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________________ (३३) ए-कल्पावतंसिका उपाङ्ग, [ अन्तगडदशाङ्गप्रतिबद्ध ] पद्म, महापद्म, भय, सुभड, पद्मन, पद्मसेन, पद्मगुल्म, न लिनीगुल्म, आनन्द, नन्दन के नाम से १० अध्ययन हैं । १०- पुष्पिका उपाङ्ग, [ अणुत्तरोववाईप्रतिबद्ध ] चन्द्र, सूर, शुक्र, बहुपुत्रिका, पुण्यभत्र, माणिभय, दत्त, शिव, वाल, अनादृत नाम से दश १० अध्ययन हैं । ११- पुष्पचूलिका उपान, [ प्रश्नव्याकरणप्रतिबद्ध ] श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी, गन्धदेवी नाम से दश १० अध्ययन हैं । १२- वह्निदिशा उपाङ्ग, [ विपाकसूत्रप्रतिवद्ध ] निस, अत्रि, दह, वह, पगती, जुति, दसरह, दढरह, महाधनु, सतधनु, दसधनु, नामेसय के नाम से १२ अध्ययन हैं । इन पाँचो उपाङ्गों का एक नाम 'निरयावली ' है, और कल्पिका आदि पाँचो उपानो के . ५२ अध्ययन हैं । इनकी संपूर्ण मूलग्रन्थसंख्या ११०० है, इनकी वृत्ति ७०० श्री चन्द्रसूरिकृत है । संपूर्ण ग्रन्थसंख्या १८०६ है । I इस तरह बारह उपानों की मूलसंख्या २५४२० है और टीका की संख्या ६७०३६, और लघुवृत्ति ६०२८, चूर्णि ३३६०, संपूर्णसंख्या १०३२४४ है | दश पन्नाओं ( प्रकीर्णक ) की गाथा संख्या इस तरह है 1 १ - चउसरण पन्ना में ६३ गाथा हैं । २ आजरपच्चक्खाण पन्ना में ८४ गाथा हैं । ३ भत्तपच्चक्खाण पइना में १७२ गाथा हैं । ४ संथारग पड़ना में १२२ गाया है। ए तंडुलवेयाली पड़ना में ४०० गाया हैं । ६ चन्दविज्जगपइन में ३१० गाथा हैं । ७ देविन्दत्थव पन्ना में २०० गाथा हैं । ८ गणिविज्जा पइन्ना में १०० गाथा है । ए महापच्चक्खाण पन्ना में १३४ गाथा है * । १० समाधिमरण पन्ना में ७२० गाथा हैं। इन दश पन्नाओं की संपूर्ण गाथासंख्या २३०५ है और प्रत्येक में दश दश अध्ययन हैं, और ये दश पन्ना जी पैंतालीस आगम की गिनती में हैं । १ वीरस्तव पइन्ना गाया ४३ । २ ऋषिनाषित सूत्र संख्या ७५० । ३ सिद्धिमानृतसूत्र संख्या १५०, और इसकी टीका ७५० है । ४ दीवसागरपन्नत्ति संग्रहणी संख्या २५०, और इसकी टीका २५०० है । ए विज्ञापन्ना संख्या ८८०० ( कहीं २ पाई जाती ) है | ६ ज्योतिष्करणमक पइन्ना संख्या५००, इसकी टीका मलयगिरिकृत २४०० है, और २१ पादुका [ प्रानृतक ] | ७ गच्छाचार पन्ना, टीका विजयविमलगणिविरचित, मूझटीका संख्या ५८५० है, और ४ अधिकार हैं । ८ श्रङ्गचूलिया ग्रन्थसंख्या ८००, इसमें लिखा हुआ है कि “प्रार्यसुधर्मा स्वामी से उन के शिष्य जम्बूस्वामी ने पूछा कि ग्यारह अनों की अङ्गचूलिका किस वास्ते हैं ?" इस पर सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया कि- "जिस तरह आभूषणों से अङ्ग शोजित होते हैं उसी तरह चूलिका से एकादशाङ्ग शोजित हेती है, इस लिये निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को ये जानने के aree हैं और गुरुपरंपरागम से ग्रहण करने के योग्य है" । फिर जम्बू स्वामी ने पूछा कि - " गुरुपरंपरागम कैसा ? " । उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने कहा कि- "आगम तीन प्रकार के हैं- १ अन्तागम, २ अनन्तरागम, और ३ परंपरागम । अर्थ से तो अन् भगवान का अन्तागम है, और सूत्र से गणधरों का अन्तागम है । तदनन्तर गणधर शिष्यों का अनन्तरागम है, उसके बाद सभी का परंपरागम है "। और अङ्गचूलिका के अन्त में उपाचूलिका की चर्चा है कि-सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि - " सेसं उबंगचूलिया तो गहेयव्वं " अर्थात् अवशिष्ट जाग उपाचूलिका से लेना चाहिये । * कई लिखी प्रतियों में महापश्च वाण पन्ना के स्थान में ४३ गाथावाला वीरस्तव पन्ना लिखा है, किन्तु ऊपर कहे हुए दश पश्श्ाओं से पृथक् नी है परन्तु उनकी यहाँ आवश्यकता न होने से केवल नामनिर्देश ही किया है। * For Private Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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