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________________ ४०२ लेश्या - कोश कृष्णादिद्रव्य साचिव्यात्, परिणामो य तन्त्रायं, लेश्याशब्दः स्फटिकस्यैव स च चलो वा स्यादचलो वा । ध्यानं पुननिश्चल एवाशुभः शुभो वा आत्मनः परिणामः । तथा चाह आत्मनः । प्रवर्त्तते ॥ भाणेण होइ लेसा, झाणंतरओ व होइ अन्नयरी | अज्झवसाओ उ दंडो, भाणं असुभो सुभो वा वि ॥ - बिह० उ १ । भाष्य गा १६४० टीका - लेश्या द्विविधा - द्रव्यतो भावतश्च । तत्र द्रव्यलेश्यामुपरिष्टाद् वक्ष्यति । भावलेश्या त्वनन्तरोक्त एव शुभाशुभरूपो जीवपरिणामः । सा चैवंविधा शुभाशुभपरिणामरूपा कृष्णदीनामन्यतमा "लेस" त्ति भावलेश्या ध्यानेन वा भवति ध्यानान्तरतो वा । लेश्या और ध्यान में क्या विशेषता है । जिससे जीव कर्म के साथ रिलष्ट होता है वह लेश्या है । वह लेश्या कृष्णादि द्रव्यों के सहकार से जीव का शुभ और अशुभ परिणाम विशेष हैं । जैसा कि कहा गया है "कृष्णादि द्रव्यों के सहकार से जो आत्मा का परिणाम होता है और उस जीव के वह परिणाम स्फटिक की तरह झलकता रहता है उसे लेश्या कहते हैं ।" वह लेश्या चल या अचल होती है किन्तु ध्यान शुभ या अशुभ रूप ( आत्म का परिणाम ) निश्चल होता है । जैसा कि कहा है ध्यान से या ध्यानान्तर से जो अध्यवसाय होता है उससे लेश्या बनती है । शुभ या अशुभ दृढ अध्यवसाय को ध्यान कहते हैं । " भाव लेश्या शुभ-अशुभ रूप जीव परिणाम है- यह ऊपर कहा जा चुका है । वह लेश्या शुभ या अशुभ परिणाम रूप कृष्णादि लेश्याओं में से कोई भी भाव लेश्या ध्यान या ध्यानान्तर से होती है । ·२ × × × । भावलेश्या त्वनन्तरोक्त एवात्मनो मानसिकः परिणामः । स च मानसध्यानादनन्य इति कृत्वाऽभिधीयते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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