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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 139 स्निहुः-स्निहुपुष्पं (थोहरपुष्प) प्रज्ञापना टीका पत्र ३७) जाते हैं। विवरण-इसके झाड़ीदार वृक्ष या क्षुप १२ से १५ फुट तक ऊंचे कंटकयुक्त, कांड छोटे-छोटे खंडयुक्त, शाखाएं नरम, पतली, गहरे हरे रंग की तथा तीन, कभी-कभी चार या पांच धारों या पत्रों वाली, जिनपर कंटक प्रचुर, उपपत्र छोटे-छोटे, पुष्प प्रायः १/२ इंच बड़े हरिताभ पीत या लाल रंग के द्विलिंगी, फल १/२ इंच व्यास के गोल होते हैं। कहा जाता है कि जिस घर की छतपर तिधारा थूहर के गमले होते हैं उस घर पर बिजली नहीं गिरती। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ४०६) ALS णोमालिय णोमालिय (नवमालिका) नेवारी रा० ३० जीवा०३/२८३, २६६ प० १/३८/१ नवमल्लिका (ल्ली:) (मालिका) स्त्री। स्वनामख्याते पुष्पवृक्षविशेषे । सा ग्रीष्मोद्भवा, वासन्ती, नेयाली, सेउती नेवारी इति लोके। (वैद्यक शब्दसिन्धु पृ० ५६४) विमर्श-टीकाकार ने णीहु शब्द की छाया स्निहु नवमालिका के पर्यायवाची नामकी है और उसका अर्थ थोहर किया है। संस्कृत शब्द नेपाली ग्रैष्मिकी ग्रीष्मा, सुगन्धा वनमालिका। कोशों में थोहर के लिए स्नुहा, स्नुहि और स्नुही आदि लूता मर्कटका कान्ता, ग्लायिनी नवमालिका । ।१५२७ । शब्द मिलते हैं परन्तु स्निहुशब्द नहीं मिलता है। स्नुही काकाहृता शिखरिणी, सुमनाः शिशुगंधिका ।। का अर्थ तिधार थोहर किया गया है। ग्रैष्मिकी, ग्रीष्मा, सुगंधा, वनमालिका, लूता, स्नुहा (हिः, ही) स्त्री। स्वनामख्यात क्षीरसारवृक्षे, मर्कटका कान्ता, ग्लायिनी, नवमालिका, काकाहृता, स्नुहीविशेषे । हि०-थोहर, तिधार, जाकुनिया। शिखरिणी, सुमना और शिशुगंधिका ये नेपाली के (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११६६) पर्याय हैं। स्नुही, गुडा-ये बिलायती थोहर के नाम हैं। (कैयदेव० नि० ओषधि वर्ग पृ० ६२६) (अभिधान चिंतामणीकोश श्लोक ११४०) अन्य भाषाओं में नामअन्य भाषाओं में नाम हिo-नेवारी, वासंती, चमेली। बं०-बुराकुन्दा, हि०-तिधारा थूहर। म०-तीनधारी निवडुंग। बदकूद, नवमल्लिका। गु०-गुंदा। मुं०-कुसर | गु०-अधारियोथूहर । अंo-Triangular spurge (ट्रायंगुलर ता०-नागमल्ली ते०-नागमल्ले। ले०-Jasminum स्पज)। लेo-Euphorbia Antiqurum (युफोर्बिआ arborescens Roxb (जस्मिनम् आर् बोरेसेन्स)। एटिकोरम)। उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय में ४००० फीट की ___ उत्पत्ति स्थान-इसके क्षुप प्रायः सभी उष्ण, शुष्क ऊंचाई तक तथा बंगाल, छोटानागपुर, उड़ीसा, मध्य स्थानों में पाये जाते है। ये प्रायः खेतों की बाडों में लगाये तथा दक्षिण भारत एवं गंजम और विजगापट्टम के पहाड़ों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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