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________________ 112 जैन आगम : वनस्पति कोश अन्य भाषाओं के नाम हि०-भुइंछत्ता, भुइंफोड छत्ता, छतोना, छाता, सांप की छत्री, खुमी, धरती फूल । बं०-कोड़क छाता, व्यांगेर छाता, छातकुड़, भुईछाति, छातकुंड। पं०ब्लेओफोरे। सि०-खुम्भी। म०-अलम्बे । गु०-बिलाडी नो रोम। अंo-Mushroom (मशरूम)। ले०-Agaricus campestris Linn (एगेरिकस् कॅम्पेस्ट्रिस)। (वैद्यक शब्द सिंधु पृ० ४३६) छत्राक के पर्यायवाची नाम जालबर्बुरकस्त्वन्यश्छत्राकः स्थूलकण्टकः सूक्ष्मशाख स्तनुच्छायो, रन्ध्रकण्टः षडाह्वयः ।।३६ ।। जालबर्बुरक, छत्राक, स्थूलकण्टक, सूक्ष्मशाख, तनुच्छाय तथा रन्ध्रकण्ट ये सब जाल बबूल के ६ नाम (राज०नि० ८/३६ पृ० २३६) AAPAN छत्तोव ) ओ० ६, १० जीवा. ३/५८३ का छत्तोव ( छत्तोवग छत्तोवग ( जीवा० ३/३८८ विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं तथा आयुर्वेद के कोशों में छत्तोव और छत्तोवग शब्द का वनस्पति परक अर्थ अभी तक नहीं मिला है। छत्तोह छत्तोह (छत्रौघ) गुण्डतृण भ० २२/३ प० १/३६/२ उत्पत्ति स्थान-यह सभी प्रान्तों में होता है किन्तु विमर्श-वनस्पतिशास्त्र में छत्रौघ शब्द नहीं पंजाब में अधिक होता है। मिलता है। छत्रगुच्छ मिलता है। अर्थ की समानता होने विवरण-भुइंछत्ता वर्षाऋतु में आप ही आप जमीन के कारण संस्कृत का छत्रगच्छ शब्द ले रहे हैं। फोड़कर उत्पन्न होता है। यह खाद की दूरी पर अधिक छत्रगुच्छ के पर्यायवाची नामहोता है। इसका क्षुप ६ से ७ इंच ऊंचा होता है और इस गुण्डस्तु काण्डगुण्डः स्याद्, दीर्घकाण्ड स्त्रिकोणकः । में कोई डाली नहीं होती, केवल एक डंडी जो जमीन छत्रगुच्छोऽसिपत्रश्च नीलपत्रस्त्रिधारकः ।।१४२।। फोड़कर निकलती है। उस पर गोल छत्ते के आकार का गुण्ड, काण्डगुण्ड, दीर्घकाण्ड, त्रिकोणक, छत्रगुच्छ, एक छत्र होता है। छत्र के नीचे की सतह से पतले परदे । __ असिपत्र, नीलपत्र, त्रिधारक ये सब गुण्ड के नाम है। लटकते हैं जिन्हें गिल (Gill) कहा जाता है। जिसमें अनेक (राज०नि० ८/१४२ पृ० २६०) बीजाणु रहते हैं। छत्रक के अनेक प्रकार होते हैं जिनमें से कुछ विषैले होते हैं। (भाव०नि० शाकवर्ग पृ० ७०३) छिण्णरुहा छत्ताय छत्ताय (छत्राक) जालबडूर । प० १/४७ छत्राकः ।पुं। जालबर्बुरकवृक्षे, आमलकवृक्षे। छिण्णरुहा (छिन्नरुहा) पद्मगुडूची, गिलोयपद्म । भ० २३/१ प० १/४८/३ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में छिण्णरुहा शब्द कंद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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