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________________ 146 जैन आगम : वनस्पति कोश चणक आदि शब्दों का समूह तृण होता है। (अर्क प्रकाश रावणकृत) (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०५०८) तृण के पर्यायाची नाम कुतृणं कत्तृणं भूति भूतिक रोहिषं तृणम्। श्यामकं ध्यामकं पूति र्मुद्गलं दवदग्धकम् ।।६७|| कुत्तृण, कत्तृण, भूति, भूतिक, रोहिष. तृण, श्यामक ध्यामक, पूति, मुद्गल, दवदग्धक ये सब रोहिष (गंधेजवास) के दस नाम हैं। (राज०नि० ८।६७ पृ०२५१) अन्य भाषाओं में नाम हि०-वरुन, बरना, बं०-बरुनगाछ, बरुणगाछ। म०-वायवर्णा । गु०-बरणो, कागडाकेरी। कo-नारुवे । ते०-मगलिंगम्। ता०-मरलिङ्गम। ले०-Crataeva nurvala Buch (क्रेटीवा नुर्वाला) Fam. Capparidaceae (कॅपेरीडेसी)। उत्पत्ति स्थान-यह मालावार और कनारा में नदियों के आसपास पाया जाता है तथा सभी स्थानों पर लगाया हुआ भी होता है। विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का होता है और शाखायें फैली हुई रहती हैं। छाल आध इंच मोटी सफेद रंग की होती है। टहनियों पर सफेद दाग होते हैं। पत्ते तीन-तीन पत्रकों के पाणिवत् सदल पर्ण होते हैं, जो बेल की तरह किन्तु लम्बे वृन्त से युक्त दिखलाई देते हैं। पत्रक लट्वाकार या भालाकार एवं लंबाग्र होते हैं। पुष्पश्वेत, पीत या गुलाबी भिन्न-भिन्न रंग के होते हैं। फल नींबू के आकार के तथा पकने पर लाल हो जाते है। पत्तों का स्वाद कडवा तथा उन्हें मसलने से उग्रगंध आती हैं। इसकी छाल, पत्ते तथा पुष्पों का उपयोग किया जाता है। (भाव०नि० वटादिवर्ग०पृ०५४३) तमाल तमाल (तमाल) वरुण, वरना भ०२२/१ओ० ६ जीवा०३/५८३ प०१/४३/१ बरूण (बरना) CRATAEVA RELIGIOSA,FORST. "५ .PART म तरुणअंबग तरुणअंबग (तरुणाम्र) गुठली सहित बडी कैरी उत्त०३४/१२ बड़ी कैरी गुठली जिसमें पड़ गई हो (तरुणाम्र) अत्यन्त खट्टी, पित्तवर्धक, रूखी, त्रिदोष व रक्तविकृतिजन्य (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ०३३६) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में तरुणअंबग शब्द रस की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। है। परबड तमाल के पर्यायवाची नाम वरुणः श्वेतपुष्पश्च, तिक्तशाकः कुमारकः । श्वेतद्रुमो गन्धवृक्षस्तमालो मारुतापहः ।।१०६ ।। वरुण, श्वेतपुष्प, तिक्तशाक, कुमारक, श्वेतद्रुम, गंधवृक्ष, तमाल और मारुतापह ये वरुण के पर्यायवाची नाम हैं। (धन्व०नि०५/१०६ पृ०२५३) तलऊडा तलऊडा ( ) छोटी इलायची प०१/३७/३ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में तलऊडा शब्द गुच्छवर्ग के अन्तर्गत है। तलऊडा शब्द तथा इसके सम संस्कृत शब्द निघंटुओं और शब्दकोषों में नहीं मिलते हैं। तलऊडा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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