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________________ जैन आगम वनस्पति कोश वंश के पर्यायवाची नाम वंशो वेणु र्यवफलः, कार्मुकस्तृणकेतुकः । त्वक्सारः शतपर्वा च, मस्करः कीचकस्तथा । ।१२२ ।। वंश, वेणु, यवफल, कार्मुक, तृणकेतुक, त्वक्सार, शतपर्वा, मस्कर और कीचक ये वंश के पर्याय हैं । ( धन्व० नि०४ / १२२ पृ०२१४ ) अन्य भाषाओं में नाम हि० - वांस । गु० - वांस । म० - बांबू । बं०- बांश । ते० - बेदरू, बोंगा। ता० - मुंगिल । कोल० - कटंगा । मा० - बांब । सन्ताल० - माट । अ० - कसब । अं०Bamboo (बांबू) । ले० - Bambusa arundinacea Willd (बांबुसा अरुन्डिनेसिया विल्ड) Fam. Gramineae (ग्रॅमिनी) । बाँस. उत्पत्ति स्थान- बांस इस देश के प्रायः सब प्रान्तों में उत्पन्न किया जाता है। छोटी-छोटी पहाड़ियों के आसपास आप ही आप जंगली भी उत्पन्न होता है। विवरण- छोटे, बड़े, मोटे, पतले, ठोस और पीले इन भेदों से बांस कई प्रकार का होता है। इसकी ऊंचाई ३०-४० से १०० फीट तक होती है और मोटाई ३-४ से Jain Education International १२- १६ इंच तक होती है। इसके पत्ते से १.५ इंच चौड़े और ५ से ६ इंच तक लम्बे होते हैं। प्रायः बांस का वृक्ष पुराना होने पर फूलता फलता है । कोई-कोई वांस अवधि से पूर्व ही फलने फूलने लगता है। इसके फूल छोटे-छोटे सफेद होते हैं। फल जइ के आकार के दिखाई पड़ते हैं। इसको वेणुबीज कहते हैं। इसकी कई अन्य जातियां होती हैं। (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ०३७६, ३७७) वसाणिय वंसाणिय ( भ०२३/४ विमर्श - प्रज्ञापना १/४७ में वंसाणिय शब्द के स्थान पर 'वंसी णहिया' ये दो शब्द हैं । वंसाणिय का वानस्पतिक अर्थ नहीं मिलता है। उन दोनों शब्दों का अर्थ मिलता है । इसलिए उन दोनों शब्दों का ग्रहण किया गया है । देखें वंसी और णहिया शब्द । 255 वंसी वंसी (वंशी) वंशलोचन वंशी स्त्री । वंशलोचनायाम् । प०१/४७ वैद्यकनिघुट । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६२५) तुगाक्षीर्यपरा वांशी, वंशजा वंशरोचना।।२१८।। वंशक्षीरी तुगा शुभ्रा, वंश्या वंशविवर्द्धनी । दूसरी तुगाक्षीरी वांस से (वंशलोचन) निकलती है । इसके वांशी, वंशजा, वंशरोचना, वंशक्षीरी, तुगा, शुभ्रा, वंश्या, वंशविवर्धिनी ये पर्याय हैं। For Private & Personal Use Only (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग पृ०४४) विवरण- मादा जाति के जो मोटे पीले एवं पहाड़ी वांस होते हैं जिन्हें नजला वांस कहते हैं, उनके भीतर का जो श्वेतरस सूखकर कंकर जैसा हो जाता है उसे ही वंशलोचन कहते हैं। वांसों का जंगल जब काटा जाता है, जिस वांस की पोरी में यह होता है उस वांस के उठाने धरते समय इसके रवे भीतर खडकने से पता चल जाता है कि इस वांस की पोरी में वंशलोचन है, उसे चीर कर निकाल लेते हैं । यह असली वंशलोचन बहुत प्राचीन काल में भारत में ही वांसों से प्राप्त किया जाता था। कहा जाता www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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