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________________ जैन आगम वनस्पति कोश (कॅन्नाबिस इण्डिका लेम) विमर्श - निघंटुओं में गांजा और भांग के पर्यायवाची नाम समान हैं। फिर भी दोनों में गुण धर्म अन्तर है। भांग और गांजे के गुण लगभग समान ही है किन्तु भांग की क्रिया विशेषतः आमाशय एवं आंत्र पर अधिक होती है तथा यह गांजे की अपेक्षा अधिक ग्राही है। गांजे की प्रधान क्रिया मस्तिष्क पर होती है। वैसे तो भांग की भी क्रिया मस्तिष्क पर होती है पर उतनी नहीं। (धन्च० वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ० २६६) विवरण- विशेषतः बोए हुए मादा जाति के क्षुपों की पुष्प मंजरियां फलित होने के पूर्व ही तोड़ ली जाती है। क्योंकि फलित या बीजोत्पत्ति हो जाने पर इसकी मादक शक्ति का हास हो जाता है। फिर इन तोड़ी हुई रालदार मंजरियों को सुखा लेते हैं। इसे ही गांजा कहते हैं। यह रंग में मटमैला हरा, स्वाद में कुछ कटु या चरपरासा तथा गंध में विशिष्ट प्रकार की मादकता युक्त होता है। इसमें प्रभावशाली तत्त्व २६ प्रतिशत होता है। इस तत्त्व की दृष्टि से पूर्वी बंगाल, मध्य प्रदेश तथा बंबई प्रान्त के बोए हुए क्षुपों से प्राप्त किया गया गांजा श्रेष्ठ माना जाता है। भारत के दक्षिण तथा पश्चिम में प्रायः गांजा नाम से भांग और गांजा दोनों का व्यवहार होता है। उड़ीसा में प्रायः गांजे को ही पीसकर बनाए गए पेय को भांग कहते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ० २६५) देखें भंगी शब्द | .... गयदंत गयदंत (गजदन्त) मूलक, मूली रा० २६ जीवा० ३/२८२ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में गयदंत शब्द श्वेत वर्ण की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। आयुर्वेदीय कोशों में गजदन्त शब्द नहीं मिलता है पर हस्तिदन्त शब्द मिलता है । हस्तिशब्द गजशब्द का पर्यायवाची है, इसलिए यहां हस्तिदन्त शब्द का अर्थ मूलक (मूली) है उसे ग्रहण कर रहे हैं। हस्तिदन्त/ पुं/ मूलके । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ११८८ ) Jain Education International .... गयमारिणी गयमारिणी (गजमारिणी) श्वेत कनेर 99 कनेर के संस्कृत नाम करवीरो मीनकारव्यः, प्रतिहासोऽश्वरोहकः । शतकुम्भः श्वेतपुष्पः, शतप्राशोऽब्जबीजभृत् । । कणवीरोऽश्वहाश्वघ्नो, हयमारोश्वमारकः । करवीर, मीनकाख्य, प्रतिहास, अश्वरोहक, शतकुम्भ, श्वेतपुष्प, शतप्राश, अब्जबीजभृत्, कणवीर, अश्वहा, अश्वघ्न, हयमार और अश्वमारक ये करवीर (श्वेत) के पर्याय हैं। (कैय०नि० औषधिवर्ग पृ० ६३१ ) संस्कृत में कनेर के पर्यायवाची नामों में अश्वघ्न, हयमार, तुरंगारि नाम होने से यह नहीं समझना चाहिए कि कनेर केवल घोड़ों का ही काल है प्रत्युत यह सब के लिए एक घातक विष है। यहां अश्व, तुरंग आदि शब्दों को उपलक्षणात्मक समझना चाहिए। तारतम्यभेद से श्वेतकर लालकनेर की उपेक्षा अधिक घातक तथा पीला कनेर उससे भी विशेष घातक होता है। प० १/३७/५ (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ६०) विमर्श - वनस्पति शास्त्र में गयमारिणी शब्द नहीं मिलता है। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि अश्व की तरह गज का भी यह मारक है। इसलिए यहां श्वेतकनेर अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। LOOD गिरिकण्णइ For Private & Personal Use Only गिरिकण्णइ (गिरिकर्णिकी) कोयल, अपराजिता प० १/४०/५ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में गिरिकण्णइ शब्द वल्ली वर्ग के अन्तर्गत है । अपराजिता की लता होती है। गिरिकर्णिका / स्त्री / अपराजितायाम् (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ३७२) गिरिकर्णिका के पर्यायवाची नामअश्वखुरा श्वेतपुष्पी, महाश्वेता, गवादनी । विषघ्नी कोविदा श्वेतकटभी गिरिकर्णिका । ।१०७८ ।। नीलस्यंदा नीलपुष्पी, श्वेतस्यंदापराजिता । वल्ली विभाण्डा वशिका, व्यक्तगंधा च पापिनी । । १०७६ || www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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