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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०११) आमले के अन्दर की गुठली में तीन कोष होते हैं तथा प्रत्येक कोष में दो-दो त्रिकोणाकार बीज पाए जाते हैं। (धन्व० वनौ० वि० भाग १ पृ० ३६२) OVEM4 आमलग आमलग (आमलक) आमला, आंवला भ० २२।३ जीवा ११७२ देखें आमलक शब्द। Ear आमला. आय आय (आय) आय भ० २३।३ प० १४७ विमर्श-आय कुहण (भूमि स्फोट) वर्ग के अन्तर्गत है। इस वर्ग की कुछेक वनस्पतियों के नाम उपलब्ध हैं। लेकिन इनके प्रकारों की संख्या हजारों में है। इसलिए लगता है आय नामक एक कुहण वनस्पति भी होनी चाहिए। भूमि विस्फोट-वर्षाऋतु में जमीन को फोड़कर फूट उत्पत्ति स्थान-भारतवर्ष के प्रायः सभी उष्ण प्रदेशों में निकलने वाले कुकरमुत्ते, बिल्ली के टोप अथवा झोंप फोडों बागी और जंगली दोनों प्रकार का पाया जाता है। विशेष कर का यह वर्ग है। इस वर्ग की वनस्पतियों का अभ्यास क्लिष्ट उत्तर भारत, अवध, बिहार, और पूर्वी प्रदेशों में इसकी उपज है। वर्षा में सड़ी हुई लकड़ियों पर और वृक्षों पर इस वर्ग की अधिक है। हिमालय पहाड के नीचे जम्बू से पूर्व की ओर तथा वनस्पतियां उग जाती हैं। चमडे, कागज, रोटी आदि पर सफेद दक्षिण की ओर सिलोन तक उत्पन्न होता है। चीन एवं मलय अस्तर जैसी फफूंद जम जाती है वह भी इसी वर्ग की वनस्पति द्वीप में भी मिलता है। है। इस वर्ग की कुकुरमुत्ते जैसी कुछ वनस्पतियां विषैली हैं। विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का सुहावना होता है कुछ शाक के रूप में खाई भी जाती हैं। काश्मीर में लछी अथवा किन्तु जंगली वृक्ष ऊंचे कद का बड़ा होता है। छाल चौथाई गुच्छी नाम की वनस्पति इसके शाक के लिए खूब प्रसिद्ध है। इंच मोटी हल्के खाकी रंग की एवं छिलकेदार होती है। लकड़ी संसार में फूग के २८५० कुटुम्ब हैं जिनमें ७५००० लाल रंग की और मजबूत होती है। इसमें सारभाग नहीं होता। पचहत्तर हजार प्रकार की वनस्पतियां हैं। १९३८ ई० वर्ष में पत्ते छोटे-छोटे इमली के पत्तों के समान और फूल लाई के भारत में फूग की ३४८० किस्में गणना में आई थीं। प्रतिवर्ष दानों के समान हरापन युक्त पीले रंग के गुच्छों में शाखाओं भारत के विभिन्न राज्यों में से फूग की अनेक किस्मों की में सटे रहते हैं। वसन्त ऋतु में जब इस के पुराने पत्ते झड़ जाते जानकारी प्राप्त होती जाती है। (निघंटु आदर्श उत्तरार्द्ध पृ० ७७८) हैं तब वृक्ष पत्रशून्य दिखाई पड़ता है। फूलों में नीबू के फूल के समान मन्द सुगंध आती है। फल डालियों से सटे हुए दिखाई आलिसंद पड़ते हैं। वे गोल चमकदार और छ रेखाओं से युक्त होते हैं। आलिसंद ( )चवला, राजमाष। प० १४५।१ सूखने पर काले रंग के होकर फांके पथक-पथक हो जाती विमर्श-आलिसंद शब्द संस्कृत भाषा का शब्द नहीं है। हैं और साथ ही गुठली भी फट जाती है। उनसे त्रिकोणाकार यह महाराष्ट्री भाषा का शब्द है। टीकाओं में इसका अर्थ चवला किया गया है। इसलिए यहां चवला का अर्थ ग्रहण छोटे-छोटे बीज निकलते हैं। बीजों से तेल निकलता है। बीज किया जा रहा है। देखें आलिसिंदग शब्द। से ही इसके पौधे उत्पन्न होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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