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________________ ४३४ लेश्या-कोश पनवणा पद तेरमाँ मांहि, दस-दस जीव अजीव परिणाम । जीवपरिणामीलेसपरिणामी, तिणमेंद्रव्य-लेस्यारोन काम रे॥६८॥ -झीणीचरचा, ढाल १३ प्रज्ञापना के तेरहवें पद में जीव और अजीव के दस-दस परिणाम बतलाये गये हैं। जीव परिणाम का एक भेद लेश्या परिणाम है, उससे द्रव्य लेश्या का कोई सम्बन्ध नहीं है। जब मिथ्यात्वी को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है उस समय शुभ परिणाम, विशुद्ध लेश्या के साथ प्रशस्त-शुभ अध्यवसाय भी होते हैं।' चउगइ चउकसाया लिंगतिगं लेसछक्कमन्नाणं । भिच्छत्तमसिद्धत्तं असंजमो तह चउत्थम्मि । -प्रवसा० गा १२६३ चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, छः लेश्या, अज्ञान, मिथ्यात्व, असिद्धत्व असंयम-ये चतुर्थ औदयिक भाव के भेद हैं । व्याख्या-छः लेश्यायें-'योगपरिणामो लेश्या' इस मतानुसार तीन योगजनक कर्म के उदय से होती है। जिसके मतानुसार कषायनिस्यन्द लेश्या है-उसके अनुसार कषाय मोहनीय कर्म के उदय से है। जिसके मत में कर्मनिस्यन्द लेश्या है उसके अभिप्राय से संसारित्व, असिद्धत्व की तरह लेश्या आठ प्रकार के कर्मोदय से है। '६६ २ भिक्षु और लेश्यागुत्तो वईए य समाहिपत्तो, लेसं समाहट्टु परिवएज्जा । -सूय० श्रु१ । अ १० । गा १५ । पृ० १२५ भिक्षु वचन-गुप्ति तथा समाधि को प्राप्त होकर लेश्या ( परिणामों ) को समाहित करके संयम में विहरे । तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावे वियाणिया। अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओऽहिट्ठिए मुणि ॥ -उत्त० अ ३४ । गा ६१ । पृ० १०४८ लेश्याओं के अनुभावों को जानकर संयमी मुनि अप्रशस्त लेश्याओं को छोड़कर प्रशस्त लेश्या में अवस्थित हो-विचरे । १. भग० श६ । उ ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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