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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 157 आमादम्। ता०-नागदन्ती। गु०-दन्ती। फा०-दंद, वेदजीर खताई । अ०-हब्बुस्सला ।ले०-Boliospermum montanum Muell. Arg. (बॅलिओस्पर्मम् मॉन्टेनम् मुएल आर) Fam. Euphorbiaceae (युफोबिएसी)। होती है। यह घने जंगलों में नहीं परंतु बंजर स्थानों में होती है। इसके पत्र ०.५ से १.५ इंच लंबे होते हैं। इनकी चौड़ाई भी इतनी ही होती है। पुष्प श्वेत रंग के थोड़ी। सुगंन्धिवाले ज्येष्ठ और आषाढ मास में विकसित होते हैं। शीतकाल में फल पकते हैं। इन फलों में दो से चार बीज होते हैं। फल में दो से लेकर चार अस्थि होती है, जिससे बाजठ के चार पैर सदृश प्रतीत होते हैं। इसीलिए गिरनार की ओर इसे बाजोठियुं कहते हैं। इसके फल 'शिकारी मेवा' के नाम से पहचाने जाते हैं, क्योंकि इसके फल प्यास लगने पर शिकारी मुंह में रखते हैं। वनों में घूमने वालों के लिए इन्हें मुंह में रखना ठीक होता है। नागबलामूल पर से त्वचा सरलता से अलग कर सकते हैं और त्वचा का चूर्ण भी शीघ्र हो जाता है। औषधार्थ मूलत्वचा का चूर्ण उपयोग किया जाता है। (निघंटु आदर्श पूर्वार्द्ध पृ० १६७, १६८) दंतमाला दंतमाला ( ) जीवा० ३/५८२ जं० २/८ विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं और शब्दकोशों में यह शब्द वनस्पति के अर्थ में नहीं मिला है। संभव है यह हिन्दी आदि किसी देशीय भाषा का शब्द हो। दंती दंती (दन्ती) दंती,लघुदंती भ० २३/६ प० १/४८/४ दन्ती।स्त्री। स्वनामख्यातहस्वक्षुपे । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ५३३) दन्ती के पर्यायवाची नाम दन्ती शीघ्रा निकुम्भा, स्यादुपचित्रा मकूलकः। तथोदुम्बरपर्णी च, विशल्या च घुणप्रिया।।२२३।। दन्ती, शीघ्रा, निकुम्भा, उपचित्रा, मकूलक, उदुम्बरपर्णी, विशल्या और घुणप्रिया ये दन्ती के पर्याय (धन्व०नि० १/२२३ पृ० ८१) अन्य भाषाओं में नाम हिo-दंती, छोटी दंती, ताम्बा। म०-दांती, लघुदती, दांतरा। ब०-दन्ती, हाकन। ते०-कोंटा उत्पत्ति स्थान-छोटी दंती प्रायः सब प्रान्तों में पाई जाती है। विशेषकर काश्मीर में भूटान तक तथा आसाम और लासिया पहाड़ से चटगांव तक एवं दक्षिण में कोंकण ट्रावनकोर तक जंगलों में उत्पन्न होती है। आर्द्रस्थानों में प्रायः अन्य वृक्षों आदि की छायादार जगहों में अधिक पाई जाती है। विवरण-यह गुल्म जाति की वनस्पति ३ से ६ फीट तक ऊंची होती है। प्रायः जड़ से ही अधिक शाखाएं निकलती हैं। पत्ते प्रायः अंजीर और गूलर के आकार के होते हैं। इसलिए इसको उदुम्बरपर्णी कहते हैं। लंबाई चौड़ाई में इसका आकार भिन्न-भिन्न होता है। नीचे वाले ६ से १२ इंच लंबे अंजीर के पत्तों के समान कटे किनारे वाले, ३ से ५ भागों में विभक्त तथा किंचित् नुकीले होते हैं। ऊपर वाले पत्ते गूलर के पत्तों के आकार वाले २ से ३ इंच लंबे और भालाकार होते हैं। फूल एकलिंगी गुच्छाकार हरिताभ रंग के होते हैं। फल किंचित् रोमश. ३ खंड का एवं करीब १/2 इंच लंबा होता है। बीज भूरे बाह्यवृद्धि से युक्त तथा एरण्ड से छोटे होते हैं। इसकी जड़ एवं बीज औषधि के काम में आते हैं। जड़ अंगुलि हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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