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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 245 इसके कच्चे फल का रंग नीला और पकने पर लाल हो जाता है। (शा०नि० पुष्पवर्ग० पृ० ३८४) विमर्श-लाल रंग की उपमा के लिए रत्तासोग शब्द का प्रयोग हुआ है। रत्तुप्पल रत्तुप्पल (रक्तोत्पल) लाल कमल रा० २७ जीवा० ३/२८० प० १७/१२६ रक्तोत्पल के पर्यायवाची नाम राजीवं पृष्करं रक्तमरविन्दं महोत्पलम।।१४४७।। मनोरमं श्रीनिकेतं, कमलं नलिनं नलम। रक्तोत्पलकोकनदं, हल्लक रक्तसंधिकम् ।।१४४८।। राजीव, पुष्कर, रक्त, अरविन्द, महोत्पल, मनोरम, श्रीनिकेत, कमल, नलिन, नल, कोकनद, हल्लक, रक्तसंधिक ये रक्तोत्पल के पर्याय हैं। (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग० पृ०२६८) सरमौर और शिमला की पहाड़ियों पर यह विशेष पाया जाता है। इसका कंद लहसुन के कंद के एक भाग के समान, बैल के सींग जैसा व हरे रंग का होता है, पत्ते हल्दी के पत्तों जैसे किन्तु आकार में छोटे व पतले होते हैं। कन्द में भुसी होती है, यह बारह वर्ष हरा रहता है। कन्द के निम्न भाग में ३ या ४ बारीक सूत्र से होते हैं, जो भुसी के अन्दर पाये जाते हैं। वर्षा व शरद में ही हरे भरे रहते हैं, फिर पीले हो जाते हैं। जब नवजात ऋषभक के पौधे का डण्ठल भमि छोड़कर कुछ ऊंचा बढ़ता है तब कई इंच तक उसक रंग फीका लाल होता है। यह बात जीवक में नहीं पायी जाती। ऋषभक के कंद नीचे केवल दो मुख्य जड़ें होती हैं और वे छोटी-छोटी होती हैं। आकार में लहसुन की समानता रखता है। पत्ते पतले होते हैं, घास की भांति सत्त्व रहित होते हैं, हिमालय में पाया जाता है, बैल के सींग के समान है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ०५३२, ५३३) देखें जीवग शब्द। रसभेय रसभेय (ऋषभक) ऋषभक, अष्टवर्ग में एक। प० १/४८/५ ऋषभक के पर्यायवाची नाम ऋषभो वृषभो धीरो, विषाणी द्राक्ष इत्यपि। ऋषभ, वृषभ, धीर, विषाणी, द्राक्ष ये ऋषभक के पर्याय हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०६१) अन्य भाषाओं में नाम सं०-ऋषभ, वृषभ, धीर, विषाणी, द्राक्ष, मातृक, बल्लर, नप, कामद, वीर, ऋषिप्रियाले०-Carpopogon Pruriens (कार्पोपोगान पुरिएन्स)। विवरण-वैद्य कवि पं०-कलानंदपंतसोलन से लिखते हैं कि मैं कई वर्षों से एक कन्द का प्रयोग कर रहा हूं। मैं इसे ऋषभक समझता हूं, क्योंकि शास्त्रवर्णित सभी गुण इसमें मिलते हैं। यह ४५०० फुट की ऊंचाई से लकर ६ हजार फुट तक मिला, इससे ऊपर पर्वतों पर जाने का मुझे अवसर न मिला। रियासत टिहरी, रायरुक्ख रायरुक्ख(राजवृक्ष)अमलतास ओ०६ जीवा० ३/५८३ विमर्श-वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०८८६ में राजवृक्ष के ४ अर्थ दिए हैं-आरग्वधवृक्षे, पियालवृक्षे, लंका स्थायिवृक्षे श्योणाकवृक्षे। शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ०१५२ में तीन अर्थ किए हैं-आरग्वधवृक्ष पियालवृक्ष लंकास्थायिवृक्ष । आयुर्वेदीय शब्दकोश पृ०११८६ में केवल एक अर्थ दिया है-आरग्वधवृक्ष । इसलिए आरग्वध अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। राजवृक्ष के पर्यायवाची नाम आरग्वधो, दीर्घफलो, व्याधिघातो नराधिपः। आरेवतो राजवृक्षः, शम्पाकः चतुरङ्गुलः ।।६४२।। प्रग्रहो रैवतः पर्णी, कर्णिकारोऽपघातक: आरोग्यशिंबी कल्पद्रुः, स्वर्णद्रुः कृतमालकः ।।६४३।। आरग्वध दीर्घफल व्याधिघात नराधिप आरेवत राजवृक्ष, शम्पाक, चतुरङ्गुल, प्रग्रह, रैवत, पर्णी, कर्णिकार, अपघातक,आरोग्यशिंबी, कल्पद्र, स्वर्णद्र और कतमालकये १५ नाम आरग्वध (अमलतास) के पर्याय हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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