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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 35 आस्फोतक, कोविदार, कुण्डल, कुण्डली, कुली, उद्दालक चमरिक, कुद्दाल और स्वल्पकेसर ये पर्याय कोविदार के हैं। (कैयदेव नि० ओषधि वर्ग० पृ० १७२) The STHAN शास्वा उत्पल उत्पल (उत्पल)थोडा नील क्षुद्र उत्पल जीवा० ३/२८६ प० १/४६ ईषच्छ्वेतं विदुः पद्ममीषन् नीलोथोत्पलम्। ईषद्रक्तं तु नलिनं क्षुद्रं तच्चोत्पलत्रयम्॥१३८॥ (धन्व०नि० ४/१३८ पृ० २१८) क्षुद्रोत्पल के तीन भेद हैं(१) ईषत् श्वेत पद्म (2) ईषत्नील उत्पल (3) ईषत्लाल नलिन, नाम से जाना जाता है। विवरण-उत्पल (जल में पकने वाला) धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १३९ डाईक उराल उराल (उदार) गुलूवृक्ष प०१/४४/३ विमर्श-पाइअसद्दमहण्णव में उराल शब्द का संस्कृत रूप उदार किया है-ओरालिय सरीर (औदारिक शरीर)। प्रस्तुत प्रकरण में उराल शब्द वनस्पति का वाचक है। उरालशब्द का वनस्पतिपरक अर्थ नहीं मिलता, इसलिए यहां उदार रूप ग्रहण कर अर्थ किया जा रहा है। उदार (पुं) गुलू नामक वृक्ष (बृहत् हिन्दी कोश) उत्पत्ति स्थान-गूलू के पेड भारत में प्रायः सर्वत्र जंगलों में विशेषतःकंकरीली या बालूवाली जमीन में पैदा होता है। विवरण-यह मुचकुंद कुल का एक मध्यम ऊंचाई का सदा हराभरा रहने वाला वृक्ष है। इसकी छाल चिकनी, साफ, मुलायम, श्वेत कागज जैसी होती है। शाखायें प्राय: पीली सी होती है। पत्र प्रायः शाखाओं के अग्र भाग पर समूह बद्ध, ९ से १८ इंच व्यास के, प्राय: ५ खंड युक्त किनारे वाले, पृष्ठ भाग श्वेत, सूक्ष्म रोगों से युक्त होते हैं। फूल बैंगनी छटा युक्त लाल, हरे या पीले रंग के। फल बडे बैर जैसे, ऊपर से रोमश पकने पर स्वाद में खटमीठे होते हैं। वसन्त ऋतु में पत्तों के झड जाने पर इसमें आम के बोर जैसा ही बोर आता है तथा उसी में उक्त फल लगते हैं। बीज फल में ३ से ६, घुघची जैसे होते हैं। वृक्ष की जड रक्त वर्ण की होती है। विदेशी पेडों से जिस प्रकार का कवीरा गोंद प्राप्त होता है वैसा ही गोंद प्रस्तुत प्रसंग के गुलू पेड से तथा पीली कपास पौधों से भी प्राप्त होता है। यह गोंद भी उक्त विदेशी कतीरा या ट्रागा कॉथ के स्थान में प्रयुक्त होता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ४२६) अन्य भाषाओं में नाम__ सं०-बालिका। हि०-गुलू, कुल्ली, कालरू, खडिया। म०-कांडोल, सारढोल, पाढरुख। गु०-खड़ियो, कड़ायो। बं०-बुली। ले०-Sterculia Urens (स्टेर क्यूलिया यूरेन्स)। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ४२६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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