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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 265 बं०-पद्मकाष्ठ। म०-पद्मकाष्ठ, पद्मक। गु० विहेलग पद्मकनुं लाकडु, पद्मकाष्ठ। कo-पद्मक। पं0 विहेलग (विभीतक) बहेडा भ० २२/२ चभिअरि। लिपचा-कोंगकी। अं0-Mild Himalaya विमर्श-प्रज्ञापना १/३५/२ में बिभेलय शब्द है। Cherry (माइल्ड हिमालय चेरी)। ले०-Prunus puddum भगवती (२२/२) में उसी स्थान पर विहेलग शब्द है। Roxb (प्रनस् पडुम राक्सब्)। हे और भे का अंतर है। बि और वि में अंतर होने पर उत्पत्ति स्थान--यह गरम हिमालय में शिमला, गढ़वाल से सिक्कम और भूटान तक एवं दक्षिण में कुडाई, भी समान है। इसलिए यहां बिभेलय का अर्थ ही मान्य कर रहे हैं। कनाल और उटकमंड में पाया जाता है। देखें बिभेलय शब्द। विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का अचिर स्थायी होता है। छाल फीके भूरे रंग की या कालापन युक्त भूरे रंग की और चमकीली होती है। इससे पतली चमकीली पपडियां छूटती रहती हैं। काष्ठसार रक्ताभ तथा सुगन्ध वीरण युक्त होता है। पत्ते ३ से ५ इंच लंबे, १ से १.५ चौड़े, भालाकार, लट्वाकार, लंबे नोक वाले, चिकने और दोहरे वीरण (वीरण) गांडर घास भ० २१/१८ प० १/४१/१ दांतों वाले होते हैं। फूल सफेद गुलाबी या लाल रंग के वीरण के पर्यायवाची नामआते हैं और पतझड़ के बाद नवीन पत्ते निकलने के पहले स्याद वीरणं वीरतरु, र्वीरञ्च बहुमूलकं ।।४।। ही खिल जाते हैं। फल छोटे-छोटे गोलाकार या अंडाकार वीरण, वीरतरु, वीर और बहुमूलक ये वीरण होते हैं और वे पीले या गुलाबी रंग के दिखाई पड़ते हैं। अर्थात् गांडर घास के नाम हैं। इन फलों को लोग खाते हैं। इनसे एक प्रकार का मद्य अन्य भाषाओं में नामबनाते हैं। हिo-वीरन, गांडर, बेना । बंo-वेणर । म०-वाला। (भाव०नि० कर्पूरादिवर्ग पृ० २०२, २०३) गु०-वालो । कo-मुडिवाल । ते०-वेट्टिवेलु ता०-वेट्टिवेर । फा०-रेशये वाला, बीखेवाला। अंo-Cuscus grass विमा (कस्कस ग्रास)। ले०-Andropogon Muricatus Retz. (एन्ड्रोपोगोल् म्यूरिकॅटस् रेझ) Vetiveria Zizanioides विमा (विमल) पद्म काष्ठ भ०२१/१७ (Linn) Nash (वेटिवेरिया झाइझेनिओइडिस् (लिन) नॅश) विमर्श-प्रज्ञापना (१/४१/२) में विमय शब्द है। Fam. Gramineae (ufa-ft) उसी के स्थान पर भगवती सूत्र (२१/१७) में विमा शब्द उत्पत्ति स्थान-यह इस देश के प्रायः सब प्रान्तों है। इसलिए विमा की छाया विमल करके पद्मकाष्ठ अर्थ में पाया जाता है। यह अधिकतर खुले हुये दलदल वाले किया जा रहा है। स्थानों में होता है। देखें विमय शब्द। विवरण-तृणजातीय औषधि का क्षुप २ से ५ फुट तक ऊंचा एवं दृढ़ होता है। यह गुच्छबद्ध और समूह विहंगु बद्ध होकर उगता है। पत्ते सरकण्डे के समान १ से २ फुट लंबे और पतले होते हैं। ये दो कतारों में तथा आधार विहंगु ( ) भ० २१/१६ प० १/४८/४६ पर परस्पराच्छादित रहते हैं। मूलीय पत्र कुछ अधिक लंबे विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं तथा शब्द कोशों में रहते हैं। मध्य शिरा दबी हुई तथा पत्तों के किनारों पर विहंगु शब्द का अर्थ नहीं मिला है। दूर-दूर पर तीक्ष्ण कांटे रहते हैं। फूलों का घनहरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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