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________________ ( 60 ) संग्रह विमुखता, स्वार्थ का सीमाकरण, साधन शुद्धि का विवेक, प्रमाणिकता, नैतिकता-ये विसर्जन से फलित होने चाहिए। विसर्जन के इस महान् तत्व का विकास होने पर अपरिग्रह व्रत की वास्तविता समझ में आयेगी। मनुष्यलोक के बाहर की सारी अग्नि नियमतः अचित्त होती है। सारी अग्नि सचित्त नहीं होती। विद्युत अचित्त भी है, सचित्त भी। तेजो लेश्या-लब्धि के विकास के साधन अनेक है उनमें एक साधना हैआतापना, सूर्य का आतप लेना। सूर्य का आतप हमारे तेजस शरीर को शक्तिशाली बना देता है। आतप में धूप स्नान करना, वस्त्रों को हटाकर सूर्य की किरणों के साथ सीधा सम्पर्क करना, आतप लेना-यह आतापना की विधि है। अर्थात् तिर्यंचायु, मनुष्याय, देवायु को शुभ अथवा पुण्य प्रकृति मानी गई है। इन प्रकृतियों का बंध लेश्या की विशुद्धि आदि से होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित है कि तियंचादि तीन आयु की उलटी रीति है। अर्थात् संक्लेशमान लेश्या से तीन आयु की स्थिति जघन्य होती है। और विशुद्धमान लेश्या से उत्कृष्ट स्थिति होती है। साधु का एक नाम है-तपोधन । ध्यान, मौन, उपवास आदि तपस्या के अनेक प्रकार हैं। स्वाध्याय तप के समय तेजो, पद्म, शुक्ल ये तीन शुभ लेश्या होती है। आहार-शरीर-इन्द्रिय प्राप्ति के पूर्ण तक एक ही लेश्या रहती हैमरण के समय जो लेश्या होती है वही लेश्या प्रथम की तीन पर्याप्तियों की पूर्णता तक रहती है। उत्तराध्ययन सूत्र में दुःख के अनेक प्रकारों का उल्लेख है। जन्म और मृत्यु दुःख है, बुढापा और बीमारी भी दुःख है। प्राकृतिक प्रकोप भी दुःख है। ध्यान के बिना धर्म की बात छिलके की तरह है। ध्यान के बिना धर्म कटेसिर शरीर की तरह है। अहिंसा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है अपरिग्रह । ____ लीवर के स्राव का अपना समय निश्चित है। जिस समय लीवर रस छोड़ता है, व्यक्ति भोजन नहीं करता। जब भोजन करता है उस समय पाचक रस का स्राव नहीं होता। फलतः वह भोजन सड़ांध पैदा करता है। और अनेक बीमारियां शरीर को घेर लेती है। जयसिंह सूरि ने संयोगजा नामक एक सातवीं लेश्या मानी हैं। यह शरीर छाया रूप है। कई आचार्य काय योग की सप्तता के कारण लेश्या के सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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