SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नरह कारनामेषपमीजिया ॥ ४३८ ॥ अइडिया से पडिमा उजुम्मा भष्वाण निव्वाणसुहावा य जहा नहा रोमकया य तालू जीहाद्दरा नेतभुवे तद्देव ॥ ४३६ ॥ कारे हेमरतसारा, मणिमया सब जहारिहं तु । एगेगिए पिटुड तेलि तेसे. पलेययं से पडिमा गहाय ॥ ४४० ॥ छत्ततियं कुंदसुतारद्वार नीहारडिडीरहिपर्छ । कोरिंडमालावरच मुढामासारवडी ४४१ ॥ सुकिंकिणी जुतियजाललीढं, सेयं उपरि घरंती दुवे चामरारिया, पासेसु दोमुं पुरो य दो दो ॥ ४४२ ॥ नागाण जक्खस्स य कुंड (ल) धारी, पत्ते से रामश्र। तरथेव पंडाचतीसरम्मा, सम्मतिया साकुम्भा ४४३ ॥ भिंगार श्रादी लयथालमाई, यं पिप पहुच । तुरंगमाहं गनराइकं वा, गरम पुष्फलवाणं ॥ ४४४ ॥ सुगंधस्थामा मा सव्वाण पर्सि पडिलेय संथा । Jain Education International समास ( १४०४) अभिधानराजेन्थः । सिंहासणे चामरचारुरम्मा ॥ ४५५ ॥ सिद्धत्थय तेलसमुग्ग एवं पमाणया धूयकडच्या य । तं चेयं से सेसमुप गिट्ठ संभूषितमखिलंच ४४१ ॥ कुरंग हामियसिंहभस्लनारीनरकुंजरवर मे । बिजाइरसर जुगोवसीइं बहुभत्तिचित्तं ॥ ४४७ ॥ रगसाहिमकर (?) (म्यो । आरामाचीनइसिंधुरक्ष विचित्तचि घुम्भचित्तरम्मं ॥ ४४८ ॥ विचित्तमाणिक पहापवाह उपासेसनहाय जालासहस्सा विमा सुचिमालि व करावलीढं ॥ ४४६ ॥ एवं करिता उ गिद्दं जणाएं, करे धन्ना उसभाउगाणं । विवाह अ कार से पयसामर्थ ५२० ॥ माकोदले अक्कनिही इमाउ, कारे तो अंतमया नरा उ । सोमालि नराड काले खुड़िया उ ॥ ४५१ ॥ होहिंति तो ओयणमित्तमिटंकी को म काले कासी स गुरुस्सया से, पुष्याण गंगा परियं बिसाल ॥ ४५५ ॥ तो पंचलयस्सहस्सा, सहाय मुंज भोषी अह नया न्हाइ सुवलितो. माणिकमुत्तामणिभूसियंगो ॥ ४५३ ॥ हारखहारप्यविराहो, पलंबपालंय किरीडधारी । मंदार संताय] चारुपुष्क श्राबद्धवीडो कयसव सोहो ॥ ४५४ ॥ पिसे भासगिहे विसाले, सम्बंगिश्रो दीसह जत्थ पाणी । पाय से भवितव्या एगंगुलीए गलिया य मुद्दा ॥ ४५५ ॥ पलीयमाणस्स नियं सरीरं, दिट्ठि गया सा उषिलोह माणा । तं पेच्छिउं रूवधिमुकूक लोई, वणे हारक्कडगार सव्वं ॥ ४५६ ॥ सदेह भूषणजार विसायवं चिंता चित्तम । सहावओ देहमिणं न रकम, सोहा उसे की गंगेहिं ॥ ४५७ । माणिकडेमम्म विमाहपि मेहलेचणा। सड्राइया कामगुणा नराणं ज़र्णेति संगं घिरसे भये वि ॥ ४४८ ॥ सरीरगं ताण निहाणभूयं. तमेरिलं पेच्छ श्रहो छ मोहो । अणि या कामगुणा दुरंता, भरद भयावहा से विरसाबसा ॥ ४५६ ॥ जय माया आवायमित्तम्मडुरावभासा । नरो को, करेज संगं भवउपसु ? ॥ ४६० ॥ अणिव्यसे अवसाण दुक्ख दाणेसु तेसि विए समोहो । एवंविभावसुपागयाओ, For Private & Personal Use Only आङ व्य लेढी कमपतयस्स ॥ ४६१ ॥ खणेण जायं परमं तु पां. समत्थवत्थूण गणावभासं । सबको सर्व सणकंप, तयंति पर तुरंत गप्तां ॥ ४६२ ॥ गिद्दाहि णं तं मुणिलिंगं, www.jainelibrary.org
SR No.016045
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1652
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy