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________________ 128 जैन आगम : वनस्पति कोश अन्य भाषाओं में नाम लाल रंग के बीज होते हैं। कंदों के भेद से कलिहारी हि०-कलिहारी, कलिकारी, करियारी कलहिंस, दो प्रकार की मानी जाती है। जिसका कंद लम्बा, गोल, कलारी, लांगुली, करिहारी। बं०-विषलांगुली, दो भागों में विभक्त अथवा दो लम्बे टुकड़े समकोण के उलटचंडाल । म०-कललावी, इंदै, लालि, खड्यानाग, समान जुड़े हुए होते हैं वह पुरुषजाति का और जिसका नागकरिआ। गु०-कलगारी, दूधियोवच्छनाग। कंद गोल, किंचित् लम्बा एक ही रहता है वह स्त्रीजाति क०-लांगुलिक । पं०-मलिम, करियारी। मा०-राजाराड। कहलाती है। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३१३) ते०-अग्निशिखा, अडवीनाभी। ता०-कलई पैकिशंगु। मल०-मेशोन्नि । अंo-The glory lily (दि ग्लोरी लिलि) णंदिरुक्ख Tigers clawj (टाइगर्स क्यॉज)। ले0-Glorisa Superba दिरुक्ख (नन्दिवृक्ष) तून linn (ग्लोरिओजा सुपर्वा०लिन०) Fam. Liliacae ओ० ६ जीवा० ३/५८३ प० १/३६/२ (लिलीएसी)। उत्पत्ति स्थान भारत के प्रायः सभी प्रान्तों के जंगल-झाडियों में आप ही आप उत्पन्न होती है तथा वर्मा एवं लंका में भी पाई जाती है। विवरण-इसकी लता मृदु, आरोहणशील और सुंदर है, जो झाड़ियों या छोटे वृक्षों के ऊपर चढ़ी हुई पाई जाती है। काण्ड पतला, कलम जितनी मोटाई का, गोल, मृदु एवं हरे रंग का होता है। यह १.५ से २.५ फीट लंबा होने पर भूमि की ओर नत हो जाती है किन्तु जब उसे किसी दूसरे वृक्ष का आश्रय मिलता है तब उसके सहारे ८ से १० फुट तक ऊंची चढ जाती है। यह चौमासे के प्रारंभ में निकलती है और शीतकाल पत्र के पहले ही सूख जाती है। इसका भौमिक तना हलाकार टेढ़ा, बेलनाकार परन्तु जगह-जगह कुछ संकुचित रहता है। इसीसे, प्रतिवर्ष इसकी पुनरावृत्ति होती है। पत्ते विषमवर्ती ३ से ६ इंच तक लम्बे, पौन से एक इंच तक चौड़े, प्रायः बिनाल, लट्वाकार भालाकार एवं उनके अग्र सूत्राकार होते हैं। जिनसे आश्रय को लपेटकर यह बढ़ती है। वर्षा के अंत में इसमें फूल आते हैं। फूल व्यास में ३ से ४ इंच, अधोमुखी और सुंदर होते हैं। पुष्पनाल ३ विमर्श-नंदिवृक्ष के दो अर्थ मिलते हैं-नन्दिक और से ६ इंच लम्बा और उसका अग्र टेढा होता है। पंखुड़ियां मेषशृंगी। नंदीवृक्ष के तीन अर्थ मिलते हैं-बेलिया ६ लहरदार, नीचे आधार की ओर पीताभ, ऊपर नारंगी पीपरवृक्ष, मेढाशिंगी, तून । नंदिवृक्ष और नंदीवृक्ष दोनों लाल और अन्त में पूर्णतः लाल हो जाती है। तथा शब्दों के अर्थों में दो नाम समान हैं-नंदिक (तून) और जैसे-जैसे इसका विकास होता है वैसे इनका रंग भी पीत मेषशृंगी (मेढाशिंगी) । प्रस्तुत प्रकरण में नंदिवृक्ष बहुबीजक से रक्त होता जाता है। फलियां केराव की फलियों के वर्ग के अन्तर्गत आया हुआ है इसलिए यहां तून वृक्ष का समान होती है। उनमें केराव के आकार के गोल-गोल अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। पम्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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