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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 177 प्रियाल के पर्यायवाची नाम प्रियालस्तु खरस्कन्ध, चारो बहुलबल्कलः। राजादनस्तापसेष्टः, सन्नकद्रुर्धनुष्पटः ।।८३।। प्रियाल, खरस्कन्ध, चार, बहुल बल्कल, राज़ादन, तापसेष्ट, सन्नकद्र और धनुष्पट ये सब चिरौंजी के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० आम्रादिफलवर्ग० पृ० ५७५) के घेरे में गोलाकार होते हैं। फल लंबाई युक्त, गोलाकार, दबे हुए १/२ इंच व्यास के एक बीज युक्त तथा काले रंग के होते हैं। फल तथा उसके भीतर की मज्जा, जिसे चिरौंजी कहते हैं खाई जाती है। इसके वृक्ष से गोंद भी निकलता है। (भाव नि० आम्रादि फलवर्ग पृ० ५७६) परिणयअंबग परिणयअंबग (परिणताम्र) पक्का हुआ आम उत्त० ३४/१३ पाल का पका आम मधुर होता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० ३३७) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में परिणयअंबग शब्द रस की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। ... परिली परिली ( प० १/३७/५ विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं तथा शब्दकोशों में परिली शब्द का अर्थ नहीं मिला है। संभव है यह किसी प्रांतीय भाषा का शब्द है। J पलंडू अन्य भाषाओं में नाम पलंडू (पलाण्डु) प्याज प०१/४८/४३ हि०-चिरौंजी, चिरोंजी। बं०-चिरौंजी, पियाल।। पलाण्डु के पर्यायवाची नामम०-चारोली। गु०-चारोली। क०-चारनीज, नरकल पलाण्डु र्यवनेष्टश्च, सुकन्दो मुखदूषकः । ते०-सारुपपु। ताo-मुडइमा। फा०-नुकलेखाजा, हरितोन्यः पलाण्डुश्च, लतार्को दुईमः स्मृतः ।।६६ ।। नुकुल ख्वाजह। अ०-हब्बुस्समाना, हब्बुल समनह। पलाण्डु, यवनेष्ट, सुकन्द, मुखदूषक ये पर्याय पलाण्डु ले०-Buchanania Latifolia Roxb. (बुचनॅनियां के हैं। पलाण्डु का दूसरा भेद हरितपलाण्डु है जिसके पर्याय लेटिफोलिया)। लतार्क और दुद्रुम है। (धन्व० नि० ४/६६ पृ० १६७) __उत्पत्ति स्थान-यह इस देश के गरम और सूखे अन्य भाषाओं में नामप्रान्तों में अधिक पाई जाती है। हि०-पियाज, प्याज । बं०-पेयाज । पं०-गण्डा। विवरण-चिरौंजी का वृक्ष मध्यमाकार का होता है। म०-कांदा। ते०-नीरूक्लि। गु०-दुंगली, कांदो। कहीं-कहीं ५० फीट तक ऊंचा वृक्ष देखा जाता है। छाल मा०-कांदो, कांदा। ता०-वेंगयम। फा०-प्याज मोटी, गहरे धूसरवर्ण की एवं चौकोर आकार में फटी हुई सिन्ध०-लुनु, बसर। मलाo-बवंग। अ०-बस्ल । होने से मगर के चमड़े की तरह दिखलाई देती है। पत्ते कड़े, अं0-Onion (ओनियन)। ले०-Allium cepa Linn. अखण्ड, आयताकार या लट्वाकार-आयताकार एवं ६ से (एलियम सिपा०लिन०) Fam. Liliaceae (लिलिएसी)। १० इंच लंबे होते हैं। फूल श्वेत एवं मंजरियों में चौथाई इंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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