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________________ (2) प्रतिष्ठा करायी । सम्वत् १९३४ राजगढ़, १०३५ रतलाम, १९७३६ जीनमाल, २०३७ शिवगंज, १७३८ आलीराजपुर, १९७३० कूगसी, १०४० राजगढ़, और १९४१ का चौमासा शहर हमदाबाद में हुआ। इस चौमासे में आत्मारामजी के साथ पत्रद्वारा चर्चा वार्ता हुई और बहुत धार्मिक उन्नति जी हुई । सम्वत् १९४२ धोराजी,१९०४३ धानेरा, और १९०४४ का चौमासा' थराद' में हुआ । यहाँ श्री जगवतीजी सूत्र व्याख्यान में बाँचा गया, जिसपर सङ्घ ने जारी उत्सव किया और प्रति प्रश्न तथा उत्तर की पूजा की। सं० १९९४५ वीरमगाम, और १९४६का चौमासा सियाणा में हुआ, इस चौमासे 'धानराजेन्द्र कोष' बनाने का श्रारम्भ किया गया । सं० १९४१ में गुड़ा, १९४८ - होर, और १९४७ का चौमासा ' निबाहेमा ' में हुआ । इसमें ढूँढकपन्थियों के पूज्य नन्दरामजी के साथ चर्चा हुई, जिसमें दूढियों को परास्त करके साठ ६० घर मन्दिरमार्गी बनाये । सं० १९७५० खाचरोद, १०५१ और १९५२ का चौमासा ' निधानराजेन्द्रकोष ' के काम चलने से राजगढ़ही में हुए । सं० १९७५३ में चौमासा शहर 'जावरे ' में हुआ, यहाँ कार्तिक महीने में बड़े समारोह के साथ संघ की तरफ से अट्ठाई महोत्सव किया गया, जिसमें बीस हजार रुपये खर्च हुए और विपक्षी लोगों को अच्छी रीति से शिक्षा दी गयी. जिससे जैन धर्म की बहुत जारी उन्नति हुई । सं० १९९२४ का चौमासा शहर रतलाम में हुआ, यहाँ जी बाई महोत्सव बड़े धूमधाम से हुआ, जिस पर करीब दश हजार श्रावक और श्राविकाएँ आपके दर्शन करने को आई, और संघ की ओर से उनकी जक्ति पूर्ण रूप से हुई, जिसमें सब खर्च करीब बीस हजार के हुआ, विशेष प्रशंसनीय बात यह हुई कि पाखएकी लोगों को पूर्ण रूप से शिक्षा दी गयी, जिससे आपको बड़ा यश प्राप्त हुआ । सम्वत् १०५८ का चौमासा मारवाड़ देश के शहर 'आहोर' में हुआ, इस चौमासे में जी धार्मिक उन्नति विशेष प्रकार से हुई और इसी वर्ष में श्री होरसंघ की तरफ से 'श्रीगो पार्श्वनाथजी ' के बावन ५२ जिनालय (जिनमंदिर) की प्रतिष्ठा और अञ्जनशलाका थापढ़ी के करकमलों से करायी गयी, जिसके उत्सव पर करीब पचास हजार श्रावक श्राविकाएँ और मन्दिर में एक लाख रुपयों की श्रमद हुई। इस अञ्जनशलाका में नौ सौ ० जिनेन्द्र बिम्बों की अञ्जनशलाका की गयी थी, इतना नारी उत्सव मारवाड़ में पहिले पहिल यही दुआ । इतने मनुष्यों के एकत्र होने पर जी कुछ जीं किसीकी जो हानि नहीं हुई यह सब प्रजावपी का था । सं० १९९५६ का चौमासा शहर शिवगञ्ज में हुआ। जिस गच्छ की मर्यादा बिगड़ने न पावे इस लिये इस चौमासे में आपने साधु और श्रा वक संबन्धी पैंतीस सामाचारी ( कलमें ) जादर कीं, जिसके मुताबिक आजकल आपका साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघ बर्ताव कर रहा है । से सम्वत् १०५७ का चौमासा शहर सियाणा में हुआ । यहाँ श्रीसंघ की तरफ For Private Personal Use Only ⚫ Jain Education International महाराज www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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