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________________ 198 उत्पत्ति स्थान - विशेषकर गरम प्रान्तों में यह रोपण किया जाता है। पश्चिमघाट के जंगलों में यह आप ही आप उत्पन्न होता है और दक्षिण, बिहार तथा बंगाल में अधिक होता है । 1 विवरण- इसका वृक्ष बड़ा होता है। छाल खुरदरी रहती है। जिससे दुधिया क्षीर निकलता है । पत्ते ४ से ८ इंच लम्बे, कुछ चौड़े, मोटे, किंचित् अंडाकार और किंचित् कालापनयुक्त हरे रंग के होते हैं। स्तम्भ और मोटी शाखाओं पर फूल फल लगते हैं। फूल २ से ६ इंच तक लम्बे, १ से २ इंच गोल अंडाकार और किंचित् पीले रंग के होते हैं। फल बहुत बड़े-बड़े १ से २ फीट एवं लम्बाई युक्त गोल होते हैं। उसके ऊपर कोमल कांटे होते हैं। गूदा बीज के चारों तरफ लिपटा हुआ मोटा होता है। जो कच्ची अवस्था में सफेद तथा पकने पर पीला हो जाता है। कच्चे फल की तरकारी बनाते हैं तथा पके फल को खाते हैं। बीजों में स्टार्च रहता है जिन्हें पकाकर खाते हैं। (भा० नि० पृ०५५५) फणिज्जय फणिज्जय (फणिज्जक) फांगला प०१/४४/३ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण प्रज्ञापना १/४४ / ३ में फणिज्जय और मरुयग ये दो शब्द हरित वर्ग के अन्तर्गत हैं। दोनों ही मरुवा के वाचक हैं। फणिज्जय फांगला का भी अर्थ देता है जो तुलसी के छोटे पत्तों वाली एक जाति का नाम है। इसलिए यहां फणिज्जय का अर्थ फांगला ग्रहण कर रहे हैं । फणिज्ज (ज्झ ) कः । पुं । क्षुद्रपत्रतुलसीभेदे । गन्धतुलस्याम् । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०७१७) अन्य भाषाओं में नाम सं०- फणिअक । हि०-फांगला, पागला । म०-फांगला । ले०-Pogostemon Parvillorus (पोगोस्टेमन पर्विफ्लोरस) P. Purpurascens (पो० परपरासेन्स), P. Plectranthoides (पो० प्लेक्ट्रेन्थायडिस) P. Purpuricais (पो०, परपरिकेलिस) । उत्पत्ति स्थान- इसके क्षुप दक्षिण में रत्नागिरी Jain Education International जैन आगम वनस्पति कोश तथा कोंकण में अधिकतर ऊसरभूमि में एवं जंगलों में पाये जाते हैं। उत्तर में चार हजार फुट की ऊंचाई तक ( मालकोट में ) प्रायः नालों में पाए जाते हैं। विवरण -तुलसी कुल प्रायः ३ फुट तक ऊंचे ताम्रवर्ण के इस क्षुप के काण्ड प्रायः ताम्र या बैंगनी रंग के, चौपहले, चिकने, चमकीले, किंचित् रोमश । पत्रलम्बगोल लगभग ३ से ६ इंच लम्बे, नोकदार, लट्वाकार, अनियमित, कंगूरेदार या अखण्ड काली दाख जैसी गंध वाले होते हैं। पुष्प तुर्रों में या गुच्छों में बहुत घने, लटकते हुए ताम्रवर्ण के या कहीं-कहीं लाल पीले छीटों से युक्त श्वेतरंग के आते हैं। पुष्प का भीतरी भाग ३ मि.मी. तक लम्बा होता है। फली ४ मि.मी. तक लम्बी । प्रायः इसके पुष्पों में ही बीज होते हैं. फली नहीं आती। उक्त फलीवाली इसकी एक अन्य जाति है, गुणधर्म समान ही हैं। यह जंगली तुलसी का ही एक भेद मरुवा, तुलसी की छोटे पत्तों वाली एक जाति है । ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ४ पृ०३७५) For Private & Personal Use Only .... www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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