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________________ ( ३२ ) ए-जगवती सूत्र (विवाहपन्नत्ति), शतक ४१, मूलश्लोकसंख्या १५७५२, और उसपर श्री अजयदेवसूरिकृत टीका ( sोणाचार्य से शोधी हुई ) १८६१६, चूर्णि पूर्वाचार्यकृत ४०००, संपूर्ण संख्या ३८३६८ है । संवत् १९६८ में दानशेखर उपाध्याय ने १२००० श्लोक संख्या की लघुवृत्ति बनायी है। ६ - ज्ञाताधर्मकथा सूत्र, अध्ययन १६, मूलश्लोकसंख्या ५५००, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका ४२५२ है। इस समय में १७ कयाएँ दिखायी देती है, किन्तु पूर्व समय में साढ़े तीन करोड़ कथाएँ थी ऐसी प्रसिद्ध है। ७-उपासकदशाङ्ग सूत्र, अध्यन १०, मूल लोकसंख्या ८१२, और इसपर अजयदेवसूरिकृत टीका ७००, संपूर्ण संख्या १७१२ है । - अन्तगमदशाङ्ग सूत्र, अध्ययन ए०, मूलश्लोकसंख्या ७००, और उसपर अजयदेवसूरिकृत टीका ३००, संपूर्णसंख्या १२०० है | U-अणुत्तरोत्रवाइयदशाङ्ग सूत्र, अध्ययन ३३, मूलश्लोकसंख्या २६२, और उसपर अजयदेवसूरिकृत टीका १००, संपूर्ण संख्या ३०२ है । १० - प्रश्नव्याकरण सूत्र, ए आश्रवद्वार और ५ सम्बरद्वाररूप १० अध्ययन, मूलश्लोकसंख्या १२५०, और उसपर जयदेवसूरिकृत टीका ४६००, संपूर्ण संख्या ५८५० है । ११ - विपाक सूत्र, अध्ययन २०, मूलश्लोकसंख्या १२१६, और उसपर अजयदेवसूरिकृत टीका ए००, संपूर्ण संरूपा २११६ है । संपूर्ण ग्यारह ग्रहों की मूलश्लोकसंख्या ३५६५७ है, और टीका ७३५४४ है, और चूर्णि २२७०० है, तथा निर्युक्ति ७०० है, और सब मिलकर १३२६०३ है । याचारा और सूत्रकृताङ्ग की टीका तो शीलानाचार्यकृत है और बाकी नवाजी की टीका अजयदेवसूरिकृत है, इसी लिये अजयदेवसूरि का नवाकीवृत्तिकार के नाम से उल्लेख किया जाता है; अजयदेवसूरिजी का चरित्र म० भ० ७०६ पृष्ठ में और 'सीलिंगायरिय' शब्दपर शीलाङ्गाचार्य की कथा देखना चाहिये । बारह उपाङ्गों के नाम, टीका, और संख्या इस तरह है १-नबवाई उपाङ्ग, ( आचाराङ्गप्रतिबन्ध ) मूलश्लोकसंख्या १२००, और उसपर अजयदेवसूरिकृत टीका ३१२५, संपूर्ण संख्या ४२२५ है । २-रायपसेण। उपाङ्ग, ( सूत्रकृताङ्गप्रतिबन्ध ) मूल श्लोक संख्या २०७८, और उसपर मलयगिरिकृत टीका ३७००, संपूर्ण संख्या ७७८ है । ३ - जीवानिगम उपाङ्ग, (स्थानाङ्गप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या ४७००, मलयगिरिकृत टीका १४०००, लघुवृचि ११००, और चूर्णि १५०० है, संपूर्ण संख्या २१३०० है । ४- पन्ना (प्रज्ञापना ) उपाङ्ग, (समत्रायाङ्गप्रतिवद्ध ) मूलश्लोकसंख्या 999, मलयगिरिकृत टीका १६०००, हरिप्रसूरिकृत लघुवृत्ति ३७२८ है, संपूर्ण संख्या २७५१५ है । ए-जम्बूद्रीपपन्नत्ति उपाङ्ग, ( जगवती प्रतिबद्ध ) मूलश्लोकसंख्या ४१४६, मलयगिरिकृत टीका १२०००, चूर्णि १८६० है, संपूर्ण संख्या १८००६ है । ६ - चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र, (ज्ञाताप्रतिवद्ध ) मूल श्लोकसंख्या २२००, मलयगिरिकृत टीका ए४११, लघुवृत्ति १००० है. संपूर्ण संख्या १२६११ है । 9- सूरपन्नत्ति सूत्र उपाङ्ग, ( ज्ञाताप्रतिवन्ध ) मूझसंख्या १२००, मन्नयगिरिकृत टीका ६०००, चूर्णि १०००, संपूर्ण संख्या १२२०० है | चन्द्रमइप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति दोनों मिलकर ज्ञाताप्रतिबद्ध हैं । G-कल्पिका उपाङ्ग, [ उपासकदशाङ्गप्रतिबद्ध ] काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेनकृष्ण, सहासेनकृष्ण के नाम से १० अध्ययन हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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