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________________ 106 चाम्पेयो हेमपुष्पश्च काञ्चनः षट्पदातिथिः । । १३१ | | चम्पक, सुकुमार, सुरभि, शीतल, चाम्पेय हेमपुष्प, काञ्चन, षट्पदातिथि ये चम्पक के पर्यायवाची नाम हैं। (धन्व० नि० ५ / १३१ पृ० २६१) अन्य भाषाओं में नाम हि० - चंपा नागचंपा, चामोटी। बं० - चांपा, चम्पक | गु० - पीलो चंपो, रायचंपो । म० - सोनचाफा, पिंवलाचांफा । क० - संपगे । ते० - संपङ्गी । ले०-Micheliachampaca ता० - शंपंगि। Fam. Magnoliaceae (माइकेलियाचम्पक) (मग्नोलिएसी) । शाख फल काट Jain Education International फल उत्पत्ति स्थान - चम्पा के वृक्ष प्रायः वाटिकाओं में रोपण किये जाते हैं किन्तु पूर्वी हिमालय में ३००० फीट तक तथा आसाम एवं दक्षिण भारत में यह वन्य अवस्था में भी पाया जाता है । विवरण- इसका वृक्ष छोटा करीब २० फीट ऊंचा होता है और बारही मास हराभरा रहता है । पत्ते ८ से १० इंच लंबे, २.५ से ४ इंच तक चौड़े, नोकीले चिकने जैन आगम वनस्पति कोश और चमकीले होते हैं। फूल २ इंच के घेरे में घंटाकार, फीके पीले या नारंगी रंग के सुगन्धित होते हैं। फल लंबे १ से ४ धूसर बीजों से युक्त होते हैं। इसके पुष्प तथा छाल में उडनशील तैल होता है। छाल का क्वाथ करने से यह तेल उड़ जाता है। (भाव०नि०पुष्प वर्ग० पृ० ४६३) पुष्प वर्ग एवं अपने चम्पक कुल का यह मंझले या बड़े कद का सदैव हरा रहने वाला सुंदर वृक्ष बाग-बगीचों में लगाया जाता है। शाखाएं खड़ी फैली हुई तथा पास-पास होती हैं। कई वृक्षों में फूलों के झड़ जाने के बाद अत्यधिक फल आते हैं, ऐसे वृक्षों में फिर कई वर्षों तक पुष्प नहीं आते हैं। ये फल प्रायः शीतकाल में पक जाते हैं। इन फलों में श्यामाभ लाल वर्ण के गोल बीज तन्तुओं पर लटके हुए होते हैं। वृक्षों की उत्पत्ति इन बीजों से ही होती है । (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ४८ ) चंपकगुम्म चंपकगुम्म (चम्पक गुल्म) भुंइ चम्पा, चन्द्र मूला जीवा० ३ / ५८० जं २/१० अन्य भाषाओं में नाम संo - भूमिचम्पक | हि० - चंद्रमूला बं०-भुंइ चांपा । ते० - कोंडा कारवा। ले० Kaempferia rotunda (केफेरिया रोटुंडा) । उत्पत्ति स्थान -छोटानागपुर, पार्श्वनाथ पहाड, चिटग्राम, समग्रभारत में लगाया तथा कृषि की जाती है। आदिवास स्थान- दक्षिण-पूर्व एशिया । विवरण- यह सोंठ कुल का विस्तृत सुगंधित फूलों का क्षुप होता है। यह बाग बगीचों में कई स्थानों पर लगाया जाता है। इसके पत्ते १२ इंच लंबे, तीन चार इंच चौड़े, हरे गाढ़े पीतवर्ण और बैंगनी रंग विशिष्ट होते हैं। पुष्पदंड का पत्र लंबा, फूल लंबे गंधयुक्त श्वेतवर्ण । इसकी जड़ के बीच गोल-गोल गंठाने होती हैं। उन गठानों में से बहुत सी मांसल और मोटी जड़ें फूटकर उनके समान कंद बन जाते हैं। इनका स्वाद कडवा होता है। ग्रीष्म काल में फूल और बाद में फल आते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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