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________________ 254 जैन आगम : वनस्पति कोश रंग की होती है। यह दलदार कुछ पोची और अन्दर से वञ्जल-पु०। वनस्पति० वेतसः सुश्रुत चिकित्सा ५. लाल, गंध कडवी और स्वाद कषैला कड़वा होता है। ८ अष्टांग संगह सूत्र १६.३५ अष्टांग हृदय सूत्र १५.४१) शाखाओं की छाल भूरे सफेद रंग की होती है । शाख पर जलवेतस (आयुर्वेदीय शब्दकोश पृ०१२५५) अनियमित छापें और सक्ष्म छीटें होते हैं। पत्र एकान्तर वञ्जल के पर्यायवाची नामआये हए होते हैं। ये ज्यादा करके शाखाओं के सिरे पर वेतसो निचुलः प्रोक्तो, वजुलो दीर्घपत्रकः । घने होते हैं | पत्र नीम के पत्तों की तरह सली अर्थात् कलनो मअरीनम्रः, सुषेणो गन्धपुष्पकः ।।१०६ ।। मुख्य शलाका पर आये हुए होते हैं । शलाका मूल में मोटी वेतस, निचुल, वझुल, दीर्घपत्रक, कलन, मअरीनम्र और आगे जाकर पतली होती जाती है। ये ८ से २० इंच सुषेण और गन्धपुष्पक ये वेतस के पर्याय हैं। लंबी होती है। इन पर ६ से २० पान आमने सामने जोड़ी (धन्व०नि० ५/१०६ पृ०२५२) से आये हुये हाते हैं। पुष्पमंडल पत्रकोण से और शाखाओं अन्य भाषाओं में नामके किनारे पर आये हुए होते हैं। फूल हरापन लिये सफेद हिo-जयमाला. सकलवेत. बंद। म०-वालअ । १/४ इंच से ३ लाइन व्यास का और नीम के फूल की बं०-पानिजामा। ता०-अत्रपलै। ते०-एतिपाल। गंध से मिलती मीठी गंध वाले होते हैं। पुंकेसर १० होती फा०-बेदसादा, बेदलैला । अ०-खिलाफ, सफसाफ। हैं। ये चक्राकार आई हुई होती हैं। स्त्री केसर १ होती ले०-Salix tetraspermaRoxb (सॅलिक्स टेट्रास्पर्मा राक्स) है। गर्भाशय ५, पोल का हरे रंग का होता है। नलिका Fam. Salicaceae (सॅलिकॅसि)। छोटी और सिरे पर चौड़ी और रसभरे मुख वाली होती उत्पत्ति स्थान-इसका वक्ष प्रायः नदीनालों के है। फल बीच में चौड़े और दोनों सिरों पर थोड़े संकड़े, किनारे पाया जाता है। हिमालय में ६००० फीट की ऊंचाई हरे, चमकीले और पीलास लिये हुए हरे रंग के होते हैं। तक यह होता है। काश्मीर तथा पश्चिमोत्तर प्रान्त में इसे बीज चिपटे १/२ इंच लम्बे और कुछ कम चौड़े होते हैं। लगाते हैं। इस बीज के दोनों सिरे, इस पर आया हुआ सफेद पड़ विवरण-इसका वृक्ष साधारण ऊंचा तथा सुन्दर का किनारा बढ़ा हुआ होता है। ऐसे किनारे वाले बीज होता है । छाल कृष्णाभ, तन्तुमय, चिमड़, कड़वी, कषाय को अंग्रेज वनस्पति शास्त्री 'पंख वाले बीज' यह नाम तथा कुछ सुगंधित होती है। पत्ते ३ से ६ इंच लम्बे, दिया है । मींगी पतली, चमकती और कड़वी होती है परन्तु रेखाकार-भालाकार चिकने, पत्रोदर हरा, पत्रपृष्ठ सफेद कड़वायन जीभ पर लम्बे समय तक नहीं रहता। घाव एवं पत्रवृन्त लाल रंग का होता है। पुष्प सफेदी लिये को जल्दी रोपण करती है इसलिए रोहिणी नाम है। व्रण पीले और कुछ सुगंधित मंजरियों में आते हैं। फल करीब को जल्दी भरकर नयी चमडी जल्दी ले आती है इसी ५ इंच लम्बा होता है। प्रत्येक फल में ४ से ६ बीज होते से चर्मकरी कहते हैं। हैं। इसकी छाल एवं पत्र का चिकित्सा में उपयोग किया (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०११६, ११७, ११८) जाता है। इसके लचीले पतले काण्ड से टोकरियां बनायी जाती हैं। इसकी अन्य उपजातियों को वेत, लैला, मंजनूं ल्हसणकंद तथा भैंसा आदि नामों से पुकारा जाता है। ल्हसणकंद ( ) लहसुन प०१/४८/४३ (भाव०नि०गुडूच्यादिवर्ग०पृ०३६३) देखें लसणकंद शब्द। वंस वंजुल वंस (वंश) वांस वंजुल (वझुल) जल वेतस, जलमाला भ०२१/१७ प०१/४१/२ ठा०१०/८२/१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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