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________________ जैन आगम वनस्पति कोश में होती है। यह महाराष्ट्र देश में होने वाला एक प्रकार का सुगंधित पत्रशाक है। वर्वर्यादि गण में इसका पाठ है। इसके विषय में प० भागीरथ स्वामी लिखते हैं- इसके गुणों के अनुसार लेखानुसार यह सुगंधित पत्रदार वस्तु है । दमनक को आदि लेकर आरामशीतला तक सुगंधित पत्र के नाम से काम आने वाली औषधियों का वर्णन जैसे पत्र जिनके काम आते हैं वह दमनक, बंद दमनक, तुलसी, श्यामतुलसी, साधारण तुलसी, मरुवक, अर्जक, कृष्णार्जक, सितार्जक, गंगापत्री, पाची, बालक, बर्बर, सुरपर्ण व आरामशीतला इनकी पत्रों में गणना है। अतः निश्चित बात यह है कि बद्रिकाश्रम में होने वाली यह तुलसी है। यह यदि सुगंध के लिए लगाई जावे तो उत्तम है । बद्रिकाश्रम में बद्रीनारायण जी के ऊपर इसकी पत्ती व मालायें चढती हैं। यदि यह आराम (बगीचा) में लगाई जाने के कारण इसका नाम आरामशीतला हो गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं । द्वितीयनाम आनंदा है, सूंघने में आनंद देने वाली है। इसी प्रकार सुनन्दिनी नाम है। यह परम प्रिय होने से रामा या श्वेत तुलसी के समान होने से रामा कही जाती है। हिमालय, नेपाल आदि सर्वत्र इसका देवकार्य में बहुत उपयोग होता है । (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ०३६१ ) .... भत्तिय भत्तिय (भूतीक) चिरायता प०१/४२/१ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में भत्तिय शब्द तृण वर्ग के अंतर्गत है । भूतीक शब्द का अर्थ चिरायता है जो तृण वर्ग में है इसलिए इसकी छाया भूतीक करके चिरायता अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। भूतीक के पर्यायवाची नाम किराततिक्त, भूनिम्ब, रामसेन, काण्डतिक्त, भूतीक, अनार्यतिक्त । अन्य भाषाओं में नाम हि० - चिरायता, चिरेता, चिरैता । गु० - करियातुं । म० - किराइत । प० - चरैता । बं० - चिराता । मा०चिरायतो सि० - चिराइतो अं० - Chireta (चिरैटा) । ले०Gentiana Chirayita ( जेन्सि आना चिराइटा ) Swertia Jain Education International Chirata (स्वेर्टिया चिराता) । (निघंटु आदर्श उत्तरार्द्ध पृ०७०) उत्पत्ति स्थान - हिमालय पहाड़ के गरम प्रान्तों में काश्मीर से भूटान तक और खासिया के पहाड़ पर उत्पन्न होता है प्रायः पृथ्वी के सब देशों में १०८ प्रकार का चिरायता पाया जाता है। इनमें हमारे देश में ३७ प्रकार का होने का अनुभव किया गया है। जिस चिरायते को हम लोग व्यवहार में लाते हैं और जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है वह हिमालय पहाड़ के लगभग ४००० से १०००० (दस हजार) फीट ऊंची चोटियों पर तथा खसिया के पहाड़ पर ४ हजार से पांच हजार फीट की ऊंची चोटियों पर उत्पन्न होता है । 390. Swertia Chirata Ham. 215 विवरण- इसका वर्षायु क्षुप २ फीट से ५ फीट तक ऊंचा होता है। कांड नारंगी कालासा या जामुनी, मूल की तरफ गोल, मोटा, ऊपर बहुशाखायुक्त तथा चौपहल १ पत्र चौड़े भालाकार, ४ १.५ इंच, चिकने, नोकदार, ३ से ७ शिराओं से युक्त, विपरीत, दलपत्र हरितपीत परन्तु बैंगनी रंग की छाया भी हो सकती है । प्रत्येक विच्छेद पर दो-दो हरिताभ और रोमश ग्रंथियां होती हैं। फूलने पर इसमें डोंडी लगती है, जिनमें बहुत वारीक बीज निकलते हैं । पुष्पित होने पर सम्पूर्ण क्षुप को उखाड़ कर सुखाकर बेचते हैं। यह अत्यन्त कड़वा होता है। (भाव०नि० पृ० ७३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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