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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 199 फणिज्जय फणिज्जय(फणिज्जक) सफेद मरुआ प० १/४४/३ फणिज्जक: मरूबकः । पांठरा मरवा (सफेद मरुआ) (आयुर्वेदीय शब्दकोष पृ० ६४२) विमर्श-मरुवा श्वेत और कृष्ण इन भेदों से दो प्रकार का है। प्रस्तुत प्रकरण १/४४/३ में फणिज्जय और मरुयग ये दो शब्द हैं-दोनों मरुआ के वाचक हैं यहां फणिज्जय से सफेद मरुआ अर्थ ग्रहण किया गया है। फणिज्जय के पर्यायवाची नाम मरुत्तको मरुबको, मरुन् मरुरपि स्मृतः। फणी फणिज्जकश्चापि, प्रस्थपुष्पः समीरणः ।। मरुत्तक, मरुबक, मरुत् मरु, फणी, फणिज्जक, प्रस्थपुष्प, समीरण ये सब मरुत्तक के पर्यायवाची नाम अन्य भाषाओं में नाम हि०-मरुवा, मरुआ, गेदरेता। बं०-मरुआ । म०-सब्जा, मर्वा । गु०-मरुवो। कo-मरुवा। तै०रुद्रजाड। फा०-मरजननोस। अं०-Sweet Marjoram (स्वीट मारजोरम्)। ले०-Origanum majorana Linn (ऑरीगेनम् मॅजोराना) Fam. Labiatae (लेबिएटी)। उत्पत्ति स्थान-मरुवा प्रायः सब प्रान्तों की वाटिकाओं में रोपण किया जाता है। विवरण-यह क्षुपजाति की वनस्पति १ से २ फीट ऊंची होती है और इससे सुगन्धि आती है। पत्ते लम्बे अंडाकार किंचित् लालिमायुक्त सफेदी मायल एवं सुगंधित होते हैं। उस पर तुलसी के समान मंजरी लगती है। सफेद और काले रंगों के भेद से यह दो प्रकार होता है। इनमें सफेद औषधि और काला शिवपूजन के काम में आता है। (भाव०नि०पुष्पवर्ग०पृ०५१०) जिस प्रकार तुलसी हिन्दुओं में पूजनीय है उसी तरह मरवा मुसलमानों में आदरणीय है और इसीलिए प्रत्येक कब्र पर इसके क्षुप लगाये जाते हैं, पृष्पकाल, शिशिर ऋतु है। (वनौषधि विशेषांक भाग५ पृ०३७१) (शा०नि० पृ०३६४) BAŠSIA LATIFOLIA ROXB फलकार पुष्प फुसिया फसिया (स्पृशा) सर्पकंकालिका लता पं०१/४०/५ स्पृशा स्त्री। सर्पकङ्कालिकावृक्षे। (शरद चन्द्रिका) कण्टकार्याम् । (वैद्यकशब्द सिन्धु०पृ०११६८) सर्पकङ्कालिका(ली) स्वनामख्यातलतायाम् । गन्धरास्नायाम्। (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०११०४) सर्पकंकालिका के पर्यायवाची नाम नकुलेष्टा महावीर्या, तथा सर्पसुगंधिका ।। विषघ्नी सुवहा सर्पगन्धा चीरितपत्रिका ।।७७५ ।। सुगन्धा नाकुली सर्पलोचना गन्धनाकुली सर्पकंकालिका ज्ञेया, सुनन्दा विषदंष्ट्रिका ।।७७६ ।। नकुलेष्टा, महावीर्या, सर्पसुगंधिका, विषघ्नी, सुवहा. बीज गीरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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