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________________ गया है और साथ में संस्कृत अनुवाद और उसका अर्थ हिन्दी में दिया गया है किन्तु अभिधानराजेन्द्र कोश की तरह शब्दों पर व्याख्या नहीं की हुई है। ३ सकलैश्वर्यस्तोत्र सटीक, ४ खापरियातस्करप्रबन्ध, ५ शब्दकौमुदी श्लोकबद्ध, ६ कव्याणस्तोत्र प्रक्रियाटीका, धातुपाठ श्लोकबद्ध, उपदेशरत्नसार गद्य ए दीपावली (दिवाली) कल्पसार गद्य, १० सर्वसंग्रह प्रकरण (प्राकृतगाथाबक) ११ प्राकृतव्याकरणविकृति । सूरीजी के संकलित संगीत ग्रन्थ१५ मुनिपति चौपाई, १३ अघटकुँवरचौपाई, १४ भ्रष्टरचौपाई, १५ सिद्धचक्रपूजा, १६ पञ्चकल्याणकपूजा, १७ चौवीसीस्तवन, २७ चैत्यवन्दनचौवीसी, १ए चौवीसजिनस्तुति । सूरीजी महाराज के रचित वालावबोध नाषाग्रन्थ२०-उपासकदशाङ्ग सूत्र बालावबोध, २१ गछाचारपयन्ना सविस्तर नाषान्तर, २५ कल्पसूत्र बालावबोध सविस्तर, ३ अष्टाहिकाव्याख्यान नाषान्तर, २४ चार कर्मग्रन्थ अक्षरार्थ, २५ सिझान्तसारसागर ( बोलसंग्रह), २६ तत्वविवेक, २७ सिझान्तप्रकाश, २७ स्तुतिप्रभाकर, श्ए प्रश्नोत्तरमालिका, ३० राजेन्द्रसूर्योदय, ३१ सेनप्रश्नवीजक, ३२ षड्ऽव्यचर्चा, ३३ स्वरोदयज्ञानयन्त्रावली, ३४ त्रैलोक्यदीपिकायन्त्रावली, ३५ वासमार्गणाविचार, ३६ षमावश्यक अक्षरार्थ, ३७ एकसौ आठ बोल का थोकमा, ३० पञ्चमीदेववन्दनविधि, ३ए नवपद ओली देववन्दनविधि, ४० सिद्धाचल नवाणुं यात्रादेववन्दनविधि, १ चौमासी देववन्दनविधि, ४५ कमलप्रनाशुधरहस्य, ४३ कथासंग्रह पञ्चाख्यानसार । इस प्रकार उत्तमोत्तम ग्रन्थ बनाकर सूरीजी महाराज ने जैनधर्मानुरागियों पर तथा श्तर जनों पर जी पूर्ण उपकार किया है। बमनगर के चौमासा पूरे होनेपर अपनी साधुमएमली सहित सूरीजी ने शहर 'राजगढ़' की ओर विहार किया था, इस समय आपके शरीर में साधारण श्वास रोग उग था । यद्यपि यह प्रथम जोर शोर से नहीं था तथापि उसका प्रकोप धीरे २ बढ़ने लगा, यहाँ तक कि औषधोपचार होने पर जी वह रोग शान्त नहीं हुआ, किन्तु श्वास की बीमारी अधिक होने पर भी आप अपनी साधुक्रिया में शिथिल नहीं हुए, और सब साधुओं से कहा कि-" हमारे इस विनाशी शरीर का भरोसा अब नहीं है, इसलिये तुमलोग साधुक्रियापरिपालन में दृढ रहना, ऐसा न हो कि जो चारित्र रत्न तुम्हें मिला है वह निष्फल होजावे, सावधानी से इसकी सुरक्षा करना, हमने तो अपना कार्य यथाशक्ति सिज कर लिया है अब तुम जी अपने आत्मा का सुधारा जिस प्रकार हो सके वैसा प्रयत्न करते रहना ”। इस प्रकार अपने शिष्यों को सुशिदा देकर सुसमाधिपूर्वक अनशन व्रत को धारण कर लिया और औषधोपचार को सर्वथा बन्द कर दिया। बस तदनन्तर थोमे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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