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________________ अंगस्फुरण के परिणाम अष्टांगनिमित्त ६. छिन्न-वस्त्र आदि के छिद्रों के आधार पर अंगस्फरण के परिणाम शुभ-अशुभ का निरूपण करने वाला शास्त्र । सिरफुरणे किर रज्ज, पियमेलो होइ बाहफरणम्मि । (कहीं-कहीं छिन्न के स्थान पर उत्पात निमित्त- अच्छिफुरणम्मि च पियं, अहरे पियसंगमो होइ ।। रुधिरवष्टि आदि के आधार पर शुभ-अशुभ फल के गंडेसं थीलाभो, कन्नेसु य सोहणं सुणइ सई। प्रतिपादक शास्त्र का उल्लेख है।) नेत्तंते धणलाभो, उठे विजयं वियाणाहि ।। ७. भौम-भूकम्प आदि के परिणाम का प्रतिपादक पिढे पराजओ वि हु, भोगो अंसे तहेव कंठे य । शास्त्र । हत्थे लाभो विजओ, वच्छे नासाए पीई य॥ ८. अंतरिक्ष-आकाशीय ग्रहयुद्ध आदि के परिणाम लाभो थणेसु हियए, हाणी अंतासु कोसपरिवुड्ढी । का निरूपण करने वाला शास्त्र । नाभीए थाणभंसो, लिंगे पुण इत्थिलाभो य ।। कुल्लेसु सुउप्पत्ती, ऊरूहिं बंधुणो अणिठें तु । ३. सूत्र आदि उनतीस भेद पासेसु वल्लहत्तं, वाहणलाभो फिजे भणिओ। सुत्तं वित्ती तह वित्तियं च पावसूय अउणतीसविहं । पायतले फुरणेणं, हवइ सलाभं नरस्स अद्धाणं । गंधव्वनट्टवत्थु आउं धणुवेयसंजुत्तं ॥ उरिं च थाणलाभो, जंघाहिं थोवमद्धाणं ।। (उशाव प ६१७) पुरिसंसयमहिलाए, पुरिसस्स य दाहिणा जहुत्तफला। इन आठ निमित्तों के तीन-तीन भेद होते हैं-सत्र. माहलसपुरिसमहिलाण होति वामा जहुत्तफला ॥ वृत्ति और वार्तिक । इस प्रकार कुल चौबीस भेद हुए। (उसुवृ प १३०,१३१) शेष पांच भेद ये हैं - गांधर्व, नाट्य, वास्तु, आयुर्वेद और सिर का स्फुरण राज्य प्राप्ति और भुजा का स्फुरण प्रियमिलन का सूचक है। अक्षिस्फुरण और अधरस्फुरण धनुर्वेद । प्रियसंगम का सूचक है। अष्टांग निमित्त के इन उनतीस भेदों को पापश्रुत कपोल के स्फुरण से स्त्री की प्राप्ति होती है। भी कहा गया है। कान का स्फुरण होने पर मनोज्ञ शब्द सुनने को मिलते ४. अंगनिमित्त-अंगविद्या हैं। नेत्रान्त के स्फुरण से धन प्राप्ति और होठ के स्फुरण से विजय प्राप्त होती है। अंगविद्या नाम आरोग्यशास्त्रम् । (उचू पृ १७५) पीठस्फुरण से पराजय, कंधे और कंठ के स्फूरण अंगविद्या का अर्थ है -आरोग्यशास्त्र। से भोगों की प्राप्ति होती है। हाथ का स्फुरण लाभ अंगविद्यां च शिरःप्रभुत्यंगस्फुरणतः शुभाशुभ- और विजय का सूचक है। वक्ष और नासिका का सचिका 'सिरफरणे किर रज्जं' इत्यादिकां विद्यां प्रणव- स्फूरण प्रीति का सूचक है। मायाबीजादिवर्णविन्यासात्मिका वा। यद् वा अंगानि __ स्तनस्फुरण लाभ का, हृदयस्फुरण हानि का और अंगविद्याव्यावर्णितानि भौमान्तरिक्षादीनि विद्या 'हलि ! आंतों का स्फुरण कोशपरिवद्धि का सूचक है। नाभिहलि ! मातंगिनी स्वाहा' इत्यादयो विद्यानुवादप्रसिद्धाः । स्फुरण स्थानभ्रंश का और लिंगस्फुरण स्त्री-लाभ का (उशाव प २९५) सूचक है। अंगविद्या का अर्थ है नितंब के स्फुरण से पुत्रोत्पत्ति तथा ऊरु के स्फुरण ० शरीर के अवयवों के स्फुरण के आधार पर से बन्धुजन का अनिष्ट होता है। दोनों पाश्वों के शुभ-अशुभ बताने वाला शास्त्र । स्फूरण से प्रियता तथा टखनों के स्फूरण से वाहन का • प्रणव, माया बीज आदि वर्ण विन्यास युक्त विद्या। लाभ होता है।। • अंगविद्या में वर्णित भौम, अन्तरिक्ष आदि अंग, पैरों के स्फुरण से पंथ-गमन लाभदायक होता है। उनके शुभ-अशुभ को बताने वाली विद्या, विद्यानुवाद में परों के उपरि भाग के स्फुरण से स्थानलाभ और जंघा प्रसिद्ध विद्याएं, जैसे हलि ! हलि ! मातंगिनी के स्फुरण से लघु विहरण का योग होता है । स्वाहा । पुरुष और पुरुषत्वप्रधान स्त्री के दायें अंगस्फुरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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