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________________ 176 उत्पत्ति स्थान- इसके वृक्ष हिमाचल के उष्ण कटिबंध स्थित भागों में ३ से ८ हजार फीट की ऊँचाई तथा उत्तरप्रदेश, पूर्वी बंगाल एवं खासिया, जेन्तिया पहाड़ियों पर और ब्रह्मा आदि के जंगलों में पाया जाता है। विवरण - कर्पूरादिवर्ग कपूरकुल की दालचीनी की ही जाति का यह भारतीय भेद है। इसके वृक्ष सदैव हरे भरे, मध्यमाकार के लगभग २५ फुट ऊंचे कुछ सुगंध युक्त होते हैं। छाल पतली किन्तु खुरदरी, शिकनदार, गहरे भूरे रंग की कुछ कृष्णाभ दालचीनी जैसी ही किन्तु कम सुगंधित, वगैर स्वाद की होती है। पत्र बरगद के पत्र जैसे, प्राय: ५ से ७ इंच लंबे, २ से ३ इंच चौड़े, लट्वाकार, आयताकार या भालाकार, नोकदार, चिकने चर्मवत्, शाखाओं पर विपरीत या एकान्तर नीचे से ऊपर तक ३ शिराओं से युक्त सुगंधित एवं स्वाद में तीक्ष्ण होते हैं । नूतन पत्र कुछ गुलाबी रंग के होते हैं। ये ही सूखे पत्र तेजपात या तमालपत्र के नाम से बेचे जाते हैं। ये गरम मसाले के काम में आते हैं। फूल १/४ इंच लंबे, हल्के पीतवर्ण के. फल १/२ इंच लंबे अंडाकार, मांसल तथा काले रंग के होते हैं । अपक्वशुष्क फलों का काला नागकेसर के नाम से दक्षिण भारत में व्यवहार किया जाता है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ३८३) पत्तउर पत्तउर (पत्तूर ) पतंगपत्तूर के पर्यायवाची नाम पतङ्गं रक्तसारञ्च, सुरङ्ग रञ्जनं तथा । । पट्टरञ्जकमाख्यातं, पत्तूरञ्च कुचन्दनम् ||१८|| पतङ्ग, रक्तसार, सुरङ्ग, रञ्जन, पट्टरञ्जक, पत्तूर और कुचन्दन ये सब संस्कृत नाम पंतंग के हैं। (भाव० नि० कर्पूरादिवर्ग० पृ० १६३) Jain Education International प० १/३७/३ अन्य भाषाओं में नाम हि० - पतंग, बक, बकमकाठ, आल । बं० - बकम, काष्ठ, बोकोम । म० - पतंग। गु० - पतंग। ते०-बुक्क पुचेट्टु । ता० - वरतंगि, शप्पङ्गु । मला० - चप्पनम् । 310-Sappan Wood Sappan Linn. फा०- बकम । अ० - बकम । (सप्पनबुड) o-Caesalpinia (सिझल्पिनिया (सिझल्पिनिएसी) । सँप्पन) । CAISAL PINIA SAPPAR LINN. BLIC) For Private & Personal Use Only 디 शाख जैन आगम वनस्पति कोश फली Fam. Caesalpiniaceae पुष्प उत्पत्ति स्थान- यह पूर्व और पश्चिम प्रायद्वीप एवं मद्रास प्रान्त में अधिक पाया जाता है। बंगाल और बिहार के किसी-किसी स्थान में देखने में आता है । विरण- इसका वृक्ष छोटा एवं कांटेदार होता है। लकड़ी दृढ़, सारभाग नारंगी या चमकीले लाल रंग का होता है। पत्ते संयुक्त, उपपक्ष ८ से १२ जोड़े। पत्रक १० से १८ जोड़े. ३/४ इंच तक लंबे, आयताकार न्यूनाधिक विनाल, गोलाग्र एवं मध्यशिरा के दोनों तरफ के भाग असमान होते हैं। फूल किंचित् पीताभ रंग के आते हैं। प्रत्येक में ३ से ४ बीज होते हैं। इसके काष्ठसार का उपयोग किया जाता है। यह लाल चंदन जैसी, फीके लाल रंग की, कडी एवं निर्गन्ध होती है। (भाव० नि० कर्पूरादि वर्ग० पृ० १६३) पयालवण पयालवण (प्रियाल वन) चिरौंजी वृक्षों का वन जं० २/६ www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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