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________________ 258 जैन आगम : वनस्पति कोश वज्ज वज्ज (वज्र) वज्रकंद प०१/४८/७ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में वज्ज शब्द कंदवर्ग के साथ है। इसलिए यहां वज्ज शब्द को वज्जकंद के रूप में ग्रहण कर रहे हैं। देखें वज्जकंद शब्द । वज्जकंद वज्जकंद (वज्रकन्द) शकरकंद ___ भ०७/६६ जीवा०१/७३ उत्त०३६/६८ वज्रकंद पुं। कंदविशेष। शकरकंद। (शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ०१५६) वज्रकन्द के पर्यायवाची नाम सुरेन्द्रको वज्रकन्दो, मुआतं तालमस्तकम्।।। सुरेन्द्र, वज्रकन्द ये वज्रकन्द के पर्याय हैं। तालमस्तक का पर्याय मुआत है। (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग०पू०६३६) विल्लिकिलांगु। तु०-केलागेदा। मल०-कपाकालेंगा। कन्नड०-गेनासु । कर्णाo-केपिन हेंडल, विलय हेंडल। उडी0-धराआलु । अं0-Sweet potato (स्वीट पोटेटो)। ले०-Ipomoea Batatas lam (इपोमिया वटाटाज)। उत्पत्ति स्थान-इसका मल स्थान अमेरीका है और सारे भारत में इसकी कृषि की जाती है। विवरण-यह शाकवर्ग और त्रिवृत्तादि कुल की एक लता होती है |कन्द सफेद और लाल दो तरह के होते हैं। लता जमीन में बोयी जाती है और लता पर समय-समय पर मिट्टी चढ़ाई जाती है और कृषि वर्षा में की जाती है। कंद आश्विन कार्तिक में मिट्टी को खोदकर निकाले जाते हैं। शकरकंद भारत में सब ओर खाने के काम में लिया जाता है। पत्र कलमी शाक या नाड़ी शाक के मानींद । पुष्प १ इंच लम्बा, बैंगनी, पुष्पदल स्थानों में अस्पष्ट होते हैं। पुंकेसर पुष्प के भीतर होती है। गर्भाशय ४ विभाग युक्त । बीज रोमयुक्त । यह दो प्रकार का होने से लाल या गुलाबी जाति वाले को लालशकरकंद और श्वेतवर्ण कंद को शकरकंद कहते हैं। शीतकाल में फूल आते हैं। भारतवर्ष में इसके फल नहीं होते। (धन्व० वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०२०४) कपORIA EEN वट्टमाल वट्टमाल ( जीवा० ३/५८२ विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं और शब्द कोशों में वट्टमाल शब्द का वनस्पति परक अर्थ नहीं मिला है। पत NE D... वड 400. Ipomoea Botatus Lamk. (मकवकम जानू ) अन्य भाषाओं में नाम हि०-शकरकंद, मिताआलु । बं०-शकरकंद आलु, रांगाआलु। गु०-साकरिया, रताल। म०-रतालु। सिंध-गाजर लाहौरी। उर्द-शकरकंद। पं0सरवरकंद। फा०-लर्दक, लाहौरी जमीकन्द, रगद ठा०८/११७/१भ०२२/३५०१/३६/१ वट के पर्यायवाची नाम वट: रक्तफलः शृङ्गी, न्यग्रोधः स्कन्धजो ध्रवः । क्षीरी वैश्रवणो वासो, बहपादो वनस्पतिः ।।१।। वट, रक्तफल, शृंगी, न्यग्रोध, स्कन्धज, ध्रुव, क्षीरी, वैश्रवण, वास, बहुपाद, वनस्पति ये सब बरगद के संस्कृत नाम हैं। (भाव०नि० वटादिवर्ग०पृ० ५१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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