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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 125 कठोर, चिकनी और उनका अग्रभाग मोटा परन्तु चोंचदार (टेढा) होता है। (भाव०नि० गुडूच्यादि वर्ग० पृ० २६५) जीरा जीरा ( ) जीरा, सफेद जीरा भ० २१/२१ विमर्श-जीरा हिन्दी भाषा का शब्द है। प्राकृत के जीरा शब्द का संस्कृतरूप जीरक भी बनता है। जीरक के पर्यायवाची नाम जीरकोजरणोऽजाजी,कणा स्याद्दीर्घजीरकः ।।१।। जीरक, जरण, अजाजी, कणा और दीर्घजीरक ये सफेदजीरा के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० पृ० ३०) जीलकरर, जीलकरी। ताo-शीरागम। फाo-जीरये सफेद । अ०-कमूलअवियज़ | अंo-Cumin Seed (क्यूमिन सीड)। ले०-Cuminum cyminum linn (क्यूमिनम् साइमिनम् लिन०) Fam. Umbelliferae (अंबेलिफेरी)। उत्पत्ति स्थान-आसाम और बंगाल के सिवा प्रायः सब प्रान्तों में विशेषकर राजपूताना (राजस्थान) और उत्तर भारत के कई प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है। विवरण-यह खेतों में प्रतिवर्ष बोया जाता है। इस क्षुप जाति की वनस्पति की शाखायें पतली होती हैं। पत्ते सौंफ के पत्तों के समान पतले-पतले लम्बे तथा २ से 3 एक साथ रहते हैं। वारीक सफेद फूलों के छत्ते लगते हैं। फल सौंफ के समान होता है। (भाव०नि० पृ० ३१) जीवग काड पत्र Admy S मूल CELLS जीवग (जीवक) जीवक भ०२३/८ जीवक के पर्यायवाची नाम ह्रस्वाङ्गकः शमी कूर्चशीर्षको कूर्चको मतः ।।८६ ।। जीवको जीवदः क्षोदी, मंगल्यो मधुरः प्रियः । जीवनः शृङ्गकः श्रेयो, दीर्घायु चिरजीव्यपि।।६० ।। हस्वाङ्गक, शमी, कूर्चशीर्षक, कूर्चक, जीवक, जीवद, क्षोदी, मंगल्य, मधुर, प्रिय, जीवन, शृङ्गक, श्रेय, दीर्घायु, चिरजीवी ये सब जीवक के पर्यायवाची नाम (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग पृ० २०) अन्य भाषाओं में नाम ले०-Pentaptera Tomentosa (पेन्टापटेरा टोमेन्टोन्सा)। उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय पर्वत के शिखर के ऊपर उत्पन्न होती है। विवरण-इसका कंद ठीक लहसुन के कंद के समान होता है और निस्सार होता है तथा पत्ते सूक्ष्म होते हैं। जीवंक का आकार कूची के समान होता है। यह बल-कारक, शीतवीर्य, शुक्र तथा कफ के वर्धक होता है मधुररसयुक्त, पित्त, दाह, रक्तदोष, कृशता, वात तथा क्षय रोग को दूर करने वाला है। (भाव०नि०पृ० ६१) विवरण-आजकल पहाड़ी जंगलों में कामराज पुष्प बीज अन्य भाषाओं में नाम हिo-जीरा, सादाजीरा, साधारण जीरा, सफेद जीरा। बं०-सादाजीरे, शाहाजीरे, जीरे। म०-जीरे, की पांढरेजीरे। गु०-जीरूं, शाक न जीरूं, सादजीलं, धोलुजीरुं। क०-जीरिगे, विलियजीरिगे। तेल-जिलाकारा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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