SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 196 बोंडई शब्द का मिलता है। इसलिए इस शब्द के अर्थ के लिए बोंडई शब्द देखें। पोंडरीय पोंडरीय (पुण्डरीक) सहस्रदल वाला अतिश्वेत कमल रा०२६ जीवा०३ / २८२, २८६,२६१ ५०१ / ४६: १७ /१२८ पुण्डरीक के पर्यायवाची नाम पुण्डरीकं श्वेतपद्मं, सिताब्जं श्वेतवारिजम् । हरिनेत्रं शरत्पद्मं, शारदं शम्भुवल्लभम् ।।१३० ।। पुण्डरीक, श्वेतपद्म, सिताब्ज श्वेतवारिज, हरि नेत्र, शरत्पद्म, शारद और शम्भुवल्लभ ये पुण्डरी के पर्याय हैं । पुण्डरीक - अतिश्वेत ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०१३८) पुण्डरीकम् । श्वेतकमले । सहस्रदलश्वेतकमले । ( धन्व० नि०४ |१३० पृ०४ / १३० ) रा०नि०व०४ । ( चरक संहिता, सूत्रस्थान ४ अध्यायः ) (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६८२) विमर्श - चरक संहिता सूत्रस्थान ४ अध्याय पृ०३६ में पुण्डरीक को कमल का भेद माना है । Jain Education International .... पोक्रवल पोक्रवल (पुष्कर) पद्मकंद पुष्करः पुं। पद्मकंदे । पद्म (कमलमूल या भसिंडा ) ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०१४३) भाषाओं में नाम सं० - पद्ममूल, भूमलकंद, भिस्साण्ड, शालूकं । हि० - भिस्सा, भसीड, मुरार, भसिंडा । बं०- पद्मेर गेंडों. शालूक | विवरण - यह जड़ मोटी, लम्बी एवं सच्छिद्र होती है। कच्चीदशा में तोड़ने पर इन छिद्रों में से के मृणाल प०१/४६ (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६८६) जैन आगम वनस्पति कोश तन्तु जैसे ही किन्तु उनसे कुछ स्थूल तंतु (सूत्र) निकलते हैं। इन्हें भी विस (सूक्ष्मतंतु) कहते हैं। इस जड़ की तरकारी बनाते हैं | दुष्काल के समय इन्हें पीसकर रोटी बनाकर खाते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०१३८ ) पोक्खलत्थभय ( हो पाई है। .... पोक्खलत्थिभय > प०१/४६ विमर्श - प्रस्तुत शब्द की पहचान अभी तक नहीं पोडइल पोडइल (पोटगल) नलतृण For Private & Personal Use Only प०१/४२/१ पोटगल के पर्यायवाची नाम नडो नटो नलश्चैव, स च पोटगलः स्मृतः ।। धमनो नर्तको रन्ध्री, शून्यमध्यो विभीषणः । । १२५ ।। नड, नट, नल, पोटगल, धमन, नर्तक, रन्ध्री, शून्यमध्य और विभीषण ये नल के पर्यायवाची नाम हैं । (धन्च०नि०४ / १२५ पृ०२१५) अन्य भाषाओं में नाम हि० - नरकट । म० - नल। गु०-नाली, नाइरी । कोल० - जंकई । ले० - Phragmites Kirka Trin (फ्रॅग् माइटीज कर्का ट्रिन) Fam. Graminea (ग्रॅमिजी) । उत्पत्ति स्थान - यह पश्चिमी घाट में बम्बई से त्रावनकोर तक २ से ७ हजार फीट की ऊंचाई तक कोंकण, माथेरान, दक्षिण, महाराष्ट्र का दक्षिण प्रदेश, नीलगिरी, मलावार तथा मैसूर में पाया जाता है। विवरण- इसका क्षुप ५ से १२ फीट ऊंचा, द्विवर्षायु या बहुवर्षायु होता है। काण्ड ऊपर की तरफ पोला तथा ऊपर की ओर इससे शाखायें निकली रहती है। पत्ते तंबाकू की तरह, संख्या में बहुत, हलके हरे रंग के छोटे पर्णवृत से युक्त, नीचे के १२x२ इंच बड़े तथा ऊपर को क्रमशः छोटे, भालाकार, महीन दांतों से युक्त एवं मृदुरोमश होते हैं। पुष्पजामुनी आभायुक्त, श्वेतवर्ण के. १ फीट तक लम्बी मंजरियों में आते हैं। फल ८ मि.मि. व्यास www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy