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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 205 अन्य भाषाओं में नाम बाण, बाणा (स्त्री) दासी, आर्तगल ये नील फूल हि०-बाकुची, बकुची, बाबची, सोमराजी। वाली कटसरैया के नाम हैं। (भाव०नि० पुष्पवर्ग०पृ०५०२) बं०-लताकस्तूरी, हाकुया। म०-बावची। गु०-बावची, अन्य भाषाओं में नामबाबची। क०-वाउचिगे। तेo-भवचि, कालाजिउजा। हि०-कटसरैया, पियावांसा। बं०-नील झांटी। ता०-कर्पोकरशि। फाo-बावकुचि। अंo-Psoralea म०-कालाकोरण्ट । ले०-Barleria Strigosa (बार्लेरिया Seed (सोरॅलिया सीड) Malayatea (मलाया टी)। स्ट्रिगोसा) Fam. Aconthaceae (ॲकेन्थेसी)। ले०-Psoraleacorylifolialinn (सोरेलिया कोरिलीफोलिया उत्पत्ति स्थान-कटसरैया सभी उष्ण प्रान्तों में पाइ लिन०) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। जाती है तथा बागों में भी लगाई जाती है। २००० फीट उत्पत्ति स्थान-प्रायः सब प्रान्तों के जंगली की ऊंचाई पर ये विशेष पाए जाते हैं। कटसरैया के क्षुप झाडियों में तथा खादर अथवा कंकरीली भमि में उत्पन्न उष्ण पर्वतीय प्रदेशों में अधिक होते हैं। पंजाब बम्बई होती है एवं सिलोन में भी प्राप्त होती है। अमेरीका में मद्रास, आसाम, लंकासिलहट आदि प्रान्तों में विशेष पाये भी इसकी कई उपजातियां होती हैं, जिनके गुण भी इसी जाते हैं। के समान हैं। विवरण-इसका क्षुप झाड़दार, कांटेदार तथा २ विवरण-इसका क्षुप १ से ४ फीट तक ऊंचा, से ५ फीट तक ऊंचा होता है। पत्ते १५ से ४ इच लम्बे, वर्षायु एवं स्वावलम्बी होता है। पत्ते १ से ३ इंच के घेरे कण्टकित अग्रयुक्त, अंडाकार, विपरीत तथा अखण्ड तट में छोटी अरणि के पत्तों के समान गोलाकार होते हैं। ये वाले होते हैं। पुष्प पीले तथा उनके दलाग्र भी कंटकित नालयुक्त, कड़े, चिकने, लहरदार, दन्तुर एवं इनके होते हैं। शीतऋतु में ये आते हैं। डोडी १ इंच लम्बी होती दोनों पृष्ठों पर काले धब्बे होते हैं। इन ग्रन्थियों के चिन्ह है, जिनमें दो चिपटे बीज पाये जाते हैं। शाखाओं पर भी होते हैं। १० से ३० छोटे, नीले बैंगनी (भाव०नि० पुष्पवर्ग०पृ०५०३) रंग के पुष्प १ से २ इंच लम्बे, पुष्पदण्ड पर आते हैं। पुष्पभेद से यह (कटसरैया) पीला, नीला या बैंगनी, फली छोटी, गोल, काली, चिकनी, एक बीज युक्त, श्वेत और लाल चार प्रकार का होता है। इनमें से पीली अस्फोटी एवं फलभित्ति बीज से चिपकी होती है। बीज फूलवाली कटसरैया प्रायः सर्वत्र प्राप्त होने से औषधि बाकुची वास्तव में फल ही है, जिसकी फलभित्ति प्रयोगों में इसीका विशेष उपयोग किया जाता है। शेष बीजावरण से चिपकी रहती है। यह अंडाकार, तीन प्रकार की कटसरैया भी प्रयत्न करने से प्राप्त हो नाकार, कुछ चिपटे, चिकने अग्रकी तरफ नुकीलें, सकती है। नीली कटसरैया का क्षुप श्वेत और पीत काले रंग के एवं महीन गढ़ों से युक्त होते हैं तथा कटसरैया की अपेक्षा कुछ ऊंचा दिखाई देता है। शाखायें तालद्वारा बड़ा करके देखने पर नहाने के स्पंज की तरह बहुत सीधी, खुरदरी तथा गोल ग्रंथियों से युक्त होती दिखलाई देते हैं। इसको चबाने पर एक तीव्रगंध आती है। इसके नीले पुष्प बड़े सुहावने होते हैं। शीतकाल में है तथा इनका स्वाद कडा, तीता एवं दाहजनक होता ही विशेष फलता है। (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग०पृ०१२४) (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०४८) जासह है। बाण बाण (बाण) नीलपुष्पवाली कटसरैया प०१/३८/१ बाण के पर्यायवाची नाम नीले बाणा द्वयोरुक्तो. दासी चार्तगलश्च सः।।५२।। बाणकुसुम बाणकुसम (बाणकुसुम) नील पुष्पवाली कटसरैया। रा०२६ जीवा०३/२७६ बाणपुष्पः ।पुं। नीलझिण्ट्याम् (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०७३२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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