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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 257 Cordifolia (Willd) Miers (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया मायर्स) Fam. Menispermaceae (मेनिस्पर्मेसी)। पुष्प ५ है। व्याघ्र शब्द के वनस्पतिवाचक दो अर्थ हैं-करअवृक्ष और लालएरण्ड । व्याघ्रतरु का अर्थ है लाल एरण्ड। ऊपर के दो शब्दों में लालएरण्ड अर्थ दोनों शब्दों में है। इसलिए यहां लाल एरण्ड अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। व्याघ्र के पर्यायवाची नाम रक्तैरण्डोऽपरो व्याघ्रो हस्तिकर्णी रुवुस्तथा। उरुवको नागकर्णचञ्चरुत्तानपत्रकः ।।५६ ।। करपर्णो याचनक: स्निग्धो व्याघ्रदलस्तथा तत्करचित्रबीजश्च हस्वैरण्डस्त्रिपश्चधा।।५७।। दूसरा रक्त एरण्ड हैं, रक्तैरण्ड, व्याघ्र, हस्तिकर्णी रुवु, उरुवुक, नागकर्ण, चञ्चु, उत्तानपत्रक, करपर्णी, याचनक. स्निग्ध, व्याघ्रदल, तत्कर, चित्रबीज तथा हस्वैरण्ड ये सब लाल एरण्ड के पन्द्रह नाम हैं। (राज०व०८/५६, ५७ पृ०२४३) हस्वैरण्ड ये सब लाल एरण्ड के पन्द्रह नाम हैं। वच्छाणी वच्छाणी (वत्सादनी) गिलोय, लतागुडूची प०१/४०/४ वत्सादनी के पर्यायवाची नामगुडूची मधुपर्णी स्यादमृताऽमृतवल्लरी।।। उत्पत्ति स्थान-गिलोय प्रायः सब प्रान्तों के जंगल छिन्ना छिन्नरुहा छिन्नोद्भवा वत्सादनीति ।।६।। झाड़ियों में पाई जाती है विशेषकर गरम प्रान्तों में अधिक जीवन्ती तन्त्रिका सोमा, सोमवल्ली च कुण्डली होती है। देहरादून और सहारनपुर के जंगलों में बहुत चक्रलक्षणिका धीरा, विशल्या च रसायनी।।७।। पायी जाती है। चन्द्रहासा वयस्था च, मण्डली देवनिर्मिता। विवरण-इसकी बहुवर्षायु चिकनी एवं मांसल गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, अमृतवल्लरी, छिन्ना, लता बहुत विस्तार में वृक्षों पर फैल जाती है। शाखाओं छिन्नरुहा, छिन्नोद्भवा, वत्सादनी, जीवन्ती, तन्त्रिका, से डोरे के समान शोरियां निकाल कर भूमि की ओर सोमा, सोमवल्ली, कुण्डली, चक्रलक्षणिका, धीरा, लटकती है। पत्ते पान के समान, २ से ४ इंच के घेरे विशल्या, रसायनी, चन्द्रहासा, वयस्था, मण्डली, देवनिर्मिता में, गोलाकार, नुकीले, चिकने, पतले । ७ से ६ शिराओं ये सब संस्कृतनाम गिलोय के हैं। से युक्त एवं १ से ३ इंच लम्बे पर्णवृन्त से युक्त होते हैं। अन्य भाषाओं में नाम प्रायः वसंतऋतु में इसके पुराने पत्ते पीले होकर गिर जाते हि०-गिलोय, गुरुच, गुडुच । बं०-गुलंच, पालो। हैं और ज्येष्ठ तक नवीन पत्ते निकल आते हैं। उसी समय म०-गुलवेल, गरुडबेल । गु०-गलो। क०-अमरदवल्ली, हरापन युक्त पीले रंग के अथवा केवल पीले रंग के फूलों अमृतवल्ली। ते०-तिप्पतीगे। ता०-शिन्दिलकोडि, के गुच्छे आते हैं। फल मटर के समान होते हैं और पकने अमृडवल्ली। उ०-गुलंचा | प०-गिलो । मल०-अम्रितु। पर ये लाल हो जाते हैं। बीज कुछ टेढे तथा चिकने होते गोआ-अमृतवेल । फा०-गिलोई, गिलोय । अ०-गिलोइ। हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग०पृ०२७०) अं0-Tinospora (टिनोस्पोरा)। ले०-Tinospora Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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