती है । स्वप्न आने के कारण अहू - दिट्ठ- चितिय सुय-पयइवियार - देवयाऽणूया । सिमिणस्स निमित्तानं पुण्णं पावं च नाभावो ॥ विष्णाणमयत्तणओ घडविण्णाणं व सुमिणओ भावो । अहवा विहियनिमित्तो घडो व्व नेमित्तियत्ताओ || ( विभा १७०३, १७०४) स्वप्न आने के कारण १. अनुभूत - पूर्व अनुभूत स्नान, भोजन, विलेपन आदि २. दृष्ट - पूर्व दृष्ट हाथी, अश्व आदि ३. चिन्तित - पूर्व चिन्तित वैभव आदि ४. श्रुत- पूर्व श्रुत स्वर्ग आदि ५. प्रकृतिविकार-वात-पित्तजनित विकार आदि ६. देवता - अनुकूल या प्रतिकूल देव - सजल प्रदेश ७. अनूप - ये सब स्वप्न में निमित्त बनते हैं । पुण्यकर्म और पापकर्म इष्ट-अनिष्ट स्वप्न में निमित्त बनते हैं । स्वप्न भाव / पदार्थ है । उसके दो हेतु हैं१. विज्ञानमय होने से घट ज्ञान की तरह । २. अनुभूति आदि निमित्तजन्य होने से । ८.छिन्ननिमित्त छिन्नमिति वस्त्रच्छेद : शुभाशुभं काष्ठादीनां वा छेदान् ( उचू पृ २३६) । वस्त्र, काष्ठ, आसन, शयन आदि में चूहे, शस्त्र, कांटे आदि से हुए छेद के द्वारा शुभाशुभ का ज्ञान करना छिन्ननिमित है । ६. भौमनिमित्त भीमादित्वात् भौमः । अकाले जं पुष्पफलं, स्थिराणां चलनं, प्रतिमानां जल्पनादि । ( उचू पृ २३६) भूकम्प, अकाल में होने वाले पुष्प फल, स्थिर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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