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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश विमर्श-उद्दाल शब्द कुष्ठ अर्थ में केवल प्रस्तुत शब्द उत्पत्ति स्थान-लिसोडे के वृक्ष प्रायः समस्त भारत वर्ष कोष में मिलता है। अन्य कोषों तथा निघंटुओं में नहीं मिला में पाये जाते हैं। हिमालय प्रदेश के चिनाव से आसाम तक है। पूर्व के दो अर्थो में मिलता है। लिसोडावृक्ष अर्थ के लिए ५००० फीट की ऊंचाई तक,बंगाल के पर्वतीय प्रदेश, ब्रहमा, देखें उद्दालक शब्द। मध्य और दक्षिण भारत, राजस्थान में ग्रामों के किनारे, खेतों के किनारे और बगीचों में। भारतेतर चीन आदि देशो में भी उद्दालक यह बहुतायत से उपलब्ध होता है। विवरण-यह फलादि वर्ग और श्लेष्मान्तकादि कल का उद्दालक(उद्दालक) बड़ा लिसोडा वृक्ष जमीन से ३० से ४० फीट ऊंचाई में होता है। इसकी फैली जीवा० ३/५८२ हुई और ऊंची शाखायें होती हैं। इसकी छोटी शाखायें कुछ उद्दालक के पर्यायवाची नाम ललाई लिए हुए भूरे रंग की होती है। शरत् काल में पत्ते गिरते श्लेष्मातके भूतवृक्षः, पिच्छिलो द्विजकुत्सितः॥११८॥ हैं। काण्ड वक्र, ४ से ६ फुट तक की गोलाई में होता है। त्वक् वसन्तकुसुमः शेलुः, फलेलु लेखशाटकः। १/२ से ३/४ इंची, मोटी, धूसर वर्ण,लंबे भाग में कर्तित दाग विषघाती बहुवारः, शीत उद्दालक: सेलुः॥११९॥ । होते हैं। काष्ठ कुछ धूसर वर्ण का होता है। यह वृक्ष बहुशाखी श्लेष्मातक,भूतवृक्ष,पिच्छिल,द्विजकुत्सित,वसन्तकुसुम, होता है। पत्र शलाका के दोनों ओर होते हैं। १ से ४ इंच लंबे बोहोराले शेलु, फलेलु,लेखशाटक,विषघाती, बहुवार,शीत, उद्दालक, पत्र कोने से लंबा एवं किनारे अस्पष्ट होते है। पत्तों की कोंपल सेलु ये सब लिसोडे के पर्याय वाची हैं। लोक में यह गूंदी नाम सुचिक्कण और पत्ते कुछ खुरदरे होते हैं। पत्र दण्ड की ओर से प्रसिद्ध है। हत्पिण्डाकृति। पत्र की सिरायें ३ से ५, दंड १ से २ इंच लंबा (सटीक निघंटुशेष, वृक्षकांड १/११८,११९) होता है। फूल छोटा, उभय लिङ्ग, विशिष्ट श्वेत वर्ण, गुच्छ अन्य भाषाओं में नाम समूह में, पुष्प दण्ड में अनेक शाखायें होती हैं। फल भी गुच्छ हि०-लिसोड़ा बड़ा, निसोड़ा, लिटोरा, लटोरा, लफेड़ा, समूह में लगते हैं। फल में गुठली १/२ से १ इंच लंबी होती लफेरा। बं०-बहुबडा, बोहोदरी, बालफल। बंबई-बडगुंद, है। फल कच्ची अवस्था में हरे, पकने पर कुछ पीत वर्ण ललाई मोटाभोकर। गु०- बड़गूंद, पिस्तान, सपिस्तान। ता० लिए सफेद भूरे रंग के होते हैं। फल का गूदा चिकना, उज्ज्वल, अलिनमाविरी। ते०-नेक्केरा, बोचकू। फा०-सपिश्ता। अ० लस लसेदार, मीठा होता है। फल देखने में प्रायः सुपारी के दिबाक, मोखताह। मलय०-पेरिया विरी। कर्णा०-चेलु। समान।प्रत्येक फल में एक बीज होता है। इस वृक्ष में एक प्रकार उ०-अड़। कन्नड-मन्ना। अं०- Large Sebesten का गोंद भी लगता है। इसके मगज में से तैल निकाला जाता Plum(लार्जसेवेस्टनल्पम)।ले०-CordiaWallichii.G. है, जो सूंघने और लगाने के काम आता है। चैत्र मास में फूल Don (कोर्डिया बेलिचि)। आते हैं और ज्येष्ठ मास में फल पकते हैं। वर्षा में पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं। लिसोडा वृक्ष की दो जातियां होती हैं-बडा लिसोडा और छोटा लिसोडा। यथार्थत: लिगोडा फल के बडे और छोटे होने के कारण ही बडा और छोटा लिसोडा भेद किया गया है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० १६१, १६२) उद्दालक (उद्दालक) कोविदार जीवा० ३/५८२ उद्दालक के पर्यायवाची नाम आस्फोतक: कोविदारः, कुण्डलः कुण्डली कुली। उद्दालक श्चमरिकः, कद्दाल: स्वल्पकेशरः।। ९३३॥ लिसौटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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