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________________ अष्टांगनिमित्त लक्षणनिमित्त तथा स्त्री और स्त्रीत्वप्रधान पुरुष के बायें अंगस्फूरण जिस व्यक्ति के हाथ और पैर के तलवे में पद्म, यथोक्त फल के सूचक हैं। वज्र, अंकुश, छत्र, शंख, मत्स्य आदि चिह्न होते हैं, वह ५. स्वरनिमित्त श्रीसम्पन्न होता है। पुरुषः दुंदुभिस्वरो काकस्वरो वा एवमादिस्वरव्या उभरे हुए स्थूल, स्निग्ध, दर्पण के समान पारदर्शी, करणं । (उच पृ२३६) रक्त आभा वाले नख सौभाग्यशाली व्यक्तियों के होते हैं और वे धन, भोग और सुख प्राप्ति कराते हैं। __ अमुक पुरुष का स्वर दुंदुभि के समान मृदु है । अमुक पुरुष का स्वर कौए के समान कर्कश है इस ___श्वेत नख श्रामण्य/साधुता के सूचक हैं । रूक्ष तथा प्रकार स्वरों को सुनकर शुभ-अशुभ का ज्ञान कर लेना फूले हुए नखों वाला व्यक्ति दुःशील होता है। स्वरनिमित्त है। शुद्ध, समश्रेणि में स्थित, शिखरी (तीक्ष्ण, उभरे ६. लक्षणनिमित्त हए), स्निग्ध और सघन दांत शुभ होते हैं.। अशुद्ध, लक्ष्यतेऽनेनेति लक्षणं, सामुद्रवत् । विषमस्थित, छोटे, रूक्ष और विरल दांत दुःख के हेतु (उचू पृ १७५) ___ लक्षणं च शुभाशुभसूचकं पुरुषलक्षणादि, रूढितः बत्तीस दांत वाला राजा होता है। इकतीस दांत तत्प्रतिपादक शास्त्रमपि लक्षणम् । (उशाव पृ २९५) वाला भोगी तथा तीस दांत वाला मध्यम होता है। शरीर के लक्षणों--चिह्नों के आधार पर शुभ-अशुभ तीस से कम दांतों वाला सुंदर नहीं होता। बत्तीस से फल का प्रतिपादन करने वाले शास्त्र को लक्षणशास्त्र कम अथवा अतिरिक्त दांत वाले, श्याम वर्ण के दांत (सामुद्रिकशास्त्र) कहा जाता है। वाले तथा चूहे के समान दांत वाले व्यक्ति पापी होते हैं। लक्षणों के फल ___ अंगूठे में जौ के चिह्न ऋद्धिसम्पन्नता के सूचक हैं। अंगुष्ठमूल में जौ के चिह्न पुत्र-प्राप्ति के सूचक हैं। अस्थिष्वर्थाः सुखं मांसे, त्वचि भोगाः स्त्रियोऽक्षिष । हथेली में ऊर्ध्वरेखा धन का हेतु है। गतौ यानं स्वरे चाऽऽज्ञा, सर्व सत्त्वे प्रतिष्ठितम् ।। पद्म-वज्रांकुशच्छत्र-शंख-मत्स्यादयस्तले वामावर्तों भवेद्यस्य, वामायां दिशि मस्तके । पाणिपादेषु दृश्यन्ते, यस्याऽसौ श्रीपतिः पुमान् ।। निर्लक्षणः क्षुधाक्षामो, भिक्षामद्यात् स रूक्षिकाम् ।। दक्षिणो दक्षिणे भागे, यस्याऽऽवतॊस्ति मस्तके । उत्तुङ्गाः पृथुलास्ताम्राः, स्निग्धा दर्पणसन्निभाः । नखा भवन्ति धन्यानां, धनभोगसुखप्रदाः ।। तस्य नित्यं प्रजायेत, कमला करवत्तिनी ।। सितैः श्रमणता ज्ञेया, रूक्षपुष्पितकः पुनः । यदि स्याइक्षिणे वामो, दक्षिणो वामपावके । जायते किल दुःशीलो, नखैर्लोकेऽत्र मानवः ।। पश्चात्काले ततस्तस्य, भोगा नास्त्यत्र संशयः ।। शुद्धाः समाः शिखरिणो, दन्ताः स्निग्धघनाः शुभाः । उरोमुखललाटानि, पृथनि सुखभागिनाम् । विपरीताः पुनर्जेया, नराणां दुःखहेतवः ॥ गम्भीराणि पुनस्त्रीणि, नाभिः सत्त्वं स्वरस्तथा । द्वात्रिंशद्दशनो राजा, भोगी स्यादेकहीनकः । केश-दन्त-नखाः सूक्ष्मा, भवन्ति सुखहेतवः । त्रिंशता मध्यमो ज्ञेयस्ततोऽधस्तान्न सुन्दरः । कण्ठः पृष्ठं तथा जङ्घ, ह्रस्वं लिङ्गश्च पूजितम् ।। स्तोकदन्ताऽतिदन्ता ये, श्यामदन्ताश्च ये नराः । रक्ता जिह्वा भवेद् धन्या, पाणिपादतलानि च । मूषकैः समदन्ताश्च ते पापाः परिकीर्तिताः । पृथलाः पाणिपादाश्च, धन्यानां दीर्घजीविनाम ।। अंगुष्ठयवैराढ्याः , सुतवन्तोऽङ गुष्ठमूलजैश्च यवैः । स्निग्धदन्तः शुभाहारः, सुभगः स्निग्धलोचनः । ऊर्ध्वाकारा रेखा, पाणितले भवति धनहेतुः ।। नरोऽतिह्रस्वदीर्घाश्च, स्थूलाः कृष्णाश्च निन्दिताः ।। (उसुव प १२९) पञ्चभिः शतमुद्दिष्टं, चतुभिर्नवतिस्तथा । अस्थि में धन, मांस में सुख, त्वचा में भोग, आंखों में त्रिभिः षष्टिः समूहिष्टा, लेखा लवतिभिः । स्त्रियां, गति में वाहन और स्वर में आज्ञा-इस प्रकार चत्वारिंशत् पुनः प्रोक्तं, वर्षाणि नरजीवितम् । सत्त्वशील पुरुष में सब कुछ प्रतिष्ठित है। ताभ्यां द्वाभ्यां तथैकेन, त्रिंशदवर्षाणि जायते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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