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________________ 274 जैन आगम : वनस्पति कोश घा सत्तिवण्ण अगंधि। मा०-हरकय। मलय०-चुवन्ना, अविलपोरी। फा०-छोटा चांदा। ले०-Rauwolfia Serpentina benth सत्तिवण्ण (शक्तिपर्ण) छतिवन, सतौना (रावोल्फिया सर्पेटाइना) Fam. Apocynaceae (ठा० १०/८२/१ भ० २२/३ ओ० ६ जीवा० ३/५८३) (एपोसाइनेसी)। शक्तिपर्णः ।। सप्तपर्ण वृक्षे। ___ उत्पत्ति स्थान-इसके क्षुप हिमालय के निचले (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १०१६) प्रदेशों में सरहिन्द से लेकर पूर्व में आसाम तक विशेषकर देखें सत्तवण्ण शब्द। देहरादून, सिवालिक पहाड़ी भाग तथा रोहिलखंड, उत्तरी अवध और गोरखपुर के हिमालय के निचले भाग सत्तिवण्ण वण में ४००० फीट की ऊंचाई तक एवं कोंकण, उत्तरी सत्तिवण्ण वण (शक्तिपर्णवन) छतिवन का वन कनारा, दक्षिणी महाराष्ट्र, मद्रास के पूर्वी तथा पश्चिमी जीवा० ३/५८३ घाट में ३००० फीट तक और विहार के अनेक भाग में, देखें सत्तवण्ण शब्द। उत्तरी एवं मध्य बंगाल, वर्मा, श्याम और जावा आदि स्थानों में पाये जाते हैं। विवरण-इसका क्षुप छोटा आकर्षण १ से २ फीट सप्पसुगंधा ऊंचा क्वचित् ३ फीट तक ऊंचा होता है। पत्र हरे सप्पसुगंधा (सर्पसुगंधा) नाकुली भ० २३/१ चमकीले, ३ से ७ इंच लंबे, १५ से २.५ इंच चौड़े, सर्पसुगंधा (न्धिका) स्त्री। सर्पगन्धायाम् भालाकार या व्यस्तभालाकार, तीक्ष्णाग्र या लम्बाग्र आधार . (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ११०५) की ओर पतले होकर १/२ इंच पत्रनाल से युक्त एवं टहनी सर्पगंधा (न्धिनी) नाकुली नाम महाकन्दशाके के प्रत्येक गांठ पर ३ से ४ के चक्रों में (Whorled) । पुष्प (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ११०४) श्वेत या साधारण गुलाबी गुच्छों में, २ से ४ इंच लंबे पुष्प सर्पसुगंधा (सुगन्धिका) के पर्यायवाची नाम दंडों पर। फल छोटे मांसल एक या दो-दो जुड़े हुए, नकुलेष्टा महावीर्या, तथा सर्पसुगन्धिका । पकने पर बैंगनी काले । मूल सर्प की तरह टेढ़ा, मेढ़ा, विषघ्नी सुवहा सर्पगन्धा चीरितपत्रिका ।।७७५ ।।। करीब १६ इंच तक लंबा, ३/४ इंच मोटा, खुरदरा, सुगन्धा नाकुली सर्पलोचना गन्धनाकुली कुछ-कुछ झुर्रियों से युक्त, शाखाओं से युक्त और उस सर्पकंकालिका ज्ञेया सुनन्दा विषदंष्ट्रिका।।७७६ ।। पर लंबाई में धारियां रहती हैं। इसे तोड़ने पर भग्न छोटा नकुलेष्टा, महावीर्या, सर्पसुगन्धिका, विषघ्नी, एवं अनियमित । मूल की छाल धूसरित पीत तथा अन्दर सवहा, सर्पगंधा, चीरितपत्रिका, सगन्धा, नाकली. का काष्ठ श्वेताभ, स्वाद में अत्यन्त कडवा तथा गंधहीन। सर्पलोचना गन्धनाकुली, सर्पकंकालिका, सुनंदा, (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०८२,८३) विषदंष्ट्रिका ये १४ नाम नाकली के पर्याय हैं। (कैयदेव०नि० औषधिवर्ग० पृ० १४३) सप्फाय अन्य भाषाओं में नाम सप्फाय ) प० १/४७; १/४८/५० हि०-धवलबरुआ, नाकुली कंद, नाई, हरकाई विमर्श-सप्फाय शब्द का वानस्पतिक अर्थ नहीं चन्द्रा, रास्नाभेद, छोटा चांद । बं०-नाकुली, गन्धरास्ना, मिलता है। प्रज्ञापना १/४८/५० के पाठान्तर में सप्पास चन्द्र। उडी०-धनवरुआ, धवलवरुआ, सनोचाडो शब्द है, उसका अर्थ मिलता है। इसलिए यहां सप्पास विहार०-धनवरुआ, धवलवरुआ, सनोचाडो।। शब्द ग्रहण कर रहे हैं। केवल वैद्यक शब्दसिंधु कोष में मा०-अडकई, चन्द्र। क०-सूत्रनाभि। तेल-पाताल संस्कृत शब्द सप्ताश्व मिलता है जिसका प्राकृत रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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