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________________ लेश्या-कोश ४३३ तिहां नरक मांहि तीन लेस्या कही छै, एतो प्रत्यक्ष द्रव्य पिछाणी । जीव परिणामी रा दश बोलां में, लेस्या शब्द संघात बखाणो रे ॥६॥ वहाँ नरक में तीन लेश्याए बतलाई गई है। वे प्रत्यक्ष रूप में द्रव्य लेश्वाए हैं । जीब परिणाम के दश बोलों में लेश्या शब्द समुच्चय दृष्टि से निरूपित है। इम हिज देवता में जू-जुइ लेस्या ते पिण द्रव्य विचारो रे। दस जीव-परिणामी रा वर्णन मांहे, कही लेसशब्द रै लारो रे ॥७०।। इसी प्रकार देबों में अलग-अलग लेश्याए बतलाई गई है, वे प्रत्यक्ष रूप में द्रव्य लेश्याए है जीव परिणाम के दस बोलों में एक लेश्या परिणाम है । और वहाँ लेश्या शब्द के आधार पर प्रासंगिक रुप में उनका वर्णन किया गया है। ठाणांग के टीकाकार अभयदेव सूरि कहते हैं कि योग वीर्यान्तराय कर्म के क्षय-क्षयोपशम से होता है । लेश्या भी कथंचिद् वीर्यान्तराय कर्म के क्षय-क्षयोपशम से होनी चाहिए। भाव-लेस्या न अरूपी कही छ, द्रव्य-लेश्या नैं रूपी स्वाम । भगवतीबारमेंशतकपंचमउद्देशे,एपिण जीव-अजीवपरिणामरे ॥६६॥ भगवान ने भगवती १२ । ५ । सू १७७ में भाव लेश्या को अरुपी और द्रव्य लेश्याओं को रूपी कहा है। इससे स्पष्ट है कि भाव लेश्या जीव परिणाम है और द्रव्य लेश्या अजीव परिणाम है। तथा लेस्या अध्येन चौतीसमां मांहे, समचे वर्णन सूतर में आख्या । वर्ण गंध-रस फर्श द्रव्य लेस्या में, लखण भाव लेस्या नां भाख्या रे ।।६।। -झीणीचरचा ढाल १३ उत्तराध्ययन के चौतीसर्वे लेश्या अध्ययन में लेश्या का समुच्चय दृष्टि से वर्णन किया गया है। वहाँ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श द्रव्य लेश्या में बतलाये गये हैं और भाव लेश्या के लक्षण अलग रूप में बतलाये गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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